
- डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल को पोस्टर से आउट कर सिद्धार्थ तिवारी ने चौंकाया
गौरव चौहान/ बिच्छू डॉट कॉम
ध्य में भाजपा दो भागों में बंट गई है। पहले मैहर के पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी ने मोर्चा खोला था, अब डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल और कांग्रेस से भाजपा में आए सिद्धार्थ तिवारी आमने-सामने हैं। दोनों की लड़ाई अब खुलकर सामने आ गई है। रीवा में एक कार्यक्रम के दौरान सिद्धार्थ तिवारी ने डिप्टी सीएम शुक्ल को पोस्टर से आउट कर दिया। इसे लेकर विंध्य समेत प्रदेश की राजधानी तक नई अटकलें शुरू हो गई हैं। इसके साथ ही ऐसे कई मौके और भी आए हैं, जब पर्दे के पीछे इस तरह के चर्चा होती रही हैं। आईये आपको इसके मायने समझाते हैं कि आखिर सिद्धार्थ तिवारी और राजेंद्र शुक्ल में ठनी क्यों हैं? विंध्य क्षेत्र को कभी अविभाजित मध्य प्रदेश की राजधानी का दर्जा हासिल था, यह राजनीतिक रूप से हमेशा सबसे जागरूक और सक्रिय क्षेत्र माना जाता है। यहां पर पूर्व मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह, पूर्व सीएम अर्जुन सिंह से लेकर श्रीनिवास तिवारी जैसे बड़े नेताओं का दबदबा रहा है। श्रीनिवास तिवारी कांग्रेस के बड़े दिग्गज नेता रहे हैं। उनको सफेद शेर के नाम से भी जाना जाता था। अब इन नेताओं के बाद विंध्य में कांग्रेस का कोई बड़ा चेहरा नहीं है, तो यही हाल भाजपा का भी है। भाजपा में बड़े चेहरे के रूप में राजेंद्र शुक्ल स्थापित हैं और अब उनको भी भाजपा के अंदर से ही चुनौती मिलने लगी है। दरअसल, उनके कद के आगे क्षेत्र के कई वरिष्ठ नेता खुद को हाशिए महसूस करने लगे। पार्टी की नीतियों की वजह से अधिकांश लोग खुलकर सामने नहीं आए थे, लेकिन अब विधानसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस से भाजपा में आए श्रीनिवास तिवारी के पोते सिद्धार्थ तिवारी शुक्ल को चुनौती दे रहे हैं।
न पोस्टर लगे, न न्योता भेजा
त्यौंथर में आयोजित सीएम के कार्यक्रम में राजेंद्र शुक्ल के पोस्टर तक नहीं लगे। कथित तौर पर यह भी कहा जा रहा है कि उनको कार्यक्रम में आने का न्यौता भी नहीं भेजा। इसके बाद सियासी अटकलें तेज हो गई है साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि आखिर विंध्य में एकक्षत्र राज करने वाले राजेंद्र शुक्ल को भाजपा के अंदर से किसकी शह पर चुनौती दी जा रही है?
तिवारी की नजर ब्राह्मण वोटों पर
जानकारों का कहना है कि सिद्धार्थ की नजर ब्राह्मण वोटों पर है और वे खुद को ब्राह्मण चेहरे के रूप में विंध्य में स्थापित करना चाहते हैं। बदली हुई परिस्थितियों में प्रमुख पदों पर काबिज लोगों का उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन भी मिल रहा हैं। उनकी शह पर सिद्धार्थ ने विंध्य की राजनीति में खलबली मचा दी है। वहीं, राजेंद्र शुक्ल पुराने खेमे के आदमी माने जाते हैं। हालांकि, दिल्ली में उनकी पकड़ अच्छी है। बदले हालात में उनकी राहें आसान नहीं हैं। अभी सिद्धार्थ तिवारी के तेवर खामोश हैं, लेकिन अंदर ही अंदर विंध्य की राजनीति सुलग रही है, क्योंकि राजेंद्र शुक्ल के साथ कई स्थानीय विधायक और सांसद भी हैं। मगर सिद्धार्थ इस मामले में अकेले हैं। स्थानीय स्तर पर उन्हें सिर्फ जाति के लोगों का ही समर्थन है।
ब्राह्मणों का दबदबा
विंध्य क्षेत्र में ब्राह्मण वोटों का दबदबा रहा है। अधिकांश विधायक उस क्षेत्र की ब्राह्मण जाति से ही आते हैं। पार्टियां उन्हें ही टिकट देती हैं। राजेंद्र शुक्ल की ब्राह्मण जाति के वोटों पर अच्छी पकड़ है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे पहली बार जब विधायक बने थे तो राज्यमंत्री बनाए गए थे। इसके बाद से लगातार शिवराज सरकार में मंत्री रहे। सिर्फ 2020 में कमलनाथ की सरकार गिरने के बाद भाजपा की सरकार बनी तो उन्हें मंत्री पद नहीं मिला। 2023 में भाजपा सरकार बनने पर उनको सीधे डिप्टी सीएम बनाया गया। इसके बाद विंध्य इलाके के तमाम बड़े ब्राह्मण नेता वेटिंग में ही रह गए। अब त्यौंथर विधायक सिद्धार्थ तिवारी खुलकर सामने आ गए हैं।
गुटबाजी विंध्य की परंपरा: पटैरिया
वरिष्ठ पत्रकार प्रभु पटैरिया ने कहा कि विंध्य क्षेत्र, जो कभी अविभाजित मध्य प्रदेश की राजधानी रहा है, राजनीतिक रूप से हमेशा जागरूक और सक्रिय रहा है। यहां की राजनीति की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि चाहे कोई भी दल क्यों न रहा हो, नेता अक्सर अलग-अलग खेमों में बंटे दिखाई देते हैं। गुटबाजी यहां की परंपरा रही है। वर्तमान परिदृश्य में राजेंद्र शुक्ल विंध्य के सबसे बड़े और प्रभावशाली ब्राह्मण नेता के रूप में उभरे हैं। स्वाभाविक है कि उनकी बढ़ती राजनीतिक स्वीकार्यता सभी नेताओं को सहज नहीं लग रही। यही कारण है कि भाजपा के भीतर से भी विंध्य में नया नेतृत्व उभरकर सामने आ रहा है। सिद्धार्थ तिवारी, जो प्रतिष्ठित तिवारी खानदान से आते हैं, अब राजनीति में अपनी पहचान मजबूती से बनाने में जुटे हैं। ऐसे में शुक्ल और तिवारी जैसे नेताओं के बीच टकराव होना स्वाभाविक माना जा रहा है।