
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। बीते आम विधानसभा चुनावों के परिणामों से सबक लेते हुए भाजपा इस बार चुनाव के पहले सभी तरह के उन प्रयासों में जुटी हुई है, जिससे 2018 जैसी स्थिति न बन सके। यही वजह है एक साल पहले ही पार्टी ने उन सीटों को चिन्हित कर लिया जो उसके लिए कठिन मानी जा रही हैं। इनमें वे सीटें भी शामिल हैं, जिन पर लंबे समय से कांग्रेस का कब्जा बना हुआ है। इन सीटों को पार्टी के अनुकूल बनाने के लिए अभी से पार्टी संगठन और सरकार मिलकर रणनीति बनाकर उस पर अमल करने की तैयारी में जुट गए हैं। यही वजह है कि अब पार्टी नेताओं को अपने कार्यकर्ताओं की चिंता भी सताने लगी है, और उनकी याद भी आने लगी है। यही वजह है कि अब बीते चुनाव में हारी और पहले से ही कठिन माने जाने वाली सीटों के कार्यकर्ताओं को मनाने और उन्हें सत्ता में भागीदारी देने की योजना तैयार की गई है। इसके तहत निगम-मंडल, प्राधिकरण और आयोगों के अलावा विभिन्न समितियों के साथ संगठन में खाली पड़े पदों पर उन्हें नियुक्ति देने पर गंभीरता से मंथन किया जा रहा है।
सत्ता- संगठन ने इनके अलावा अन्य ऐसी सीटों का भी ब्यौरा जुटाया है जो अगले चुनाव में पार्टी के लिए कठिन हो सकती हैं। यह वे सीटें हैं जिन पर अभी भाजपा विधायक तो हैं, लेकिन उनके कामकाज से जनता में नाराजगी है और पार्टी को वहां पर हार का खतरा दिख रहा है। इस मामले को लेकर दो दिन पहले ही सत्ता व संगठन के बीच हुई बैठक में मंथन किया जा चुका है। इस बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश और प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव सहित अन्य नेता शामिल थे। बैठक में सभी नेताओं ने निगम मंडलों, प्राधिकरण और बोर्ड में रिक्त सदस्यों के पदों पर और संगठन के अलावा सत्ता में भागीदारी देने के लिए दीनदयाल अंत्योदय, और तमाम जनभागीदारी समितियों में नियुक्तियां जल्दी करने पर जोर दिया गया। दरअसल अब तक संगठन को तमाम माध्यमों से जो फीडबैक मिला है ,उसमें कार्यकर्ताओं की नाराजगी की बात सामने आयी है। दरअसल कार्यकर्ताओं की नाराजगी की कई वजहें हैं। इनमें भी नाराजगी बढ़ाने का काम पार्टी के विधायकों ने कई जगह नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों में किया है। कई विधायकों कार्यकर्ताओं की बेहद मजबूती दावेदारी की अनदेखी करते हुए अपने परिजनों को ही चुनावी मैदान में उतार दिया और उन्हें साम दाम दंड भेद के सहारे कुर्सी भी दिलवा डाली। यही नहीं कई इलाकों में तो अफसर कार्यकर्ताओं की सुनना तो ठीक उन्हें किसी तरह की तबज्जो तक नहीं देते हैं। वे सिर्फ विधायक की ही बात सुनते हैं। यही नहीं संगठन के तमाम कामों में लगे रहने वाले इन कार्यकर्ताओं के खुद के ही काम अफसर से लेकर पार्टी के नेता तक नहीं करते हैं। इसकी वजह से उनमें बेहद नाराजगी है। यही वजह है कि हार के कारणों पर मंथन और क्षेत्रीय नेताओं के फीडबैक के बाद कार्यकर्ताओं की नाराजगी का मुद्दा भी मुख्य रूप से चिंता की वजह बना हुआ है। लगभग यही हाल बीते चुनाव के समय भी बना हुआ था। इसकी वजह से ही उस समय कार्यकर्ताओं की नाराजगी इतनी भारी पड़ी थी कि पार्टी को सरकार से बाहर तक होना पड़ा था। बीते चुनाव 2018 में भाजपा को आश्चर्यजनक ढंग से कई जिलों में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था। यही नहींआदिवासी क्षेत्रों में भी उसको बड़ा झटका लगा था। दरअसल प्रदेश में पार्टी की लगातार सरकार होने के बाद भी अधिकांश कार्यकर्ताओं के हाल जस के तस बने हुए हैं और कुछ खास नेता दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं।
इन जिलों में मिली थी हार
