बक्सवाहा: सरकार करेगी पर्यावरण की चिंता, लगाए जाएंगे 10 लाख पेड़

 बक्सवाहा

भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा छतरपुर जिले के बक्सवाहा की हीरा खदान को लीज पर दिए जाने को लेकर इन दिनों चर्चा में है। दरअसल इस डायमंड प्रोजेक्ट में लगभग दो लाख पंद्रह हजार पेड़ों की कटाई होगी। वहीं सरकार का कहना है कि जितने वृक्ष काटे जाएंगे हम उससे पांच गुना अधिक यानी कम से कम दस लाख वृक्ष लगाएंगे, जिससे पर्यावरण का संतुलन ना बिगड़ सके।
उल्लेखनीय है कि वृक्षों की कटाई को लेकर सिर्फ स्थानीय लोग ही नहीं बल्कि देशभर से जुड़े युवा, सामाजिक संगठन, पर्यावरण प्रेमी और सेलिब्रिटी आदि सभी पर्यावरण की सुरक्षा के मुद्दे पर सरकार से मांग कर रहे हैं कि यह करार रद्द किया जाए। इसके लिए एक अभियान चलाया जा रहा है। वहीं सरकार अपने फैसले पर अडिग है। सरकार देशभर से मुखर हो रहे विरोध के स्वर को दरकिनार करते हुए निवेशकों के साथ करार पर कायम रहेगी। दरअसल इसके पीछे मंशा यह है कि राज्य सरकार देश और दुनिया के निवेशकों को यह संदेश देना चाहती है कि मध्य प्रदेश निवेश के लिए सुरक्षित है। सरकार उनके हितों का पूरा ध्यान रखेगी। जिससे कि वे प्रदेश में अधिक से अधिक निवेश के लिए प्रोत्साहित हों। रहा सवाल पर्यावरण का तो सरकार इसकी चिंता कर रही है।
पांच गुना अधिक पेड़ लगाएगी सरकार
बक्सवाहा डायमंड प्रोजेक्ट में तकरीबन दो लाख पंद्रह हजार पेड़ों की कटाई के बदले में सरकार इस क्षेत्र में लगभग दस लाख पौधे लगाएगी। जो कि इस प्रोजेक्ट के लिए काटे जाने वाले पेड़ों की तुलना में लगभग पांच गुना से भी अधिक है। राज्य सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इस प्रोजेक्ट के कारण आसपास के पर्यावरण को नुकसान नहीं होने देगी। यानी सरकार खुद यहां के पर्यावरण की पूरी चिंता करेगी। बता दें कि प्रोजेक्ट के विरोध को देखते हुए राज्य सरकार की तरह से स्पष्ट कर दिया गया है कि यदि कोई केवल पर्यावरण को नुकसान की आशंका के चलते ही प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हैं तो वे पहले प्रोजेक्ट के सभी पहलुओं को भली भांति समझ लें। उल्लेखनीय है कि ईएमईएल कंपनी से प्रदेश सरकार को  रॉयल्टी के रूप में पहले ही बड़ी राशि का भुगतान किया जा चुका है। ऐसे में अब इस प्रोजेक्ट से पीछे हटने का कोई औचित्य नहीं है। पूर्व में जब रियो टिंटो ने खनन का काम लिया था तब भी विरोध के स्वर बुलंद हुए थे। हालांकि उसके बाद कंपनी की राज्य सरकार के साथ गतिरोध की स्थिति बन गई थी। इस वजह से उसे यहां से जाना पड़ा था। लेकिन इस बार अच्छी बात यह है कि खनन करने वाली कंपनी के साथ राज्य सरकार मजबूती के साथ खड़ी नजर आ रही है। विरोध को अब तक दरकिनार किया गया है।
हीरा खनन के नाम पर लाखों पेड़ काटने के विरोध में हैं स्थानीय
दरअसल कंपनी ने सरकार से बक्सवाहा के हीरा खनन प्रोजेक्ट के तहत कुल 363 हेक्टेयर जमीन मांगी है। इसमें से राज्य सरकार ने पहले ही 62.64 हेक्टेयर जमीन से हीरा खनन के लिए जमीन 50 वर्ष के लिए लीज पर दे दी है। एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड के लिए जो जमीन आवंटित की गई है उसमें से लगभग 364 हेक्टेयर जमीन में जंगल है। यही जंगल वाली जमीन विवाद की वजह बनी है। वर्तमान स्थिति यह है कि जिस स्थान पर खनन होना है वहां करीब दो लाख पंद्रह हजार पेड़ लगे हैं। स्थानीय लोग किसी भी कीमत पर इन पेड़ों को हीरा खनन के नाम पर काटने के विरोध में है। स्थानीय लोगों ने सोशल मीडिया पर इसके विरोध में बाकायदा अभियान चलाया हुआ है। जिसमें पर्यावरण के साथ ही बक्सवाहा के जंगल को बचाने के लिए लोगों से सहयोग और समर्थन की अपील की जा रही है। बहरहाल इस अभियान ने असर दिखाना भी शुरू किया है और इस मुहिम को देशभर से समर्थन मिलने लगा है। बता दें कि बक्सवाहा का क्षेत्र करीब 175 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है।
बिरला ग्रुप ने ग्लोबल टेंडर के जरिए  हासिल किया प्रोजेक्ट
उल्लेखनीय है कि प्रदेश के छतरपुर जिले के बक्सवाहा ब्लॉक में बंदर प्रोजेक्ट को देश में हीरा खनन का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट माना जाता है। इस प्रोजेक्ट के तहत हीरा खनन के लिए ग्लोबल टेंडर में एस्सेल माइनिंग एवं इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने खनन का अधिकार हासिल किया है। ईएमईएल आदित्य बिरला ग्रुप की ही एक कंपनी है।  इस परियोजना पर बिरला ग्रुप लगभग पच्चीस सौ करोड़ रुपए का निवेश करने जा रहा है। इसके तहत बड़ी राशि राज्य सरकार को मिलेगी। बता दें कि हीरा खनन का अधिकार कंपनी ने वर्ष 2019 में हासिल किया था। पूर्व में एक ऑस्ट्रेलियाई कंपनी रियो टिंटो ने यहां खनन के लिए करार किया था लेकिन विरोध के चलते उसे अपना काम समेटना पड़ा था।

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