- राजनीतिक नियुक्तियों का काउंटडाउन शुरू
- गौरव चौहान

मप्र में आने वाले दिनों में जल्द ही राजनीतिक नियुतियां की जाएंगी। इसके लिए दावेदारों के नामों पर मंथन हो चुका है। भाजपा सूत्रों के अनुसार, सबसे पहले स्थानीय निकायों और शिक्षण संस्थानों में राजनीतिक नियुक्तियां शुरू होने की संभावना है। इसको लेकर सरकार और संगठन के बीच गहन मंथन पिछले दो महीने से चल रहा है। फिलहाल पार्टी हाईकमान ने बिहार विधानसभा चुनाव की वोटिंग पूरी होने तक नियुक्तियों पर रोक लगाई है। माना जा रहा है कि मतदान प्रक्रिया खत्म होते ही प्रदेश में सत्ता और संगठन की बड़ी बैठक होगी, जिसमें राजनीतिक नियुक्तियों पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, नियुक्तियों की तैयारी पहले ही पूरी कर ली गई थी, लेकिन बिहार चुनाव के चलते यह प्रक्रिया रोक दी गई थी। प्रदेश प्रभारी डॉ. महेंद्र सिंह, क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल और हितानंद की चुनावी जिम्मेदारी के कारण मंथन टल गया था। अब 10 से 15 नवंबर के बीच इनके प्रदेश दौरे के दौरान नियुक्तियों पर चर्चा की जाएगी। इसी दौरान युवा मोर्चा और महिला मोर्चा सहित दो प्रमुख मोर्चों पर भी सहमति बनने की संभावना है। सूत्र बताते हैं कि दिल्ली से हरी झंडी मिलते ही नामों का ऐलान शुरू कर दिया जाएगा।
भाजपा ने विधायकों से मांगे नाम
मप्र में राजनीतिक नियुक्तियों की प्रक्रिया अंतिम दौर में है। भाजपा सूत्रों के मुताबिक जनभागीदारी समितियों में अध्यक्ष और नगरीय निकायों में एल्डरमैन की नियुक्तियों में विधायकों की पसंद का ध्यान रखा जाना है। इसके चलते विधायकों से नाम भी मांगे जा रहे हैं। नियुक्तियों की प्रक्रिया बिहार चुनाव के नतीजे आने के बाद शुरू हो जाएगी। गौरतलब है कि प्रदेश के 500 से अधिक सरकारी कॉलेजों में वर्ष 2022 में जनभागीदारी समितियों में नियुक्तियां की गई थी। इनका कार्यकाल पूर्ण हो चुका है। इसी महीने 3 नवंबर को 300 से अधिक जनभागीदारी समितियों का कार्यकाल पूर्ण हो चुका है। अन्य कॉलेजों की जनभागीदारी समितियों का कार्यकाल भी जल्द पूरा हो जाएगा। इसके चलते सरकार ने नई नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर दी है। जनभागीदारी समितियों का कार्यकाल तीन साल के लिए होता है। इसके साथ ही अधिकांश नगर निगमों, नगर पालिकाओं और नगर परिषदों में नवंबर में अधिकांश नियुक्तियां पूरी करने की प्रक्रिया भी तय हो गई है। इस प्रकार प्रदेशभर में सैकड़ों भाजपा कार्यकर्ताओं और संगठन से जुड़े सक्रिय नेताओं को स्थानीय शासन में भागीदारी का अवसर मिलेगा। इन नियुक्तियों के बाद निगम मंडल और बोर्ड में खाली पड़े पदों पर नियुक्तियां शुरू हो जाएंगी। विधानसभा चुनाव से पहले सत्ता और संगठन मिलकर भाजपा कार्यकर्ताओं और दिग्गज नेताओं को साधने में जुट गए हैं। कांग्रेस का पाला बदलकर भाजपा में आने वालों के हाथ अभी भी खाली है। ऐसे में इन नेताओं के पास अब राजनीतिक नियुक्ति का अंतिम विकल्प बचा है।
दिग्गजों के बीच सामंजस्य का होगा प्रयास
