
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। शिवराज सरकार द्वारा कल आयोजित किए जा रहे जनजातीय सम्मेलन के बहाने भाजपा आदिवासी सुमदाय पर पकड़ और मजबूत करने के प्रयास कर रही है। खास बात यह है कि इस सम्मेलन में खासतौर पर उन इलाकों पर फोकस किया जा रहा है, जहां बीते आम विधानसभा चुनाव में भाजपा को 25 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था। इस नुकसान की वजह से ही भाजपा को 15 माह के लिए प्रदेश की सत्ता से भी बाहर होना पड़ा था। इन सीटों का नुकसान भाजपा को प्रदेश के निमाड़ व महाकौशल अंचल में हुआ था, इस कारण से ही इस बार सम्मेलन में दो लाख लोगों में से डेढ़ लोगों को इन्हीं दोनों अंचलो से बुलाया गया है। इन दोनों ही अंचलों का अधिकांश इलाका आदिवासी बाहुल्य है।
यह आयोजन भी बीते चुनाव में हुए सीटों के नुकसान की अगले चुनाव में भरपाई करने के लिए ही किया जा रहा है। फिलहाल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए दो साल का समय शेष है। इस सम्मेलन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो संबोधित करेंगे ही , साथ ही मंच पर प्रदेश भर के आदिवासी नेताओं को जगह दी जा रही है , जिससे यह संदेश दिया जा सके की भाजपा ही आदिवासियों की मूल रूप से पार्टी है। इस सम्मेलन में उनके लिए कई तरह की घोषणाएं भी की जाएंगी। चुनाव में दो साल का समय होने से घोषणाओं पर अमल करने का समय भी मिल सकेगा। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि अगर वे अपने इस मकसद में सफल रहे तो पार्टी को अगले चुनाव में 50 फीसदी तक मतदाताओं का समर्थन मिल जाएगा। अगर ऐसा होता है तो फिर भाजपा को विपक्ष से मिलने वाली चुनौती से कोई खतरा नही रह जाएगा। इससे प्रदेश में लोकसभा चुनाव में भी भाजपा अपना पुराना जीत का रिकॉर्ड दोहरा सकेगी। दरअसल मप्र में इन दिनों करीब 22 फीसदी आबादी आदिवासी वर्ग की है। इस वर्ग के लिए प्रदेश की 230 विस सीटों में से 47 सीटें आरक्षित हैं। यही नहीं इस वर्ग का 90 सीटों पर व्यापक प्रभाव भी है। इन सीटों पर वे निर्णायक भूमिका में रहते हैं। बीते विधानसभा के आम चुनाव में भाजपा को इन 90 आदिवासी बहुल सीटों में से महज 34 सीट पर ही जीत मिली थी, जिसकी वजह से उसे सरकार से बाहर होने को मजबूर होना पड़ा था, जबकि इसके पहले 2013 में भाजपा को 59 सीटों पर जीत मिली थी।
अगर देखा जाए तो बीते चुनाव में भाजपा को इस तरह से 25 सीटों का नुकसान हुआ था, जिसकी वजह से वह बहुमत के आंकड़े (116 सीटें) से 7 सीट पीछे रह गई थी। इसी तरह से अगर बीते लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो मप्र में भले ही भाजपा को 58.5 फीसदी मत मिले हों लेकिन इस मामले में भी प्रदेश देश के चार राज्यों से पीछे रह गया था। इसी तरह से सीट जीतने के मामले में भी प्रदेश पिछड़ कर पांचवें नबंर पर हा था। यह बात अलग है कि मप्र में भाजपा ने 29 में से 28 सीटों पर जीत हासिल की थी , लेकिन वह उन राज्यों में शामिल नहीं हो सका था , जिनमें भाजपा ने सभी की सभी सीटों पर जीत हासिल की थी। अगर मत प्रतिशत के हिसाब से देखें तो इस मामले में हिमाचल पहले स्थान पर रहा था। लोकसभा चुनाव में इस राज्य में भाजपा को सर्वाधिक 69.7 फीसदी मत मिले थे।
इस तरह से देश में भाजपा को बीते लोकसभा चुनाव में कुल 37.7 प्रतिशत मत मिले थे। भाजपा अब अपने मत प्रतिशत को बढ़ाकर 50 फीसदी तक ले जाना चाहती है , जिससे की वजह अजेय बन सके। अगर भाजपा इस लक्ष्य को हासिल कर लेता है तो उसे लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनावों में भी जीत आसानी से मिल जाएगी। वजह भी साफ है बीते विधानसभा चुनावों में भाजपा को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हार का सामना करना पड़ा था। तब चुनाव में भाजपा को राजस्थान में 39.3 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 41.6 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 33.6 प्रतिशत वोट मिले थे। इसी तरह से अगर उप्र के चुनावी परिणाम को देखें तो 2017 में भाजपा को 40 प्रतिशत वोट मिलने पर 312 सीटें मिली थीं। इसी तरह से बीते विस चुनाव में भाजपा को गुजरात में 50 प्रतिशत मत मिले तो भाजपा की सरकार एक बार फिर से बनने का रास्ता साफ हो गया था।
इधर कांग्रेस भी आदिवासी मतदाताओं को लुभाने में पीछे नहीं रहना चाहती है। यही वजह है कि कांग्रेस ने कल ही जबलपुर में आदिवासी सम्मेलन बुलाया है। सम्मेलन में कमलनाथ सहित सभी प्रमुख नेता शामिल हो रहे हैं।
ओबीसी व जनजातीय सुमदाय पर फोकस
आधे से अधिक मतदाताओं का साथ पाने के लिए भाजपा ने अब पिछड़ा वर्ग के अलावा आदिवासी वर्ग पर फोकस किया हुआ है। ओबीसी के लिए आरक्षण की व्यवस्था पहले ही लागू की जा चुकी है और अब आदिवासी वर्ग के लिए सरकार कई तरह की योजनाएं नई शुरू करने जा रही है। केंद्र की मोदी सरकार व राज्य की शिव सरकार द्वारा किए जा रहे इन प्रयासों का फायदा भाजपा को अगले लोकसभा व विधानसभा चुनाव में मिल सकता है। अगर ऐसा होता है तो भाजपा कम से कम 45 प्रतिशत वोट शेयर को हासिल कर सकती है। दरअसल माना जा रहा है कि अगले लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को बिखरे हुए विपक्ष के बजाय साझा विपक्ष से मुकाबला करना पड़ सकता है। भाजपा का दावा है कि उसे वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में ओबीसी से 34 प्रतिशत समर्थन मिला था, जो वर्ष 2019 में बढ़कर 44 प्रतिशत तक पहुंच चुका था।