दमोह जैसी स्थिति से निपटने भाजपा की बूथ स्तर तक नजर

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भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। कहते है दूध का जला छांछ भी फूंक- फूंक कर पीता है। इसी तरह की स्थिति अब भाजपा में मध्यप्रदेश की चार सीटों पर हो रहे उपचुनाव में दिख रही है। दमोह  उपचुनाव में मिली करारी हार जैसी स्थिति से बचने के लिए ही अब प्रदेश संगठन ने उपचुनाव की चारों सीटों के हर बूथ स्तर तक नजर रखने की व्यवस्था बनाई है। इसकी वजह है पार्टी के भितरघातियों पर नजर रखकर मतदान के पहले सभी तरह की खामियों को दूर करना है।
दरअसल उपचुनाव में तीन विधानसभा सीटों के अलावा एक लोकसभा सीट शामिल हैं। अगर इस लोकसभा सीट के तहत आने वाली विधानसभा की आठ सीटों को मिला लिया जाए तो उनकी कुल संख्या 11 हो जाती है। इन सभी में 30 अक्टूबर को मतदान होना है। यही वजह है कि इन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। इनमें खंडवा लोकसभा सीट तो वह सीट है, जिसने भाजपा के पितृ पुरुष कहे जाने वाले स्व. कुशाभाऊ ठाकरे को उपचुनाव के जरिए ही लोकसभा में पहुंचाया था। यह सीट अब भाजपा के चुनौतीपूर्ण बनी हुई है।
हालांकि पूर्व में इस सीट पर भाजपा का लगातार कब्जा रहने से इसे भाजपा की पंरपरागत सीट माना जाता है, लेकिन इस बार हालात कुछ अलहदा बने हुए हैं, जिसकी वजह से भाजपा को इस सीट पर पूरी ताकत लगानी पड़ रही है। इसी तरह की स्थिति तीनों विधानसभा सीटों की भी है। दरअसल भाजपा में चल रहे बदलाव के दौर का प्रयोग इन उपचुनावों में भी किया गया है। इसकी वजह से खंडवा में भाजपा ने सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे पूर्व सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के पुत्र हर्ष की जगह नए चेहरे पर दांव लगाया है। इसी तरह से रैगांव में भी किया गया है, जबकि पृथ्वीपुर और जोबट में दूसरे दलों से पार्टी में आए नेताओं पर दांव लगाया गया है। इसकी वजह से भाजपा में तमाम प्रयासों के बाद भी भितरघात की स्थिति से इंकार नहीं किया जा सकता है।
इसी आंशका के चलते ही भाजपा के रणनीतिकारों ने उपचुनावों में अपने प्रत्याशियों की स्थिति मजबूत करने के लिए थ्री टायर सिस्टम बनाया है। वैसे तो हर चुनावों की तरह इस बार भी प्रदेश स्तर पर संगठन द्वारा चुनावी मैनेजमेंट के लिए समिति बनाई गई है। यही समिति चारों सीटों पर सभाएं कराने से लेकर बड़े नेताओं तक के दौरे तक तय कर रही है। इसके अलावा जिलों के प्रभारी अलग से बनाए गए हैं। इसमें संगठन के पदाधिकारी व विधायकों को रखा गया है , जबकि इसके नीचे विधानसभा प्रभारी बनाकर नगर व ग्राम केंद्र तक नजर रखने का काम किया जा रहा है। यही नहीं पन्ना प्रभारी के साथ इन चुनावों में पन्ना समिति भी गठित की गई है। इस समिति को हर घर तक पहुंचकर पार्टी के पक्ष में मतदान कराने का लक्ष्य दिया गया है।
इसके अलावा सत्ता की ओर से जिले के प्रभारी मंत्रियों के अलावा कई- कई मंत्रियों की भी तैनाती की गई है। संगठन व सत्ता मे बेहतर संगठन बना रहे इसके लिए स्वयं प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा के अलावा , संगठन महामंत्री सुहास भगत, सह संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा भी निचले स्तर तक बैठकें लेने का काम कर रहे हैं। उधर मुख्यमंत्री भी लगातार दौरे कर सभाएं ले रहे हैं।
जोबट खड़ी कर रहा मुश्किल
जोबट विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को कांग्रेस से आयात कर पूर्व मंत्री सुलोचना रावत को मैदान में उतारना अब मुश्किल भरा बन गया है।  इस आदिवासी बहुल्य विस सीट पर चुनावी कमान खुद सुलोचना के बेटे विशाल को दी गई है। उनकी मदद के लिए भाजपा ने चुनावी मैनेजमेंट के विशेषज्ञ माने जाने वाले विधायक रमेश मेंदोला, मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा, विजय शाह को भी लगाया है। इसके बाद भी इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी महेश पटेल लगातार भाजपा के लिए परेशानी की वजह बने हुए हैं। इस सीट पर कहने को तो सभी भाजपाई सक्रिय हैं , लेकिन उनकी कार्यशैली पर संशय बना हुआ है। इसकी वजह से ही सत्ता में होने के बाद भी भाजपा को बार-बार निर्वाचन आयोग भागना पड़ रहा है। हालत इससे समझी जा सकती है कि भाजपा इस सीट पर अलग से एक आब्जर्वर नियुक्त करने की मांग कर रही है।
पृथ्वीपुर और रैगांव में भी कम नहीं हो रही मुसीबत  
पृथ्वीपुर व रैगांव में भी भाजपा को अपने प्रत्याशियों के विरोध की वजह से मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। पृथ्वीपुर में तो भाजपा ने दो साल पहले सपा छोड़कर आने वाले शिशुपाल सिंह यादव पर तो रैगांव में सतना निवासी महिला मोर्चे की जिला महामंत्री प्रतिमा बागरी पर दांव लगाया है। भाजपाई इन दोनों ही प्रत्याशियों को अब भी बाहरी मानकर ही चल रहे हैं। रैगांव में बागरी परिवार की बगावत से भले ही भाजपा को निजात मिल गई हो , लेकिन अब भी कार्यकर्ता संतुष्ट नही दिख रहे हैं। इसके अलावा नाम वापसी तक मची रही खींचतान का असर अभी भी समाप्त नहीं हो पा रहा है। इसकी वजह से भाजपा को इस सीट पर अब भी भितरघात का खतरा दिख रहा है। यही वजह है कि इस सीट पर तो भाजपा को बाहरी फौज तक भेजनी पड़ी है। जबकि पृथ्वीपुर में दावेदारों की नाराजगी अब भी अंदर ही अंदर बनी हुई है। हालात यह हैं कि  इस सीट पर मुख्यमंत्री और प्रदेशाध्यक्ष शर्मा के दौरे भी अब तक अप्रभावी दिख रहे हैं। इसकी वजह से अब संगठन यहां पर पूर्व सीएम उमा भारती की सभाओं को कराने की तैयारी कर रहा है। इस सीट पर भितरघात का नुकसान भाजपा को पहले भी हो चुका है। भाजपा ने बीते चुनाव में भी बाहरी प्रत्याशी का उतारा था, जिसकी वजह से भाजपा की जमानत तक जप्त हो गई थी। इस सीट पर कांग्रेस ने स्थानीय चेहरे के साथ ही पूर्व मंत्री स्व. बृजेंद्र सिंह राठौर के बेटे को उतारा है, जिन्हें परिवार के प्रति सहानुभूति का फायदा मिल रहा है।

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