बजट की राशि खर्च नहीं… अनुपूरक बजट दे दिया

  • कैग ने सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर उठाया सवाल
  • गौरव चौहान
अनुपूरक बजट

नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा है कि जो विभाग पूरी राशि खर्च नहीं कर पा रहे हैं, तो उन्हें अनुपूरक बजट क्यों दिया जा रहा है। इस गलती से वित्तीय बोझ बढ़ेगा। सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार मप्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में गृह विभाग, वित्त विभाग, भू-राजस्व, जिला प्रशासन, कृषि कल्याण, स्वास्थ्य विभाग, पीएचई, नगरीय विकास एवं आवास, स्कूल शिक्षा, ग्रामीण विकास, जनजातीय कार्य, पंचायत एवं महिला बाल विकास को जो मूल बजट मिला था, वे उसे तो खर्च ही नहीं कर पाए ऊपर से उन्हें अनुपूरक बजट भी दे दिया गया।
 बजट नियमावली में यह नियम है कि बजट खर्च होने का हिसाब-किताब बजट नियंत्रण अधिकारियों के पास रहना चाहिए, लेकिन यहां बजट नियंत्रण अधिकारियों के बजाए संचालनालय कोष एवं लेखा द्वारा आंकड़ों का मिलान कर रहा है, जिसके कारण वर्ष 2022-23 के दौरान 2 लाख 36 हजार 395 करोड़ सचित निधि के अंतर्गत कुल व्यय 2 लाख 68 हजार 699 करोड़ का 87.98 प्रतिशत प्राप्ति में 1 लाख 77 हजार 121 करोड़ दर्शाया गया।
 दर्जभर विभागों ने लिया बजट से ज्यादा पैसा
सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार गृह विभाग, वित्त विभाग, भू-राजस्व, जिला प्रशासन, कृषि कल्याण, स्वास्थ्य विभाग, पीएचई, नगरीय विकास एवं आवास, स्कूल शिक्षा, ग्रामीण विकास, जनजातीय कार्य, पंचायत एवं महिला बाल विकास आदि विभागों ने बजट की राशि खर्च किए बिना ही अनुपूरक बजट से भी राशि ले ली। गृह विभाग को बजट में 8,745 करोड़ रुपए मिले थे। जिसमें से उसने 7,665 करोड़ खर्च किए। विभाग के पास 1,145 करोड़  रुपए बचे थे, लेकिन अनुपूरक बजट से 6634 करोड़ ले लिए। इस तरह वित्त विभाग ने 3,846 करोड़ शेष रहते हुए 1,980 करोड़ रूपए लिए। वहीं राजस्व विभाग ने अनुपूरक बजट से 136,24 करोड़, कृषि कल्याण ने 6,710 करोड़, स्वास्थ्य विभाग ने 1,676 करोड़, पीएचई विभाग ने 2000 करोड़, नगरीय विकास ने 2,832 करोड़, स्कूल शिक्षा ने 03.25 करोड़, ग्रामीण विकास ने 2,121 करोड़, जनजातीय कार्य ने 451.22 करोड़, पंचायत विभाग ने 1,472 करोड़ और महिला विकास ने 1,077 करोड़ रुपए की राशि अनुपूरक बजट से ली है।
फिर भी दे दिया 18548 करोड़
मप्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में गृह विभाग, वित्त विभाग, भू-राजस्व, जिला प्रशासन, कृषि कल्याण, स्वास्थ्य विभाग, पीएचई, नगरीय विकास एवं आवास, स्कूल शिक्षा, ग्रामीण विकास, जनजातीय कार्य, पंचायत एवं महिला बाल विकास को मूल बजट में एक लाख 45 हजार 159 करोड़ का प्रावधान किया था। सीएजी की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि इन विभागों ने बजट का एक लाख 36 हजार 864 करोड़ रुपए ही खर्च किया। इस तरह विभागों के खातों में 26 हजार 843 करोड़ गए शेष बचने के बाद भी इन्होंने सरकार से अनुपूरक बजट में 18 हजार 548 करोड़ रुपए ज्यादा का प्रावधान करवा लिया। यानी बजट राशि खर्च नहीं होने के बाद भी अनुपूरक में पैसा लेकर इसका बंदरबाट किया। उधर, सरकार ने राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम का पालन नहीं किया। इसका नतीजा यह हुआ कि वर्ष 2022-23 के दौरान राजस्व अधिशेष पिछले वर्ष की तुलना में 15.04 प्रतिशत कम हो गया, जबकि 2022-23 के दौरान राजकोषीय घाटा 9.91 प्रतिशत बढ़ गया। सीएजी सूत्रों के अनुसार, विभागों ने लेखों में गलत वर्गीकरण करते हुए 2,481 करोड़ के खर्च को राजस्व व्यय के अंतर्गत दर्ज करने के बजाए पूंजीगत व्यय में दर्ज कर लिया। इसी तरह 89.25 करोड़  की राशि को गलत तरीके से पूंजीगत व्यय के बजाए राजस्व व्यय के रूप में बजट में खर्च किया जाना बताया।
बढ़े भ्रष्टाचार के मामने
कैग की रिपोर्ट के अनुसार मप्र सरकार के बजट का बंदरबाट करने में नौकरशाह भी पीछे नहीं है। बिना हिसाब-किताब ही सरकार अनुपूरक बजट में विभागों को पैसा बांट देती है। चाहे विभाग में इस पैसे का दुरुपयोग ही क्यों ना हो रहा हो। इसी कारण भ्रष्टाचार के मामले सामने आते हैं, क्योंकि अंतिम समय में बजट खर्च करने में आनन-फानन में ठेकेदारों सहित अन्य को पेमेंट कर दिया जाता है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जिसमें एक दर्जन विभागों के पास बजट से बची हुई राशि 26 हजार 843 करोड़ रखी होने के बाद भी उन्होंने अनुपूरक में 18 हजार 548 करोड़ रुपए ले लिया। 31 मार्च 2023 तक अफसरों के 821 व्यक्तिगत खाते अस्तित्व में थे और इन खातों में 2,353.57 करोड़ रुपए जमा थे। इन 821 खातों में से 199 व्यक्तिगत जमा खाते जिनमें कुल शेष राशि 214.39 करोड़ रुपए तो तीन साल से अधिक समय से असंचालित थी। यानी इसका उपयोग ही नहीं किया गया और बैंक खातों में अफसरों ने पैसा जमा रखा। उपयोगिता प्रमाण पत्र केंद्र सरकार को भेजा जाता है, इसके बाद ही वह राज्य को राशि आवंटित करता है, लेकिन वर्ष 2023 में बजट राशि खर्च करने के बावजूद एक निर्धारित समय अवधि के भीतर सर्शत अनुदानों के विरुद्ध 20 हजार 685 करोड़ में से 19 हजार 965 करोड़ बकाया उपयोगिता प्रमाण पत्र विभागों में लंबित थे। इस तरह का फर्जीवाड़े का खुलासा सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में किया है।

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