- गौरव चौहान

विधानसभा चुनाव में जिस दांव की दम पर भाजपा ने कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया था, अब वहीं दांव उन सांसदों के लिए मुसीबत बनता जा रहा है जो हार का सामना कर चुके हैं। इसकी वजह है संगठन ने चुनाव में मौजूदा कई सांसदों को उतार कर उनकी लोकप्रियता का आंकलन कर लिया है। यही वजह है कि जो सांसद हार गए हैं, उनकी जगह अब नए चेहरों की तलाश तो शुरु कर ही दी गई है। इसके अलावा जो जीतकर विधानसभा पहुंच गए हैं उन चेहरों की जगह भी इस बार नए नेताओं को मैदान में उतारने की तैयारी की जा रही है।
पार्टी कुछ ओर सांसदों की जगह इस बार नए चेहरे उतारने की योजना पर काम कर रही है। विधानसभा चुनाव में जिन दो सांसदों को चुनावी हार का सामना करना पड़ा है,उनमें केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते और सांसद गणेश सिंह भी शामिल हैं। माना जा रहा है कि पार्टी लोकसभा चुनाव में इन दोनों नेताओं से किनारा कर लेगी। यही वजह है कि अब आधा दर्जन नए नेताओं को लोकसभा चुनाव लड़ने का मौका पार्टी देने जा रही है। दरअसल पार्टी ने अभी से लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। हाल ही में भोपाल मैं संगठन स्तर पर की गई बड़ी बैठक का एजेंडा पूरी तरह से लोकसभा चुनाव पर ही केंद्रित था। सूत्रों की मानें तो शीर्ष नेतृत्व ऐसी 67 विधानसभा सीटों का अध्ययन कर रहा है, जहां उसे हाल ही में हार मिली है। इनमें विधानसभा चुनाव हारे केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते और सांसद गणेश सिंह के क्षेत्र भी शामिल हैं।
पार्टी से जुड़े सूत्रों की मानें तो अगले लोकसभा चुनाव के लिए जीतने वाले चेहरों की तलाश के लिए पार्टी स्तर पर सर्वे का काम शुरू हो गया है। इसमें मौजूदा सांसदों के बारे में भी पूरी जानकारी जुटाई जा रही है। फिलहाल प्रदेश की 29 में से 28 सीटों पर भाजपा सांसद हैं। भाजपा ने तीन केंद्रीय मंत्रियों सहित सात सांसदों को विधानसभा के चुनाव मैदान में उतारा था उनमें से पांच ने जीत दर्ज की है।
इन क्षेत्रों में नए कार्यकर्ताओं को मिलेगा मौका
मुरैना सीट से सांसद रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर विधायक निर्वाचित होने के बाद विधानसभा के अध्यक्ष हैं। अब उनकी जगह किसी नए चेहरे को मौका दिया जाएगा। ग्वालियर सीट पर पार्टी किसी श्रीमंत समर्थक या उनके परिवार के किसी सदस्य को मैदान में उतारकर चुनाव में जा सकती है। जबकि, गुना सीट से यदि केंद्रीय मंत्री श्रीमंत को लोकसभा का चुनाव लड़वाया जाता है, तो मौजूदा सांसद केपी यादव को कैसे संतुष्ट किया जाए, इस पर भी पार्टी में अंदर ही अंदर मंथन किया जा रहा है। सागर सीट से पार्टी वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री भूपेन्द्र सिंह को चुनावी मैदान में उतार सकती है, जबकि दमोह सीट पर इस बार कोई नया चेहरा आएगा।
कहा तो यह भी जा रहा है कि इस सीट पर पार्टी वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री पंडित गोपाल भार्गव के पुत्र को उम्मीदवार बना सकती है। माना जा रहा है कि यही वजह है कि भार्गव को मंत्री नहीं बनाया गया है। सतना सीट से सांसद गणेश सिंह विधानसभा चुनाव हार गए। ऐसे में उनका टिकट खतरे में माना जा रहा है। इसकी वजह से इस सीट पर भी पार्टी नए प्रत्याशी की संभावनाएं तलाश रही है। मंडला सीट पर भी लगभग यही हालात बने हुए हैं। इस सीट से सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। इसकी वजह से उनका टिकट भी कटना तय माना जा रहा है। पार्टी को यहां से नए आदिवासी चेहरे की तलाश है। दरअसल कुलस्ते लगातार मौका मिलने के बाद भी अपनी ही समाज पर पकड़ नहीं बना सके हैं। लगभग यही स्थिति रीवा सीट की है। यहां के मौजूदा सांसद जनार्दन द्विवेदी के टिकट पर भी खतरा बना हुआ है। माना जा रहा है कि पार्टी इस सीट पर किसी ब्राह्मण चेहरे को मौका दे सकती है।
इन सीटों पर भी नए चेहरों की तलाश
जिन अन्य सीटों पर इस बार नए चेहरे उतारे जा सकते हैं, उनमें भोपाल, देवास, बालाघाट, खंडवा, खरगौन, छतरपुर टीकमगढ़ लोकसभा सीट भी चर्चा में हैं। दरअसल विधानसभा चुनाव में आधा दर्जन लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस का मत प्रतिशत भाजपा को मिले मतों के आसपास या अधिक रहा है। इनमें ही कांग्रेस को जीत भी मिली है। कहा तो यह भी जा रहा है कि हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में हारने वाले कुछ नेताओं को भी पार्टी लोकसभा चुनाव लड़वा सकती है। इसके अलावा उन नेताओं को भी चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है जो विधानसभा चुनाव में टिकट के दावेदार थे, उनकी सर्वे रिपोर्ट भी ठीक थी पर किन्हीं कारणों से उन्हें टिकट नहीं मिल पाया था।
राष्ट्रीय नेतृत्व पिछले एक साल से सभी 29 सीटों पर काम कर रहा है और हर क्षेत्र की पूरी रिपोर्ट उसके पास है। संगठन सूत्रों की मानें तो हर लोकसभा क्षेत्र में तीन से चार नामों पर बड़ा सर्वे हो चुका है। एक सर्वे और कराया जा रहा है।
विधायक बने दिग्गजों पर भी नजर
सूत्रों का कहना है कि प्रदेश की मौजूदा सरकार में जिन वरिष्ठ और दिग्गज विधायकों को मंत्रिपरिषद से दूर रखा गया है, उन्हें पार्टी लोकसभा चुनाव में उपकृत कर सकती है। ऐसे में इन विधायकों को ही लोकसभा चुनाव लड़वाया जा सकता है या फिर उनकी पसंद के किसी कार्यकर्ता को मैदान में उतारा जा सकता है। जबकि हारे हुए सांसदों को प्रदेश की राजनीति में सक्रिय कर उन्हें अहम जिम्मेदारी देकर सक्रिय रखने जा रही है।
कई सीटों पर बदलेंगे चेहरे
विधानसभा चुनाव में सात सांसदों को चुनाव लड़वाया गया, जिसमें पांच जीतकर विधायक बन चुके हैं और इनमें से तीन मंत्री पद की शपथ भी ले चुके है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को विधानसभाध्यक्ष बनाया गया है। ऐसे में इन पूर्व सांसदों के क्षेत्रों में नए चेहरों को उम्मीदवार बनना है। सूत्रों की माने तो सात से ज्यादा दूसरी लोकसभा सीटों पर भी उम्मीदवार बदले जा सकते है। यानी कि अगले आमचुनाव में मध्यप्रदेश की 29 सीट में आधी सीटों पर भाजपा अपने प्रत्याशी बदल सकती है।