इस बीच क्षेत्रीय क्षत्रपों ने अपने समर्थकों को एडजस्ट कराने के लिए लॉबिंग तेज कर दी है। विधायकों, सांसदों और पूर्व मंत्रियों तक ने सक्रियता बढ़ा दी है। सबसे बड़ी चुनौती दिग्गज नेताओं शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों के बीच सामंजस्य बिठाने की है। वहीं, भाजपा में शामिल हुए कई पूर्व कांग्रेसी नेताओं को अब भी किसी पद की प्रतीक्षा है। ऐसे नेताओं के लिए राजनीतिक नियुक्तियां ही आखिरी उम्मीद मानी जा रही हैं। स्थानीय नियुक्तियों के तहत भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर नगर निगमों में 12-12 एल्डरमैन नियुक्त किए जाएंगे, जबकि मुरैना, सिंगरौली, रीवा, सतना, छिंदवाड़ा, उज्जैन, सागर, बुरहानपुर, खंडवा, देवास, रतलाम, कटनी नगर निगमों में 8-8 एल्डरमैन की नियुक्तियां की जाना है। इसके अलावा 99 नगर पालिकाओं में से लगभग 70 नगर पालिकाओं में 6-6 एल्डरमैन और 264 में से लगभग 180 नगर परिषदों में 4-4 एल्डरमैन के नाम तय करने की कवायद जारी है। दस लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगर निगमों में 12-12 एल्डरमैन नियुक्त किए जा सकते हैं। नगर पालिकाओं में यह संख्या कम होती है। मप्र में नगरीय निकायों की संख्या 400 से अधिक है। सूत्रों के अनुसार, भाजपा संगठन और सरकार के बीच हुए समन्वय में यह बात भी स्पष्ट हुई है कि इन नियुक्तियों के माध्यम से भाजपा के स्थानीय नेताओं को उपकृत किया जाएगा। खासकर ऐसे नेताओं को जो संगठन में लगातार सक्रिय रहे हैं, लेकिन हाल ही में घोषित जिला कार्यकारिणी में जगह नहीं पा सके हैं। पार्टी ने अब तक 36 जिलों की कार्यकारिणी घोषित की है, इन जिलों में सबसे पहले एल्डरमैन की नियुक्तियां की जाएगी। भाजपा इस प्रक्रिया को एक राजनीतिक रणनीति के रूप में देख रही है, जिला कार्यकारिणी में स्थान नहीं मिलने से कार्यकर्ताओं में अंदरूनी नाराजगी को दूर किया जा सके। इसी क्रम में, प्रदेश के लगभग 300 कॉलेजों में जनभागीदारी समितियों के गठन की तैयारी भी जोरों पर है।
पूर्व कांग्रेसियों के हाथ अभी भी खाली
भाजपा में नियुक्तियों का दौर शुरू हो गया है, लेकिन कांग्रेस का पाला बदलकर भाजपा में आने वालों के हाथ अभी भी खाली है। ऐसे में इन नेताओं के पास अब राजनीतिक नियुक्ति की अंतिम विकल्प बचा है। फिर चाहे पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी हो या पूर्व मंत्री रामनिवास रावत। दोनों ही संगठन से बड़े दायित्व की उम्मीदें बांधे बैठे हैं। इनके साथ ही दलबदलने वाले समर्थक भी वर्चस्व की जंग में टकटकी लगाए बैठे हैं। इस बीच क्षेत्रीय क्षत्रपों ने अपने समर्थकों को एडजस्ट कराने के लिए लॉबिंग तेज कर दी है। विधायकों, सांसदों और पूर्व मंत्रियों तक ने सक्रियता बढ़ा दी है। सबसे बड़ी चुनौती दिग्गज नेताओं शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों के बीच सामंजस्य बिठाने की है। वहीं, भाजपा में शामिल हुए कई पूर्व कांग्रेसी नेताओं को अब भी किसी पद की प्रतीक्षा है। ऐसे नेताओं के लिए राजनीतिक नियुक्तियां ही आखिरी उम्मीद मानी जा रही हैं।
