सूचना के छत्ते पर भिनभिनाती मधुमक्खियां आपस में भिड़ी

आईएएस अफसर

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश सरकार के बेहद करीबी अफसरों में शुमार रहे तीन पूर्व आईएएस अफसर इन दिनों अपने ही सीनियर एक पूर्व आईएएस अफसर के निशाने पर आ गए हैं। इनमें से दो आईएएस अफसर हाल ही में सेवानिवृत्त हुए हैं और पुर्नवास की बाट जोह रहे हैं। इन दोनों ही अफसरों ने हाल ही में राज्य सूचना आयुक्त बनने के लिए आवेदन भी किया है। इन दोनों  पूर्व अफसरों के नाम इसके साथ ही राज्य सूचना आयुक्त के लिए तय माने जा रहे हैं। यह दोनों अफसर हैं भोपाल के पूर्व संभागायुक्त रिटायर्ड आईएएस अधिकारी कविन्द्र कियावत और केके सिंह। इनके खिलाफ शहडोल कमिश्नर रह चुके पूर्व आईएएस आरबी प्रजापति ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लिखित शिकायत की है। इसमें इन दोनों ही अफसरों की अब किसी तरह की नियुक्ति नहीं करने की मांग की गई है। खास बात यह है कि इन दोनों अफसरों की शिकायत के बाद अब प्रजापति द्वारा एक अन्य पूर्व अफसर और राज्य सूचना आयुक्त राजकुमार माथुर को भी निशाने पर ले लिया गया है। इन शिकायतों में उनके द्वारा धोखाधड़ी के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। प्रजापति द्वारा एक के बाद एक पूर्व आईएएस अफसर के खिलाफ लिखित शिकायत करने और शिकायती पत्र सोशल मीडिया में वायरल होने से सरकार से लेकर प्रशासनिक गलियारों तक में हड़कंप की स्थिति बनी हुई है। प्राय: आईएएस अफसरों द्वारा अपने किसी भी पूर्व और वर्तमान साथी के खिलाफ इस तरह का कदम नहीं उठाया जाता है। इस शिकायत में कियावत के खिलाफ आरोप लगाते हुए उनके द्वारा लिखा गया है कि विदिशा जिले की ग्यारसपुर तहसील में बना मानसरोवर राज्य की शासकीय ऐतिहासिक धरोहर के रूप में गजेटियर में दर्ज है। विदिशा कलेक्टर ने 8 अक्टूबर 1985 को प्राइवेट पक्षकारों द्वारा मानसरोवर तालाब की जमीन हड़पने की साजिश के तहत दिए गए आवेदन को निरस्त कर दिया था। कलेक्टर के आदेश के विरुद्ध प्राइवेट पक्षकारों ने अपर आयुक्त भोपाल संभाग के न्यायालय  में अपील की थी अपर आयुक्त भोपाल ने 25 नवंबर 1992 को निरस्त कर दी थी। प्रजापति ने आरोप लगाया है कि कलेक्टर विदिशा ने  27 अक्टूबर 2005 को अनाधिकृत रुप से राजस्व पुस्तक परिपत्र का हवाला देकर बिना किसी नियम कानून का उल्लेख किए बिना धोखाधड़ी करते हुए तालाब की जगह दूसरी शासकीय जमीन का विनिमय निजी पक्षकारों के साथ कर दिया।

माथुर की शिकायत
सूचना आयुक्त राजकुमार माथुर के खिलाफ लिखित शिकायत प्रमुख सचिव कार्मिक से की गई है। इसमें कहा गया है कि मानसरोवर तालाब ग्यारसपुर जिला विदिशा की भूमि खरा नंबर 519 जो 12.103 एकड़ है का अवैध एवं अनाधिकृत विनिमय करने के कारण उन्हें तत्काल प्रभाव से मौजूदा पद से पृथ्क किया जाए। यह कृत्य उनके द्वारा विदिशा जिले के कलेक्टर रहते किया गया है। शिकायत में कहा गया है कि मैंने उक्त प्रकरण के संबंध में  सामान्य प्रशासन विभाग तथा अन्य वरिष्ठ विभागों का ध्यान 14 जुलाई 2008 को आकर्षित किया था जिसके संबंध में  कवीन्द्र जोशी, अन्डर सेकेट्री, टू-गवर्मेन्ट आफ इंडिया (मिनिस्ट्री आॅफ पर्सनल एण्ड ट्रेनिंग) नई दिल्ली के पत्र क्रमांक 104/83/2008-एव्हीडी-1 नई दिल्ली, दिनांक 19.08.2008 को प्रदेश के मुख्य सचिव को कार्यवाही करने के निर्देश दिये थे, लेकिन विभाग ने प्रकरण का कोई परीक्षण कराये वगैर कोई सारगर्भित कार्यवाही नहीं की गई तथा प्रकरण ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया। इसमें कहा गया है कि उनके स्तर से प्रकरण में शासन हित संरक्षण करने के प्रयास करने के बजाय अनियमितताओं में अनियमितता कराने का भी प्रयास किया गया है। संबंधित प्रकरण के संबंध में विभाग द्वारा समय पर ठोस कार्यवाही नहीं होने तथा माथुर के द्वारा प्रकरण को सप्रेश करा देने तथा घोटाले का प्रकरण सामान्य प्रशासन विभाग में लंबित रहते सूचना आयुक्त जैसे संवैधानिक पद हासिल किया है, जिस पद पर उन्हें न तो नैतिक तथा वैधानिक तौर पर रहने की पात्रता नहीं है।

केके सिंह पर लगाए यह आरोप
उनके द्वारा इसी मामले में उस समय भोपाल संभागायुक्त के पद पर रहे केके सिंह पर भी आरोप लगाए हैं। आरोपों में कहा गया है कि सिंह द्वारा 9 सितंबर 2006 को बिना कानून का उल्लेख किए सभी तथ्यों को नकारते हुए कलेक्टर के आदेश को बरकरार रखा।  इस पूरे मामले में सामान्य प्रशासन विभाग ने भोपाल संभागायुक्त से प्रतिवेदन बुलाया लेकिन तत्कालीन भोपाल संभागायुक्त कवीन्द्र कियावत ने नियम-कानून का उल्लेख किए बिना सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों से चर्चा कर गलत प्रतिवेदन एक अक्टूबर 2020 को भेज दिया। प्रजापति का कहना है कि केके सिंह ने नियम-कानून का परीक्षण किए बिना 9 सितंबर 2006 को आदेश पारित किया और कियावत ने नियम-कानून तथा तथ्यों का उल्लेख किए बिना गलत प्रतिवेदन सामान्य प्रशासन विभाग को भेजा । इसलिए इन दोनो ने शासन के साथ धोखाधड़ी कर शासन को करोड़ों का नुकसान पहुंचाने आदेश एवं प्रतिवेदन दिए हैं। इसकी वजह से इन दोनो को किसी भी पद पर नियुक्ति नहीं दी जाए। इस मामले की जांच कराई जाए और कार्यवाही की जाए। करोड़ों रुपयों की वसूली भी दोषी अधिकारियों से की जाए।

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