भाजपा को बीते विधानसभा चुनाव में विशेष रूप से मुरैना, गुना, अशोकनगर, शिवपुरी, राजगढ़, छिंदवाड़ा, बैतूल, ग्वालियर, जबलपुर और छतरपुर जिले में काफी नुकसान हुआ था। इनके अलावा आदिवासी बहुल मंडला डिंडोरी, बुरहानपुर, खरगोन, बड़वानी, नरसिंहपुर, धार, झाबुआ और आलीराजपुर जिले में भी अधिकांश सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। यही नहीं कुछ जिले तो ऐसे थे, जिन्हें पार्टी का गढ़ माना जाता था ,लेकिन वहां पर भी हार का सामना करना पड़ा था। लगभग यही स्थिति अभी भी बनी हुई है। प्रदेश में पार्टी की सरकार होने के बाद भी महापौर चुनाव में कटनी, मुरैना, सिंगरौली, रीवा, जबलपुर, ग्वालियर, छिंदवाड़ा में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है। इनके अलावा उज्जैन, सतना, रतलाम और बुरहानपुर में जीत के लिए भाजपा को ऐड़ी-चोटी का पसीना बहाने के बाद भी बेहद कम अंतर से जीत मिल सकी है। यह पार्टी के लिए बड़े खतरे की घंटी मानी जा रही है।
बीजेपी की लिए कठिन सीटें
भाजपा की रेड जोन वाली सीटों में जबलपुर पूर्व, जबलपुर उत्तर, जबलपुर दक्षिण, लहार, मेहगांव, गोहद, ग्वालियर पूर्व, ग्वालियर दक्षिण, भितरवार, डबरा, सेवढ़ा, राघौगढ़, देवरी, बंडा, निवाड़ी ,मुंगावली, अशोकनगर, अमरवाड़ा, पांढुर्ना, चोरई, सौंसर, छिंदवाड़ा, परासिया, चुरहट, बैतूल, घोड़ाडोंगरी, भैंसदेही, कसरावद, खरगोन, आलीराजपुर, जोबट, झाबुआ, थांदला, पेटलावद, सरदारपुर, गंधवानी, कुक्षी, मनावर शामिल हैं। इनके अलावा श्योपुर, सबलगढ़, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, भिंड, करेरा, पोहरी, पिछोर, पोहरी, चाचौड़ा, चंदेरी, पृथ्वीपुर, राजनगर, महाराजपुर, छतरपुर, बिजावर, पथरिया, दमोह, सतना, सिंहावल, कोतमा, पुष्पराजगढ़, बरगी, शहपुरा, डिंडौरी, मंडला, बैहर, लांजी, कटंगी, बरघाट, निवास, लखनादौन, तेंदूखेड़ा, गाडरवारा, जुन्नारदेव, गोटेगांव, उदयपुरा, विदिशा, भोपाल उत्तर, ब्यावरा, शाजापुर, सोनकच्छ, हाटपीपल्या, महेश्वर, मांधाता, बड़वानी, धरमपुरी और सैलाना शामिल है।
जिला संगठन करेगा निगरानी
मंत्रियों की कार्यशैली से संगठन खुश नही है। यही वजह है कि अब प्रदेश संगठन ने जिला संगठन को प्रभारी मंत्रियों की निगरानी करने से लेकर उनके कामकाज का फीडबैक देने का जिम्मा सौंप दिया है। जिले के प्रवास के दौरान ये मंत्री संगठन और सरकार द्वारा तय गाइडलाइन का पालन कर रहे हैं या नहीं, इसकी पूरी जानकारी जिला संगठन द्वारा प्रदेश नेतृत्व को दी जाएगी। इसे संगठन द्वारा मुख्यमंत्री को भी भेजा जाएगा। गौरतलब है कि बीती प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में पदाधिकारियों ने प्रभारी मंत्रियों की निष्क्रीयता और कार्यशैली पर सवाल खड़े किए थे। पार्टी सूत्रों की माने तो क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल भी इस मामले में मुख्यमंत्री के सामने सवाल खड़ा कर चुके हैं। इसके बाद ही इस तरह का कदम संगठन द्वारा उठाया जा रहा है। दरअसल मंत्री तमाम बार दिए गए निर्देशों के बाद भी सक्रियता दिखाने और कार्यकर्ताओं से मिलने को तैयार नजर नहीं आ रहे हैं। यही नहीं वे कार्यकर्ताओं का काम भी नहीं करते हैं। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री जनसेवा अभियान के दौरान भी मंत्री समूहों में शामिल कई मंत्री अपने प्रभार के जिलों तक में नहीं गए थे। इसकी शिकायत भी संगठन ने मुख्यमंत्री से की थी। सूत्रों का कहना है कि संगठन के शीर्ष नेतृत्व के पास संघ सर्वे की जो रिपोर्ट पहुंची है, उसमें कई मंत्रियों के प्रभार के जिलों में पार्टी की स्थिति अच्छी नहीं है।
10 फीसदी वोट बढ़ाने का लक्ष्य
भाजपा ने हारी हुई विधानसभा सीटों पर जीत के लिए हर बूथ पर 10 प्रतिशत वोट बढ़ाने का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए रणनीति बनाने को भी कहा गया है। यही नहीं प्रत्येक बूथ पर 10 प्रतिशत वोट शेयर बढ़ाने के लिए कौन से कदम उठाना आवश्यक है, उसका एक एक्शन प्लान तैयार कर उसकी जानकारी पार्टी को देने के लिए भी कहा गया है। इसके अलावा प्रभारियों को अपने-अपने क्षेत्रों में हर बूथ की समस्याएं और मुद्दे भी लिखकर पार्टी को देने होंगे। इसके लिए मंडल स्तर पर समन्वय कर उन्हें पार्टी को देने को कहा गया है।