आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश बनाने में अफसरशाही का अड़ंगा

आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश

-बिजली कंपनियों द्वारा प्रदेश में संचालित उद्योगों से उत्पाद न लिया जाकर अन्य राज्यों से खरीदी की तैयारी की जा रही है

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम।
प्रदेश को आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश बनाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भले ही दिन-रात मेहनत कर रहे हैं, लेकिन अफसरशाही का अड़ंगा उन पर भी भारी पड़ता दिख रहा है। अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए एक ओर जहां उद्योगों को बढ़ावा देने की जरूरत है वहीं उनके उत्पादों की मार्केटिंग और खरीदी करने की भी जरूरत है। लेकिन अफसरों की मनमर्जी के कारण अब मुख्यमंत्री चौहान का संकल्प पूरा होता दिखाई नहीं दे रहा। हाल ही में एक मामला विद्युत विभाग का सामने आया है। यहां अफसरों द्वारा प्रदेश के उद्योगों से सामान ना खरीदते हुए दूसरे राज्यों से खरीदी के लिए टेंडर बुलाए जा रहे हैं। यानी विद्युत वितरण कंपनियों के अफसर इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते कि मध्यप्रदेश आत्मनिर्भर बने। बता दें कि प्रदेश में बिजली के पोल बनाने वाली दर्जनों इकाइयां हैं। हालांकि कोरोना की वजह से कुछ बंद हैं, लेकिन कुछ इकाइयां संचालित हो रही हैं। बिजली कंपनियों के अफसर की मनमर्जी के चलते यहां के बिजली पोल निर्माताओं से पोल नहीं खरीदे जा रहे हैं। बिजली कंपनियों के अधिकारियों की मानें तो राजस्थान से बिजली के खंबे खरीदने के लिए टेंडर बुलाए जा रहे हैं। इसके पीछे उनके द्वारा तर्क दिया जा रहा है कि मध्य प्रदेश में बनने वाले पोल से राजस्थान में बनने वाले खंबे ज्यादा मजबूत है। इन खंभों पर तार जमीन से ज्यादा ऊंचाई पर रहते हैं। हालांकि मध्य प्रदेश लघु उद्योग संघ ने बिजली कंपनियों के इन तर्कों को खारिज करते हुए कहा है कि यहां न तो राजस्थान जैसे बवंडर और तूफान आते हैं और ना ही इतनी ऊंचाई की जरूरत है, जितनी कि कंपनियों द्वारा बताई जा रही है।
अब अफसरों को पोल की क्वालिटी पर भरोसा नहीं
दरअसल प्रदेश में एलटी लाइन के लिए आठ मीटर/140 केजी पीसीसी पोल और 11 केवी लाइन के लिए 9.1 मीटर/280 केजी पीसीसी पोल का इस्तेमाल होता आया है। यह लोड कैपेसिटी और विंड प्रेशर के आधार पर फिट पाए जाते हैं। यही नहीं इन बिजली के खंभों को मैनिट की टीम ने परीक्षण के बाद उपयोग की क्लीयरेंस दी हुई है जबकि बिजली कंपनियों के अफसरों को अब इन पोल पर ही भरोसा नहीं रहा। इसी कारण से अब दूसरे राज्य से टेंडर के जरिए खरीदी की तैयारी की जा रही है। दिलचस्प है कि राज्य में बनने वाले जिन बिजली के खंभों को पिछले साठ वर्षों से उपयोग में लाया जा रहा है अब बिजली कंपनियों को इन पर ही भरोसा नहीं है।
इसलिए उठ रहे सवाल
उल्लेखनीय है कि प्रदेश की इकाइयों में बनने वाले 8 मीटर/140 खंबों की कीमत 1385 रुपए है। इसमें 18 प्रतिशत जीएसटी और सौ किलोमीटर तक धुलाई का खर्च जोड़ने पर कुल लागत अट्ठारह सौ रुपए आएगी। जबकि राजस्थान से आयातित खंबों की कीमत इक्कीस सौ रुपए है। इसमें 18 प्रतिशत जीएसटी और राजस्थान से भोपाल तक पांच सौ किलोमीटर की ढुलाई का खर्च जुड़ने के बाद इसकी कीमत छत्तीस सौ रुपए होती है। इसी तरह 9.1 मीटर/280 केजी के खंबे मध्यप्रदेश में उसी कीमत पर उपलब्ध हैं जबकि राजस्थान में अलग कीमत है। यानी कीमतों में भारी अंतर है। यही वजह है कि अब कंपनियों की मंशा पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।

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