किसान व बैकवर्ड कार्ड खेलने में भाजपा पड़ रही कांग्रेस पर भारी

 बैकवर्ड कार्ड

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। देश में किसानों व अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को लेकर चल रही राजनीति के बीच भाजपा अब कांग्रेस पर भारी पड़ रही है। इसकी वजह है भाजपा सरकारों द्वारा इन दोनों वर्गों को लेकर उठाए जाने वाले कदम और उनको दी जाने वाली भागीदारी में प्राथमिकता।
यही वजह है कि इन दोनों ही मामलों में अब मप्र में भी भाजपा की तुलना में कांग्रेस पिछड़ती जा रही है। अगर कमलनाथ की तत्कालीन सरकार व मौजूदा शिव सरकार की पिछड़ा वर्ग को दी गई भागीदारी की बात की जाए तो स्वयं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ओबीसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके 31 सदस्यीय मंत्रिमंडल में 10 मंत्री ओबीसी से आते हैं , जबकि नाथ सरकार के 29 सदस्यीय मंत्रिमंडल में सिर्फ सात ओबीस वर्ग के मंत्री ही थे। इसी तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ओबीसी से हैं, उनकी कैबिनेट में 27 मंत्री इसी वर्ग के हैं।  अगर इसी तरह से किसानों की बात की जाए तो केन्द्र व प्रदेश की भाजपा सरकार ने फसल बीमा और किसान सम्मान निधि को लेकर जो काम किया है वह भी कांग्रेस के लिए भारी पड़ रहा है। इस मामले में मध्यप्रदेश में तो सबसे बेहतर काम जारी है।
इसके उल्ट प्रदेश में कमलनाथ सरकार अपने चुनावी वायदे के मुताबिक किसान कर्ज माफी योजना को लागू करने में पूरी तरह से असफल रही थी, जिसकी वजह से भी किसान उससे खुश नही हैं। इसी तरह से कांग्रेस के पास ओबीसी वर्ग के कुछ ही चेहरे हैं, लेकिन वे भी पार्टी में व्याप्त गुटबाजी का शिकार होकर अपना बजूद बचाने के लिए संघर्षरत नजर आ रहे हैं। दरअसल प्रदेश की राजनीति में भी अब जातिगत समीकरणों से सत्ता पाने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। मप्र ऐसा राज्य है जहां पर अब भी कोई भी तीसरी राजनैतिक ताकत प्रभावी नहीं है, जिसकी वजह से यहां पर कांगे्रेस व भाजपा के बीच ही मुख्य चुनावी मुकाबला होता है।
यही वजह है कि अब भाजपा और कांग्रेस ने खुद को और अधिक मजबूत करने के लिए धर्म जाति और वर्ग को खुद से जोड़ने के लिए कवायद शुरू कर दी है। दरअसल किसानों के साथ ही अगर पिछड़ा वर्ग की आबादी को मिला दिया जाए तो उनकी संख्या कुल आबादी में करीब 65 फीसदी से अधिक हो जाती है। इनमें ओबीसी का हिस्सा ही करीब 50 फीसद से अधिक है। यही वजह है कि इस वर्ग को लेकर दोनों दलों में खींचतान की स्थिति बनी हुई है। इसी वजह से इस वर्ग के लिए आरक्षण की सीमा 14 से बढ़ाकर 27 फीसद करने के प्रयास किए जा रहे हैं। नाथ सरकार ने इसको लेकर निर्णय भी कर लिया था, लेकिन वह लागू होता इसके पहले ही हाईकोर्ट में इसको लेकर चुनौती दे दी गई। इस मामले में एक सितंबर को फैसला संभावित है। यही वजह है कि अब इसको  लेकर श्रेय लेने की होड़ मची हुई है।
फसल बीमा के बहाने किसानों को जोड़ने का प्रयास
किसानों को प्राकृतिक आपदा से हुई क्षति से बचाने के लिए लागू प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत इस बार किसानों को पंजीयन कराने के लिए प्रेरित करने का अभियान भी प्रदेश में सरकार द्वारा शुरू किया जा रहा है। प्रदेश में अब तक खरीफ फसलों के लिए करीब 30 लाख किसानों का पंजीयन हुआ है।
यह पंजीयन 31 अगस्त तक कराया जा सकेगा। इसके तहत अब किसानों को बाढ़ से हुए नुकसान के बहाने बीमा का महत्व बताया जाएगा। यह काम कृषि विभाग द्वारा किया जाएगा। यह बात अलग है कि अब तक प्रदेश में पंजीयन कराने वाले किसानों की संख्या बीते साल की तुलना में 14 लाख कम है। कृषि मंत्री कमल पटेल के मुताबिक बीते साल किसानों को पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का फसल बीमा दिलाया गया था। बीते साल 44 लाख से ज्यादा किसानों में से जिन्हें अतिवर्षा के कारण फसलों में बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ था। उनके दावे कृषि विभाग की ओर से बीमा कंपनियों को पेश किए जा चुके हैं। उनके अंतिम परीक्षण का काम चल रहा है। इसके बाद अगले माह उन्हें बीमा की राशि मिलने की संभावना है।
कांगे्रेस में यह हैं हाल पिछड़ा वर्ग नेताओं के
कांग्रेस में संगठन के स्तर पर देखें तो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव के अलावा जीतू पटवारी के रुप में दो बड़े और युवा चेहरे हैं। यह दोनों ही नेता इन दिनों हासिए पर चल रहे हैं। इनमें से यादव तो कई बार अपनी उपेक्षा को लेकर सार्वजनिक रुप से नाराजगी भी जता चुके हैं । इनके अलावा पार्टी में सचिन यादव, हर्ष यादव, कमलेश्वर पटेल और  सुखदेव पांसे जैसे पूर्व मंत्री भी हैं, लेकिन यह नेता भी सियासी परिदृश्य में पीछे ही नजर आते हैं। यह बात अलग है कि हाल ही में प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष की कमान अर्चना जायसवाल को दी गई हैं, लेकिन यह नियुक्ति भी अरुण और जीतू की लकीर छोटी करने के प्रयास के रुप में देखी जा रही है। इस मामले में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बेटों की सियासी पारी अभी शुरू ही हुई है। उनकी राह अधिक आसान बनाने के लिए ही पार्टी में कई ऊर्जावन युवा नेताओं को आगे आने के अवसर नहीं दिए जा रहे हैं। इसके उलट भाजपा में पिछड़ा वर्ग के नेताओं की न केवल लंबी कतार बनी हुई हैं, बल्कि उनमें से अधिकांश को आगे लाने के भी प्रयास किए जा रहे हैं।

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