दो दशक में बसपा के हाथ से खिसक चुका है 6% कोर वोटर

बसपा
  • भाजपा व कांग्रेस को हुआ फायदा

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। इस बार भी प्रदेश की सभी 29 सीटों पर बसपा चुनावी मैदान में उतर रही है। एक समय सियासी तीसरी ताकत के रुप में उभरने वाली इस पार्टी की मु_ी अब पूरी तरह से खाली ही नजर आती है। इसकी वजह है उसके कोर वोटर का उसके हाथ से खिसक जाना। इसका फायदा भाजपा व कांग्रेस दोनों को ही मिला है। हाल ही में चार माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में भी इसका असर साफतौर पर बसपा के प्रर्दशन पर दिखा है।
बसपा इस बार अपना खाता तक नहीं खोल सकी है। प्रदेश में बीते दो दशक में अपने करीब छह फभ्सदी कोर वोट बैंक से हाथ धो बैठी है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश अनुसूचित जाति के लिए 35 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। इन्ह सीटों पर बसपा अपना तकरीबन 9 फीसदी कैडर वोट मानती है। जिनके बल पर बसपा ने प्रदेश में कई बार अप्रत्याशित प्रदर्शन करते हुए सासंद से   लेकर  विधायक तक के पदों पर जीत दर्ज की है। दो मौके ऐसे आए जब प्रदेश में उसके विधायकों की संख्या सात तक पहुंची है। पिछली बार भी उसके दो विधायक जीते थे, लेकिन इस बार उसका एक भी विधायक नहीं जीत सका है लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा का खाता भी नहीं खुल सका और उसका वोट प्रतिशत कम होकर 3.35 तक पहुंच गया, जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा को 5.01 प्रतिशत वोट मिले थे। यानि कि बसपा के अपने आंकलन के आधार पर 16.05 प्रतिशत कोर वोट बैंक में 12.70 फीसदी वोट बैंक हाथ से जा चुका है। जानकारों की माने तो इसकी बड़ी वजह है बसपा की सोशल इंजीयिरिंग । इसके नाम पर जिस तरह से कदम उठाए गए हैं, उसका नतीजा यह हुआ कि ऐसे लोगों को बसपा से टिकट दिए जाने लगे, जो उसकी विचारधारा से वास्ता नहीं रखते रहे और कांग्रेस या भाजपा से टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर बसपा की शरण में पहुंचे और टिकट लेकर मैदान में उतर गए, जिससे बसपा का वोट बैंक भ्रमित होकर दूसरे दलों की झोली में जाने लगा।
69 सीटों पर प्रभावी बसपा
अगर वर्ष 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों पर नजर डालें, तो उन तीनों चुनावों में बसपा ने प्रदेश की तकरीबन 69 सीटों पर अपना वोट शेयर 10 प्रतिशत तक रखने में कामयाबी पाई है। वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित 35 में 29 सीटों पर वोटिंग प्रतिशत काफी चढ़ा, लेकिन वह बसपा की जगह भाजपा व कांग्रेस के खाते में चला गया।
नहीं दिखती है गंभीर
राजनीति पर गहरी नजर रखने वालों की माने तो बसपा इस लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में वैसी गंभीर नहीं है, जो पहले रहा करती थी। इस बार पार्टी ने अपने जितने भी प्रत्याशी घोषित किए हैं, उनमें से फिलहाल अब तक कोई भी फाइट में देखने को नहीं मिल रहा है। हालांकि बसपा के बारे में ऐसा माना जाता है कि वह भले ही प्रचार प्रदर्शन में पीछे रहे, लेकिन उसका कैडर वोट पार्टी में ही जाता है। उधर, इस मामले में बसपा के राज्यसभा सांसद एवं बसपा के प्रदेश प्रभारी रामजी गौतम का कहना है कि इस बार चुनाव में बसपा एक बार फिर से चौकाएगी। इस बार हमारे कुछ सांसद लोकसभा में प्रदेश का प्रतिनिधित्व करेंगे और हमारा वोट प्रतिशत 5 से 6 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा।
इन सीटों से उम्मीद
बसपा विंध्य की चार लोकसभा सीटों में से सतना से एक बार और रीवा से तीन बार अपना सांसद जीता चुकी है। यहां बसपा पुराना इतिहास दोहराना चाहती है। विशेषकर पार्टी ने सतना से पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी को अपना प्रत्याशी बनाकर जातिगत समीकरण के आधार पर जीत पाने की कोशिश की है। मुरैना, बालाघाट पर भी बसपा को उम्मीद है कि वह कांटे की टक्कर देगी।

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