मोदी के आदिवासी मंत्र से पांच राज्यों में भाजपा तलाशेगी जीत

नरेन्द्र मोदी

भोपाल/हरीश फतेह चंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। बीते रोज भोपाल में हुए जनजातीय गौरव सम्मेलन से देश की सियासत के नए संकेत साफ-साफ मिल रहे हैं। इसकी वजह है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इस महासम्मेलन को सामाजिक परिवर्तन की नई मुहिम से जोड़ दिया जाना। इससे तय हो गया कि सम्मेलन में दिए गए मोदी के आदिवासी मंत्र से ही अब भाजपा देश के नौ राज्यों में तीन साल में होने वाले आम विधानसभा और उसके बाद लोकसभा के चुनावों में जीत तलाशेगी।
इसकी वजह है चुनाव वाले पांच राज्यों में आदिवासी मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या का होना। इनमें अगले साल पंजाब, उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश में तो दो साल बाद जिन राज्यों में चुनाव होने हैं उनमें मध्यप्रदेश, मणिपुर, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा और गुजरात शामिल हैं। यह पांचो राज्य भाजपा के लिए बेहद अहम माने जाते हैं। इनमें से अधिकांश राज्य ऐसे हैं, जहां पर हारजीत का फैसला भी आदिवासी सुमदाय ही करता है। गौरव सम्मेलन में जिस तरह से मोदी ने वर्षों से उपेक्षित आदिवासी समाज को न केवल सम्मान दिया, बल्कि उनको पूरी तरह से सरकार का संबल देने का भरोसा दिलाया है, उससे अब यह तय माना जा रहा है कि इस समाज के साथ नाइंसाफी नहीं होने दी जाएगी। मोदी के भाषण से निकलने वाले वाक्यों ने बता दिया है कि आने वाले समय में केंद्र सरकार और भाजपा का पूरा फोकस इसी जनजातीय समाज पर रहने वाला है।
भाजपा के रणनीतिकार से लेकर स्वयं मोदी भी जानते हैं कि इस वर्ग का अगर उन्हें पूरी तरह से साथ मिल गया तो अगले तीन सालों में जिन नौ राज्यों और लोकसभा के चुनाव होने हैं उनमें भाजपा का परचम आसानी से फहर सकता है। भाजपा की इस कवायद को विपक्षी दलों की उस योजना के जवाब के रूप में भी देखा जा रहा है, जिसके तहत विपक्ष मिलकर आगामी चुनावों में भाजपा के सामने सामूहिक रूप से चुनौती देने की तैयारी कर रहा है। ऐसे में प्रधानमंत्री के मंच से आदिवासी योद्धाओं को याद करना और अब तक उन्हें विस्मृत करने के आरोप कांग्रेस पर लगाकर हमला करने से सियासत के नए समीकरणों की ओर इशारा होता दिख रहा है। मोदी ने अपने चिर-परिचित अंदाज में आजादी के संग्राम में देशभर के आदिवासी समुदायों के संघर्ष को याद करते हुए कहा कि इसके बाद भी  स्वतंत्रता के इतिहास में इन नायकों को महत्व नहीं दिया गया। दरअसल देश में आजादी के बाद कई दशकों तक कांग्रेस की सरकार ही रही है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जब आदिवासियों के सम्मान पर सवाल किए जाते हैं तो कांग्रेस के पास उसका कोई उत्तर ही नहीं होता है। यह तो तय है कि अब भगवान बिरसा मुंडा की जन्मतिथि पर होने वाले आयोजनों के बहाने शहरों से गांवों की गलियों तक उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों पर ध्यान जाएगा ही, जिन्हें कांग्रेस शासन में सम्मान के नाम पर पेंशन और कुछ सुविधाएं ही देकर पार्टी के चुनिंदा चेहरों तक सीमित कर रखा था। मोदी सरकार द्वारा भगवान बिरसा मुंडा को महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल और डॉ.भीमराव आंबेडकर के समकक्ष लाकर खड़ा करने से आदिवासियों के दिलों में स्थाई जगह बनाने का अचूक दांव चला गया है। दरअसल इसी आदिवासी वोट बैंक की वजह से ही कांग्रेस ने कई दशक तक देश पर राज किया। इस अवसर पर मोदी ने आदिवासियों के लिए  ‘राशन आपके द्वार योजना का शुभारंभ करते हुए उनकी सरकार  द्वारा आदिवासी गांवों तक सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार की शुरू की गई योजनाओं को भी गिनाया। इसका असर अगले साल की शुरू आत में ही उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड सहित पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव में पूरी तरह से पड़ना तय माना जा रहा है। यह बात अलग है कि ये वे राज्य हैं, जहां पर आदिवासी वर्ग के मतदाता तो कम हैं, लेकिन स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान का मुद्दा असरकारक रह सकता है। प्रधानमंत्री के भाषण की एक खास बात यह रही कि उनके द्वारा जिस तरह से आदिवासियों द्वारा एक राजकुमार को मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनाने का उल्लेख किया गया , उससे आदिवासी समाज को हिंदू धर्म से ही जुड़े रहने का रास्ता और मजबूत कर दिया है। खास बात यह है कि जहां राम से जुड़े स्थान हैं और आदिवासियों की आबादी भी है।
यह है चुनावी राज्यों में आदिवासी आबादी
अगर अगले दो से तीन सालों में होने वाले चुनावी राज्यों को देखें तो मणिपुर में 41 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 34 प्रतिशत, त्रिपुरा में 32 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 23 प्रतिशत और गुजरात में 15 प्रतिशत आबादी आदिवासी समुदाय की है। इन राज्यों में भाजपा मोदी मंत्र के सहारे सत्ता का रास्ता तय कर सकती है। इसके बाद वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव भी होने हैं, जिसमें भी भाजपा के लिए आदिवासी समुदाय का साथ बहुत जरुरी है। अगर बीते तीन लोकसभा चुनावों के आंकड़े देखें तो वर्ष  2014 में भाजपा ने आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 27 सीटें जीती थीं। वर्ष 2019 में यह बढ़कर 31 हो गई , जबकि 2009 में भाजपा को महज 13 सीटों पर ही जीत मिल सकी थी। यही वजह है कि अब भाजपा की नजर लोकसभा की अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित उन सीटों पर है, जहां वह या तो बहुत ही कम अंतर से हारी है या फिर दूसरे नंबर पर रही है। खास बात यह है कि बीते आम चुनाव में आदिवासी वर्ग के भाजपा से दूर होने की वजह से ही उसे मप्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे आदिवासी बाहुल्य राज्यों की सत्ता से हाथ धोना पड़ गया।

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