
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में जिन चार सीटों पर उपचुनाव हो रहा है, उनमें तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट शामिल है। इन सीटों को लेकर अब तक जो अनुमान और आंकलन सामने आ रहे हैं उसके मुताबिक खंडवा लोकसभा सीट के परिणाम भाजपा के लिए अभी से अनुकूल माना जा रहा है जबकि विधानसभा की तीनों सीटों को उसके लिए मुश्किल भरा बताया जा रहा है। यही वजह है कि भाजपा खंडवा लोकसभा सीट को लेकर बेफिक्र है, जबकि विधानसभा सीटों को लेकर उसमें अब भी असमंजस बना हुआ है। यह अनुमान ऐसे समय सामने आ रहा है, जबकि उपचुनाव का प्रचार अब समाप्ती पर है। चुनाव प्रचार आज शाम पांच बजे बंद हो जाएगा। इसके बाद चुनाव प्रचार के लिए प्रत्याशी और उनके समर्थक महज घर-घर जाकर सम्पर्क ही कर पाएंगे। यही वो समय होता है जब मतदाता मतदान के लिए अपना मन बनाता है और यह भी तय करता है कि उसे किस प्रत्याशी को मत देना है। इसी वजह से इस समय को ही वोटर के मन की असल करवट के रूप में माना जाता है। खास बात यह है कि अब तक चारों सीटों पर भाजपा ने पूरा चुनाव प्रचार सीएम शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का चेहरा आगे रखकर किया है। इस चुनाव की अब तक खास बात यह है कि भाजपा ने जहां प्रचार में संगठन की दमदारी दिखाई, तो कमलनाथ का पूरी तरह से प्रबंधन के अलावा प्रत्याशियों की स्थानीय जमावट पर जोर-रहा है। खंडवा लोकसभा सीट पर भाजपा से ज्ञानेश्वर पाटिल तो कांग्रेस से राजनारायण पूरनी मैदान में हैं। इस सीट पर प्रमुख रूप से ओबीसी और अजा-जजा के मतदाता सबसे अधिक हैं। इसी वजह से भाजपा ने ओबीसी वर्ग के पाटिल को तो कांग्रेस ने क्षत्रिय वर्ग से आने वाले राजनारायण पर दांव लगाया है। इस सीट पर वैसे तो कांग्रेस व भाजपा दोनों में ही अंर्तकलह की वजह से कई तरह के नए समीकरण बने और बिगड़े हैं, लेकिन भाजपा का गढ़ होने की वजह से उसके लिए यह सीट आसान मानी जा रही है। इस सीट पर भाजपा की ओर से पहले पूर्व सांसद नंदकुमार के बेटे हर्ष और पूर्व मंत्री अर्चना चिटनिस के बीच दावेदारी को लेकर शुरू हुए संर्घष की वजह से भाजपा ने बीच का रास्ता निकालते हुए संघ की पृष्ठिभूमि वाले ज्ञानेश्वर को टिकट थमा दिया। इसी तरह से कांग्रेस ने भी पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव की बेहद मजबूत दावेदारी के बाद भी राजनारायण को मौका प्रदान कर दिया, जिसकी वजह से इस सीट पर दोनों दलों में भितरघात का खतरा बना हुआ है।
खंडवा का गणित
इस लोकसभा सीट पर अब तक हुए नौ में से पांच चुनाव भाजपा जीती है। इस सीट पर अब दोनों ही दलों के बड़े चेहरों की जगह नए चेहरों पर दांव लगाया गया है, जिसकी वजह से कांटे की स्थिति बनी हुई थी, लेकिन भाजपा के प्रबंधन और हाल ही में कांग्रेस विधायक सचिन बिड़ला को दलबदल कराने से भाजपा के पक्ष में माहौल बनता दिख रहा है। इस सीट पर भाजपा को केन्द्र व राज्य में सरकार होने का फायदा मिलना तय माना जा रहा है। उधर कांग्रेस के लिए महंगाई, कोरोना का दंश और बेरोजगार जैसे मुद्दे उम्मीद की किरण के रूप में देखे जा रहे हैं। यहां पर भाजपा के पक्ष में सीएम शिवराज सिंह चौहान तो कांग्रेस से कमलनाथ और अरुण यादव पूरी दम लगाए हुए हैं।
तीनों विस सीटों के हाल
