
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के सरकारी बिजली संयंत्रों के लिए कोयले की कमी दूर करनें में सबसे बड़ी बाधा उधारी बनी हुई है। सैकड़ों करोड़ की उधारी होने की वजह से हालात ऐसे बन चुके हैं कि अब कोयले नकद दाम देने पर ही मिल पा रहा है। फिलहाल सरकारी बिजली कंपनियों को कोयला की आपूर्ति करने वाली कोल कंपनियों का करीब 925 करोड़ रुपए का भुगतान करना है। बिजली कंपनियों के पास इतना पैसा नही है कि वे उधारी की रकम का भुगतान कर सकें, जिसकी वजह से कंपनियों ने उन्हें उधार में कोयला देने से हाथ खड़े कर दिए हैं। इसकी वजह से अब कोल कंपनियों को नकद राशि वो भी एडवांस में देने पर ही कोयला मिल पा रहा है। यही वजह है कि कोल कंपनियों द्वारा कम कोयला की आपूर्ति की जा रही है। यह बात अलग है कि इस मामले से ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका कहना है कि बिजली की जितनी मांग है, उसके हिसाब से ही कोयला खरीदा जा रहा है।
प्रदेश के चारों सरकारी संयंत्रों में छत्तीसगढ़ के कोरबा और मध्य प्रदेश के शहडोल से कोयला की आपूर्ति की जाती है। जिसका बीते साल के पहले की राशि का भुगतान अब तक अटका हुआ है। यही वजह है कि अब एडवांस देने पर ही कोल कंपनियों द्वारा कोयले की आपूर्ति की जा रही है। उधर, बीते रोज शाम तक प्रदेश के सरकारी चारों बिजली संयंत्रों से 2,383 मेगावाट बिजली का ही उत्पादन हो सका जबकि उनकी क्षमता 5,400 मेगावाट की है। इसी तरह से इन चारों संयंत्रों में दो लाख 27 हजार 727 टन कोयले का भंडार बना हुआ था है। जो पूरी क्षमता से उत्पादन के हिसाब से बेहद कम है। बकाया राशि भुगतान को लेकर ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का दावा है कि कोल इंडिया को बकाया पैसों के भुगतान की व्यवस्था कर ली गई है और प्रदेश में बिजली की कमी नहीं होने दी जाएगी। अगर कोयला भंडार की बीते साल की तुलना की जाए तो प्रदेश में बीते साल 6 अक्टूबर को 15 लाख 86 हजार टन कोयले का भंडार था, जो इस साल 6 अक्टूबर को महज 2 लाख 31 हजार टन रह गया है। इसकी वजह से 5,400 मेगावाट की क्षमता वाले बिजली संयंत्रों में मात्र 2,295 मेगावाट बिजली का ही उत्पादन हो पा रहा है। इसकी वजह से मांग पूरी करने के लिए केंद्रीय और निजी क्षेत्र से 6227 मेगावाट बिजली लेनी पड़ रही है।
कई इकाइयों में बंद हुआ उत्पादन
बिजली संयंत्रों को रोजाना कोयले के एक या दो रैक ही मिलने की वजह से कोयला की कमी बनी हुई है। इसकी वजह से खंडवा व सिंगाजी बिजली संयंत्र में चार में से तीन इकाइयां ही उत्पादन कर पा रही हैं। दरअसल बिजली संयंत्रों को पूरी क्षमता से चलाने के लिए प्रतिदिन 34 हजार टन कोयले की जरूरत होती है। बिरसिंहपुर सयंत्र में भी महज 678 मेगावाट बिजली उत्पादन हो पा रहा है, जबकि उसकी क्षमता 1340 मेगावाट है। इसी तरह से सारनी में भी चार इकाईयां बंद होने से महज दो यूनिट्स से 508 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो पा रहा है। अगर अभी सभी बिजली संयंत्रों में पूरी क्षमता से उत्पादन किया जाए तो बमुश्किल एक दिन के लायक ही कोयले का स्टॉक है।