
- मुरैना, ग्वालियर, रीवा, सीधी, धार, रतलाम और खरगोन सीट पर भाजपा को चुनौती
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में मप्र की 29 में से 28 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली भाजपा के लिए इस बार 7 लोकसभा सीटें चुनौतीपूर्ण बन सकती हैं। इनमें मुरैना, ग्वालियर, रीवा, सीधी, धार, रतलाम और खरगोन सीट शामिल हैं। इन संसदीय क्षेत्रों में आने वाली विधानसभा सीटों में से अधिकांश पर पिछले साल भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। ऐसे में इन सीटों पर मुकाबला कांटे का नजर आ रहा है। हालांकि भाजपा सभी 29 लोकसभा सीटों को जीतने का दावा कर रही है, वहीं कांग्रेस का कहना है कि वह दहाई का आंकड़ा पा लेगी। अगर संभागवार बात करें तो विधानसभा चुनाव 2023 में ग्वालियर-चंबल, मालवा और विंध्य ने भाजपा का साथ दिया, लेकिन इन्हीं क्षेत्रों ने लोकसभा चुनाव में कड़ी चुनौती पेश कर दी। चार चरण के मतदान के बाद हो रही समीक्षा में पता चल रहा है कि ग्वालियर-चंबल की मुरैना सीट को तो पहले से ही चुनौतीपूर्ण माना जा रहा था, लेकिन ग्वालियर में भाजपा प्रत्याशी भारत सिंह कुशवाह के प्रति नाराजगी ने वहां मुश्किलें बढ़ाई। विंध्य क्षेत्र में भी रीवा और सीधी में भाजपा के कमजोर प्रत्याशियों के कारण भाजपा को कांटे की टक्कर का सामना करना पड़ा। मालवांचल में भी धार, रतलाम और खरगोन जैसी आदिवासी सीटों पर भी भाजपा को कड़ा संघर्ष करना पड़ा। गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव 2023 में भाजपा ने बंपर जीत हासिल की है। 230 विधानसभा सीटों में से 163 पर भाजपा के उम्मीदवार जीते, वहीं कांग्रेस 66 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी।
फीडबैक ने पार्टी की चिंता बढ़ाई
दरअसल, पार्टी के बड़े नेताओं के भ्रमण में जो फीडबैक आया है, उसने पार्टी की चिंता बढ़ाई है। ग्वालियर-चंबल में भाजपा कार्यकर्ता और सिंधिया समर्थक दोनों ही नाराज थे। वहीं, विंध्य क्षेत्र में प्रत्याशी चयन ने स्थानीय कार्यकर्ताओं को नाराज कर दिया। मालवांचल में भी यही मुद्दा हावी रहा। पार्टी ने इन क्षेत्रों में केवल मोदी के नाम पर वोट मांगा। प्रदेश में चुनाव की हर अंचल की अपनी अलग कहानी रहती है। लोकसभा चुनाव में तो मुद्दे भी प्रदेश में एक ही रहते हैं, पर हर अंचल में मतदाताओं की पसंद जुदा जुदा सामने आती रही है। गौरतलब है कि भाजपा ने विधानसभा चुनाव 2023 में कांग्रेस को हराकर कमल खिला दिया था। ग्वालियर अंचल की 34 सीटों में से आधे से अधिक सीटों पर जीत हासिल करने में वह कामयाब रही, लेकिन ठीक छह महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में परिस्थितियां बदल गई। ग्वालियर सीट पर ही भाजपा प्रत्याशी भारत सिंह कुशवाह के खिलाफ पार्टी में ही नाराजगी थी। कार्यकर्ताओं से लेकर संगठन ने भी कुशवाह को जिताने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। वहीं, मुरैना में भी भाजपा प्रत्याशी शिवमंगल सिंह तोमर को भी संगठन की नाराजगी झेलनी पड़ी। वहां भी कांग्रेस प्रत्याशी सत्यपाल सिंह सिकरवार ने भाजपा का पसीना छुड़वा दिया। भिंड में भाजपा की संध्या राय को एंटी इनकमबैंसी झेलना पड़ी। अंचलों की बात की जाए ती पहले चरण में महाकौत्राल में 19 अप्रैल को मतदान हुआ तो बालाघाट, छिंदवाड़ा, मंडला सीट में भाजपा के सामने कांग्रेस ने कड़ी चुनौती पेश की। मालवा निमाड़ अंचल में भी भाजपा को आदिवासी अंचल में नाराजगी झेलनी पड़ी। तीन आदिवासी सीटों वाले इस अंचल में लोकसभा चुनाव में भाजपा- कांग्रेस के बीच कड़ा संघर्ष हुआ है। पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव 2023 के परिणामों पर नजर डालें तो खरगोन, रतलाम और धार जैसी सुरक्षित सीटों पर कांग्रेस ने अधिक सीटें जीती हैं। यही वजह है कि इन क्षेत्रों में कांग्रेस उत्साहित थी। भाजपा यहां मोदी की गारंटी के भरोसे रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी धार और खरगोन आकर स्थितियों को संभालने का भरसक प्रयास किया।
कम वोटिंग ने बढ़ाई भाजपा की चिंता
मप्र लोकसभा चुनाव के सभी 4 चरणों का मतदान हो चुका है। हालांकि, इस दौरान 2019 के मुकाबले मतदान के लिए लोग घरों से कम निकले। वहीं, चुनाव में कोई लहर नहीं दिखी। ऐसे में सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या 29 कमल खिलाने का भाजपा का दावा सही होगा या कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने लगभग 40 फीसदी सीटें जीतने का जो दावा किया है, वह सच साबित होगा। राज्य में चार चरणों में कुल 66.87 प्रतिशत मतदान हुआ, जो 2019 के 71.16 प्रतिशत से कम है। पूरे राज्य में पुरुष और महिला दोनों के मतदान प्रतिशत में 3-4 प्रतिशत की गिरावट आई है। कुछ जानकार कहते हैं इसके दो पहलू है। कई पारंपरिक भाजपा के वोटरों ने अति आत्मविश्वास के कारण मतदान में भाग नहीं लिया कि मोदी लहर में उनका वोट उतनी अहमियत नहीं रखता है। वहीं, कुछ पुराने और वफादार कांग्रेस मतदाताओं ने भी मतदान में कम रुचि दिखाई होगी, जिन्हें लगता है कि पीएम मोदी की लोकप्रियता, अयोध्या राम मंदिर के मद्देनजर, मुख्य विपक्षी दल को हासिल करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है।