जिन तीन विस सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं उनमें अगर जोबट विस सीट की बात की जाए तो यहां पर भाजपा की सुलोचना रावत व कांग्रेस के महेश पटेल के बीच मुकाबला है। आदिवासी बाहुल्य इस सीट पर कांग्रेस का प्रभाव माना जाता है। इस सीट को अब तक महज दो बार ही भाजपा जीत सकी है। इस सीट पर इस चुनाव की खास बात यह है कि भाजपा ने कांग्रेस नेता सुलोचना को उपचुनाव की घोषणा के बाद भाजपा में लाकर प्रत्याशी बनाया है। यहां पर आदिवासी पलायन का बड़ा मुद्दा बना हुआ है। यह सीट कांग्रेस विधायक कलावती भूरिया के निधन से खाली हुई है। सुलोचना व उनके पुत्र ने पिछले विधानसभा चुनाव के समय भी कांग्रेस में बगावत की थी, लेकिन बाद में सरकार बनने पर साथ हो गई थीं। यह सीट कांग्रेस के लिए एक मजबूत सीट में से एक है। इस सीट पर भाजपा के लिए भितरघात बड़ी मुसीबत बना हुआ है। सुलोचना का भाजपा में अंदरूनी तौर पर बड़ा विरोध है। कांग्रेस प्रत्याशी महेश पटेल का इस सीट पर अपना पुराना संपर्क है। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने यहां सभाएं की हैं इसके बाद भी सुलोचना दम नहीं मार पा रही हैं। इसी तरह से पृथ्वीपुर सीट पर भाजपा से शिशुपाल सिंह और कांग्रेस से नितिन सिंह राठौर मैदान में है। यह सीट कांग्रेस विधायक बृजेंद्र सिंह राठौर के निधन से खाली हुई है। कांग्रेस ने इस सीट पर सिम्पैथी कार्ड खेलते हुए बृजेंद्र सिंह के बेटे नितेंद्र पर दांव लगाया है। उनका और उनके परिवार को इलाके में बेहद अच्छा प्रभाव माना जाता है। यहां अधिकतर कांग्रेस जीतती आई है। कांग्रेस ने यहां नितेंद्र के ही स्थानीय नेटवर्क को तवज्जो दी है। कमलनाथ के प्रबंधन और नितेंद्र के नेटवर्क के दम पर ही कांग्रेस यहां पूरा जोर लगा रही है। इस सीट पर भाजपा के लिए भीतरघात बड़ी मुसीबत बनी हुई है। इसकी वजह है भाजपा द्वारा यहां पर दो साल पहले सपा से आए शिशुपाल सिंह पर दांव लगाना। शिशुपाल का भी इलाके में अच्छा संपर्क है, लेकिन मूल भाजपाई उन्हें अब तक पचा नहीं पा रहे हैं। इस सीट पर मुकाबले के लिए भाजपा संगठन पूरी ताकत लगा रहा है। इसके बाद भी कांग्रेस मजबूत स्थिति में नजर आ रही है। इस सीट पर बीते चुनाव की ही तरह मूल भाजपा नेताओं की अनदेखी भाजपा को भारी पड़ रही है। इसी तरह से रैगांव विधानसभा सीट पर पर भाजपा की प्रतिमा बागरी और कांग्रेस की कल्पना वर्मा के बीच मुकाबला है। अनुसूचित जाति व जनजाति बाहुल्य इस सीट पर बागरी समुदाय अधिक है। इसी वजह से भाजपा ने बागरी प्रत्याशी पर दांव लगाया है, लेकिन, सवर्ण समाज के बंटने या एकजुट होना भी यहां नए समीकरण पैदा कर देते हैं। इसलिए बाकी जातियों के मिश्रित होकर एकजुट होने का गणित भी काम करता है। यह सीट भाजपा विधायक जुगल किशोर बागरी के निधन के कारण खाली हुई है। इस सीट पर बागरी परिवार का रुख भी चुनाव परिणाम को प्रभावित करेगा। कांग्रेस ने कल्पना वर्मा पर दांव लगाया है , वे बीते चुनाव में दूसरे नंबर पर रही थी। इसलिए उनकी दावेदारी स्पष्ट प्रभावी मानी जा रही है। यहां पर भाजपा को प्रतिमा के बाहरी होने की वजह से भी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस ने यहां पर दमोह की रणनीती को अपनाया हुआ है। भाजपा संगठन यहां पर भी तमाम समीकरणों को साधने में लगी है , लेकिन उस पर अब तक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का प्रबंधन भारी पड़ता दिख रहा है।