
दलबदल और नेताओं की पसंद के प्रत्याशी नहींं रास आ रहे मतदाताओं को..
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। इस साल हुए तीन उपचुनाव के जिस तरह से परिणाम आए हैं, उनसे भाजपा के रणनीतिकारों की चिंताएं बढ़ गई हैं। यह बात अलग है कि तीन में से दो विधानसभा उपचुनाव के परिणाम भाजपा के पक्ष में रहे हैं , लेकिन जिस अंतर से चुनाव में जीत मिली है, वह ही मुसीबत का विषय बन गए हैं। अमरवाड़ा के बाद जिस तरह के बुधनी और विजयपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव परिणाम आए हैं, उससे यह माना जाने लगा है कि अब दलबदल के अलावा प्रत्याशी चयन में बड़े नेताओं की मनमानी नहीं चलने वाली है। शायद यही वजह है कि आम विधानसभा चुनाव में मिली बेहद अच्छी जीत के बाद एक साल के अंदर ही पार्टी को विजयपुर उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। इसके अलावा बुधनी जैसी परंपरागत सीट पर भी जीत के अंतर में 87 प्रतिशत की कमी आ गई है। इससे पहले हुए अमरवाड़ा सीट के उपचुनाव में भी भाजपा बेहद करीबी जीत दर्ज कर सकी थी। इससे यह सवाल खड़ा होने लगा है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि एक साल में ही जनता का रुख बदलने लगा है।
दरअसल, इस उपचुनाव परिणामों के जो मायने निकाले जा रहे हैं, उसके मुताबिक पार्टी कार्यकर्ता और जनता दोनों को ही दलबदल का खेल रास नही आ रहा है। इसी तरह से प्रभावशाली नेताओं द्वारा जिस तरह से अपनी पसंद और नापसंद के आधार पर प्रत्याशी चयन किए जा रहे हैं, वे भी अब मतदाताओं को रास नही आ रहे हैं। इसका बड़ा उदाहरण बुधनी है। दूसरा, बुधनी में रबर स्टैंप जैसा प्रत्याशी भी जनता ने नकार दिया। इन कमजोरियों का लाभ कांग्रेस को मिल रहा है। प्रदेश में अगले विधानसभा चुनाव को भले ही चार वर्ष बाकी है लेकिन ऐसे परिणाम कांग्रेस के लिए ऑक्सीजन वाले साबित हो सकते हैं। इधर, भाजपा की स्थितियां यही रहीं तो पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
आदिवासी वर्ग की उपेक्षा पड़ी भारी
विजयपुर विधानसभा सीट पर भाजपा हमेशा आदिवासी वर्ग का प्रत्याशी खड़ा करती रही है, लेकिन इस उपचुनाव में पार्टी ने कांग्रेस से आयातित नेता रामनिवास रावत को प्रत्याशी बनाया। इससे आदिवासी वर्ग नाराज हो गया। सरकार और संगठन ने पूरी ताकत से उपचुनाव लड़ा फिर भी हार का सामना करना पड़ा। यही स्थिति अमरवाड़ा सीट के उपचुनाव में हुई थी, जहां कांग्रेस विधायक कमलेश शाह को तोडक़र भाजपा ने अपने टिकट पर उपचुनाव लड़ाया था। भाजपा ने जैसे-तैसे उपचुनाव जीत लिया, लेकिन जनता में गलत संदेश गया कि पार्टी अहंकार की राजनीति कर रही है।
कांग्रेस को मिल रही ताकत
भाजपा संगठन से लेकर सरकार के कामकाज में जो कमजोरियां सामने आ रही हैं, वही कांग्रेस को मजबूती प्रदान कर रही हैं। विजयपुर में कांग्रेस नहीं जीती बल्कि यह कहा जाए कि भाजपा हारी है तो ज्यादा ठीक होगा। कांटे की टक्कर के उपचुनाव में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रचार में न आना अपने आप में अजूबा है। इधर, उनका यह कहना कि मुझे बुलाया नहीं गया और भी चौंकाने वाला है।
बुधनी जैसे गढ़ में भाजपा की मुश्किल बढ़ी
बुधनी विधानसभा सीट पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का गढ़ मानी जाती है। वह यहां से छह बार विधायक रहे। वर्ष 2023 का विधानसभा चुनाव उन्होंने एक लाख चार हजार से अधिक मतों के अंतर से जीता था। उपचुनाव के लिए उनकी सहमति से रमाकांत भार्गव को प्रत्याशी बनाया गया। वह शिवराज सिंह के विश्वस्त माने जाते हैं, लेकिन इससे जनता में एकाधिकार का संदेश गया। रमाकांत भार्गव मात्र 13,901 मतों के अंतर से जीत सके। स्वाभाविक है कि आने वाले चुनाव में यहां कांग्रेस अधिक आत्मविश्वास से लड़ेगी।