- पंकज मुकाती
भारतीय जनता पार्टी चुनाव में प्रयोग के लिए जानी जाती है। इसे आप प्रबंधन, निर्ममता कुछ भी मानें। पर पार्टी करती वही है, जो उसको ठीक लगता है। लक्ष्य एक ही -जीत। जीत को हासिल करने के लिए वो किसी भी कठोरता के लिए तैयार रहती है। मुलाहिजा उसके नेचर में नहीं है। कोई नेता कितनी बड़ी जीत हासिल करके आया हो, उसका कितना भी नाम हो इससे पार्टी को फर्क नहीं पड़ता। कुछ लोग ये भी कहते हैं बीजेपी मोहरे चलती है। उसे यूज और थ्रो में मजा आता है। महल, मंत्री और मिजाज के हिसाब से पार्टी आस्थावान कार्यकर्ताओं को भी भूला देती है। हम देखते हैं तीन अलग-अलग ऐसे विजेताओं के बारे में जो पिछले चुनाव में जोरदार ढंग से जीते। इन्होने विपक्ष के कद्दावर नेताओं को हराया और महल ढहा दिया। किले ध्वस्त कर दिए, पर 2019 के इन सूरमाओं को बीजेपी ने एक झटके में बाहर बैठा दिया। दिलचस्प ये है कि तीनों अलग-अलग फील्ड से राजनीति में आये। एक अफसर रहा, दूसरी साध्वी और तीसरा जमीनी कार्यकर्ता । तीनों को मजबूत सीट से उतारा। तीनों जीते। 2024 में तीनों का टिकट तो काटा ही, तीनों कहीं किसी चुनाव प्रचार में भी नहीं दिख रहे। तीनों अपने-अपने संसदीय क्षेत्र में ही गुमनाम बना दिए गए हैं।
महाराज के दबाव में लोकसभा बदर कर दिए गए केपी: दूसरा बड़ा नाम है केपी सिंह यादव का। केपी यादव ने गुना से बीजेपी के टिकट पर लडक़र ज्योतिरादित्य सिंधिया को हरा दिया था। महल की सियासत को हिलाने वाले इस सूरमा को पार्टी ने महल के ही दबाव में बाहर कर दिया। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद से ही केपी निशाने पर रहे। उनको निपटाने की पूरी कोशिश हर वक्त खुलेआम सिंधिया महाराज करते रहे। केपी यादव का गुना में काम भी अच्छा रहा। फिर भी पार्टी ने महल को तवज्जो देते हुए लोकतंत्र का गला घोंट दिया। केपी यादव का न सिर्फ टिकट काटा बल्कि, उन्हें लोकसभा बदर कर दिया गया। सूत्रों के मुताबिक महाराज नहीं चाहते थे कि केपी यादव इस इलाके में भी चुनाव के दौरान दिखे। पिछली बार महाराज को धूल चटाने वाले इस कार्यकर्ता को इनाम देने के बजाय पार्टी ने लोकसभा बदर करके होशंगाबाद सीट पर प्रचार करने भेज दिया।
साध्वी प्रज्ञा को प्रचार लायक भी नहीं समझा
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर अब बेरोजगार हैं। उन्हें किसी भी सभा में बुलाया जा रहा। नाराज होकर वे कभी श्मशान की दीवार तोड़ती दिख रही हैं, तो कभी शराब दुकान पर ताला लगाती नजर आती हैं। हिंदुत्व की प्रखर पैरोकार, मालेगांव ब्लास्ट के आरोप में जेल में रही। इसके चलते कम उम्र में ही उन्हें कई गंभीर बीमारियों ने घेर लिया।
2019 में भोपाल सीट से साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को हराया था। उनके बीच मुकाबला तगड़ा होता पर साध्वी की हिंदुवादी छवि के आगे राजा हार गए। दिग्विजय फिर राजगढ़ से चुनाव में हैं। पर विजेता रही साध्वी को बीजेपी ने टिकट लायक नहीं समझा। टिकट तो ठीक है पर पार्टी में किसी भी पद, प्रतिष्ठा लायक नहीं समझा। गोडसे को सही बताने के उनके बयान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मैं कभी दिल से साध्वी को माफ नहीं कर सकूंगा।
भूरिया का गढ़ ढहाने वाले डामोर हो गए गुमनाम
झाबुआ-रतलाम सीट से बीजेपी को पहली जीत दिलाने वाले गुमान सिंह डामोर का अब कहीं कोई अता पता नहीं है। भाजपा ने अफसरी छोडक़र राजनीति मेंआये डामोर की पिछली जीत को दरकिनार कर उनका टिकट काट दिया। डामोर की हालत ये है कि वे लोकसभा क्षेत्र तो छोडिय़े सोशल मीडिया पर भी कहीं नहीं दिख रहे। कांतिलाल भूरिया इस सीट से लगातार छह बार जीते हैं। ऐसे दिग्विजय भूरिया के गढ़ को ढहाने वाले गुमान सिंह डामोर को पार्टी ने टिकट तो ठीक किसी भी लायक नहीं छोड़ा। गुमान अब गुमनाम हो चुके हैं।