- फर्जी जनजाति प्रमाण पत्र पर नौकरी कर रहे एसआई

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
प्रदेश में एक तरफ सरकार फर्जी जाति प्रमाणपत्र पर नौकरी करने वालों के खिलाफ अभियान चला रही है, वहीं दूसरी तरफ शिकायत के बाद भी फर्जी जनजाति प्रमाण पत्र पर नौकरी कर रहे एसआई अमिताभ प्रताप सिंह के खिलाफ जांच नहीं हो पा रही है। आलम यह है कि शिकायतकर्ता की शिकायत को ही अफसरों ने दबा दिया है। गौरतलब है कि पुलिस विभाग में बुरहानपुर में एसआई के पद पर पदस्थ अमिताभ प्रताप सिंह उर्फ अमिताभ थियोफिलस द्वारा जनजाति के फर्जी प्रमाण पत्र के सहारे सरकारी नौकरी पाने की शिकायत पिछले पांच साल से पीएचक्यू और जनजातीय विभाग के बीच झूल रही है। इसको लेकर 3 अक्टूबर 2019 को भोपाल निवासी सोनाली सिंह ने आयुक्त, जनजातीय कार्य विभाग को लिखित शिकायत कर कार्रवाई की मांग की थी। लेकिन पांच साल तक जनजातीय कार्य विभाग ने शिकायत दबाकर रखी, इसके बाद सोनाली ने 25 सितंबर 2024 को इस पूरे मामले की शिकायत अपराध अनुसंधान विभाग पीएचक्यू एवं 10 अक्टूबर 2024 को आयुक्त आदिवासी विकास सतपुड़ा भोपाल को करते हुए एक बार फिर आरोपी के विरुद्ध तत्काल कार्रवाई की मांग की है।
शिकायत के बाद भी जांच नहीं
हैरानी की बात यह है कि पिछले पांच साल से विभागीय अफसरों ने शिकायत दबा रखी है, इस दौरान आरोपी ने गलत तरीके से नियुक्ति पाने के बाद लाखों रुपये का शासन का वेतन, भत्ता प्राप्त कर लिया है। भोपाल निवासी सोनाली ने शिकायत में उल्लेख किया है कि आरोपी अमिताभ प्रताप सिंह 2000 बैच का एसआई है। वर्ष 2000 में बुरहानपुर में पदस्थ रहते हुए भ्रष्टाचार की विभागीय जांच सिद्ध पाए जाने पर अमिताभ को सेवा से पृथक करने की अनुशंसा की गई थी। अमिताभ के पिता स्वर्गीय धीरेंद्र सिंह खंडवा के मूल निवासी और जाति से सिख थे। अमिताभ की मां शालिनी अब्राहम ने ईसाई धर्म अपना लिया था। अमिताभ प्रताप के पिता नेपानगर में कार्यरत थे, जबकि माता निजी स्कूल में शिक्षिका थी। अमिताभ ने 1997 में बीए की परीक्षा पत्राचार माध्यम से आरडीवीवी जबलपुर से थर्ड डिवीजन पास की थी। 1997 में अपने चाचा के निवास का पता देकर अमिताभ ने एसडीएम जबलपुर कार्यालय के कर्मचारियों से मिलीभगत कर फर्जीवाड़ा करते हुए स्वयं को गोंड जनजाति का बताकर जनजाति का प्रमाण पत्र बनवा लिया। प्रमाण पत्र पर जारी कर्ता एसडीएम के हस्ताक्षर के नीचे डिप्टी कलेक्टर वास्ते कलेक्टर की सील लगी हुई है। दिनांक एवं जावक क्रमांक व प्रकरण क्रमांक भी अंकित नहीं है। जिससे जाति प्रमाण पत्र प्रथम दृष्टया ही देखने पर फर्जी प्रतीत होता है, इसके बावजूद आरोपी सरकारी नौकरी में पुलिस विभाग में पदस्थ है और ठप्पे से नौकरी कर रहा है। शिकायतकर्ता ने आरोपी के विरुद्ध अपराध दर्ज कर कार्रवाई की मांग की है। इसको लेकर वर्ष 2019 में दीपाली रस्तोगी, आयुक्त आदिवासी विकास को लिखित शिकायत की थी, लेकिन आज तक कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद अक्टूबर 2024 में स्पेशल डीजी अपराध अनुसंधान को भी शिकायत करते हुए कार्रवाई की मांग की है।