कई साल बाद भी कैंपा प्राधिकरण का नहीं हुआ गठन

कैंपा
  • केंद्र सरकार के नियमों की अनदेखी


भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। जंगलों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए राज्यों को कैंपा (कंपनसेटरी अफोरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी) फंड मिलता है। लेकिन विडंबना यह है की मप्र में कैंपा फंड का उपयोग मनमाने तरीके से हो रहा है। इसकी वजह यह है कि प्रदेश में सात साल से कैंपा प्राधिकरण का ही गठन नहीं हो पाया है। जबकि केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु मंत्रालय ने अगस्त 2018 को सभी राज्यों में प्रतिपूरक बनीकरण कोष एवं योजना प्राधिकरण (कैंपा) का गठन करने निर्देश दिए थे। इसको लेकर तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं।
गौरतलब है कि मप्र में जंगलों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए राज्य को मिलने वाले कैंपा फंड के दुरुपयोग का मामला लगातार सामने आ रहा है। इसके बावजुद तकरीबन सात साल गुजर जाने के बावजूद मप्र में कैंपा प्राधिकरण का गठन नहीं हो पाया है। यह स्थिति तब है, जब कैंपा प्राधिकरण का गठन भी सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार होना था। खास बात यह कि देश के तकरीबन सभी राज्यों में प्राधिकरण बन गया है, लेकिन मप्र ने सुप्रीमकोर्ट की गाइडलाइन की पालन नहीं हो रहा है। गौरतलब है कि कैंपा यानी प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण की स्थापना 23 अप्रैल 2004 को हुई थी। यह पर्यावरण और वन मंत्रालय के अधीन काम करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने 30 अक्टूबर 2002 को टीएन गोदावर्मन थिरुमूलपाद बनाम भारत संघ मामले में कैंपा की स्थापना का आदेश दिया था। कैम्पा का काम प्रतिपुरक वनरोपण गतिविधियों की निगरानी, तकनीकी सहायता, और मूल्यांकन करना है। कैंपा प्रतिपूरक वनरोपण निधि (सीएएफ) का संरक्षक भी है। सीएएफ अधिनियम 2016 को 3 अगस्त 2016 को अधिनियमित किया गया था। सीएएफ नियम 2018 को 10 अगस्त 2018 को अधिसूचित किया गया था। सीएएफ अधिनियम और नियम 30 सितंबर 2018 से लागू हुए। सीएएफ अधिनियम 2016 के लागू होने के बाद तदर्थ कैंपा को भंग कर दिया गया और राष्ट्रीय प्राधिकरण का गठन किया गया। इसके तहत राज्यों में राज्य कैंपा प्राधिकरण के गठन का प्रावधान किया गया।
पीसीसीएफ का पद बचाने की कोशिश
सूत्रों की माने तो प्राधिकरण का गठन पीसीसीएफ का एक पद बचाने के लिए गठन नहीं किया गया। मौजूदा समय में मध्यप्रदेश कैडर में पीसीसीएफ के पद कम हो गए हैं। बावजूद इसके प्राधिकरण का गठन करने को लेकर शीर्ष अफसरों द्वारा न केवल आना-कानी की जा रही है, बल्कि मुख्य सचिव से लेकर मुख्यमंत्री तक के सामने गलत तथ्य प्रस्तुत किए जा रहे हैं। विभाग में स्थितियां है कि पीसीसीएफ कैंपा का पद हथियाने के लिए वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। अब तक जितने भी पीसीसीएफ कैंपा के पद पर पदस्थ रहे हैं, उन आईएफएस अफसरों की मुख्यमंत्री सचिवालय तक सीधी पहुंच रही है। मौजूदा स्थिति में पीसीसीएफ कैंपा के पद पर पीके सिंह पदस्थ हैं, जो 31 जनवरी को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। केंद्र सरकार ने कैंपा पीसीसीएफ का पद अस्थाई तौर पर तीन साल के लिए स्वीकृत किया था, जिसकी मियाद जनवरी 2019 को समाप्त हो गई। यानी 2019 के बाद से अब तक पीसीसीएफ कैंपा का पद कैडर में स्वीकृत नहीं होने के बाद भी पोस्टिंग होती चली आ रही है। अब जब वन विभाग भी मौजूदा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के अधीन है, तब वन विभाग भी है। ऐले में उम्मीद की जा रही है कि अब सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन और केंद्र सरकार केंद्र सरकार के निर्देश का पालन होगा और तकरीबन सात साल बाद मप्र प्राधिकरण का गठन कर दिया जाना चाहिए।
एपीसीसीएफ स्तर के अफसर होंगे सीईओ
लंबे समय तक केंद्र में अपनी प्रशासनिक क्षमता का लोहा मनवाने वाले अनुराग जैन के मुख्य सचिव बनने के बाद कैंपा प्राधिकरण के गठन की संभावनाएं बढ़ गई है। कैंपा प्राधिकरण का गठन होने पर पीसीसीएफ कैंपा का पद समाप्त हो जाएगा, क्योंकि इसमें मुख्य कार्यपालन अधिकारी (सीईओ) के पद का प्रावधान किया गया है। इस पद पर एपीसीसीएफ स्तर के अधिकारी को सीईओ के तौर पर पदस्थ किया जाएगा। कांग्रेस की तत्कालीन कमलनाथ सरकार के समय अपर मुख्य सचिव एपी श्रीवास्तव ने केंद्र के निर्देश पर राज्य में कैंपा प्राधिकरण के गठन की पहल शुरू की थी। प्राधिकरण के गठन की प्रक्रिया शुरू होते ही तत्कालीन पीसीसीएफ एबी गुप्ता ने सरकार की तरफ दौड़ लगा दी थी। सीएम के करीबी रहे एक आईएएस अफसर ने गुप्ता की मुलाकात नाथ से कराई। उसके बाद कैंपा प्राधिकरण के गठन पर विराम लग गया। कमलनाथ के बाद शिवराज सरकार ने भी प्राधिकरण के गठन प्ररै पहल नहीं की। इसकी वजह सजेंद्र सिंह धाकड़ को पीसीसीएफ कैंपा के पद पर बैठाकर उपकृत करना था। धाकड़ खुद को पूर्व सीएम का करीबी रिश्तेदार बताया जाता है।

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