
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में नगरीय निकाय चुनावों में भाजपा को इस बार आधा दर्जन से अधिक निकायों में जहां हार का सामना करना पड़ा तो वहीं दो नगर निगमों में जैसे तैसे जीत मिल सकी थी। इसके बाद से प्रदेश में जिलाध्यक्षों के बदले जाने की चर्चाएं जोर पकड़ने लगी थीं। इसके बाद हुआ भी वही और दो किस्तों में अब तक नौ जिलों के अध्यक्षों को हटाया जा चुका है , जबकि अभी करीब आधा दर्जन जिलों के अध्यक्षों को भी बदले जाने की तलवार लटकी हुई है। दरअसल अगले साल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष हर हाल में संगठन में मैदानी स्तर पर सामने आ रही खामियों को दूर कर लेना चाहते हैं।
इन खामियों के लिए जिलाध्यक्षों को ही संगठन दोषी मानकर चल रहा है। यह बात अलग है कि पार्टी को जिन नगर निगमों में हार का सामना करना पड़ा है उसमें संगठन के साथ ही पार्टी के माननीयों की कार्यप्रणाली भी बराबरी की दोषी है। प्रदेश संगठन द्वारा बीते रोज सिंगरौली, झाबुआ, आलीराजपुर और शाजापुर जिलाध्यक्षों को हटा दिया गया है, जबकि इसके पहले ग्वालियर, कटनी, गुना, अशोक नगर और भिंड के जिलाध्यक्ष हटाए गए थे। इन पर निकाय चुनाव में काम न करने व अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ काम करने के आरोप हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि अब तीसरी किस्त में प्रदेश संगठन सतना, डिंडौरी, बालाघाट, निवाड़ी , राजगढ़, आगर और जबलपुर जिलों के अध्यक्षों को भी जल्द ही हटाने की तैयारी है। यह बात अलग है कि पार्टी संविधान के अनुसार हटाए जाने वाले जिलाध्यक्षों को प्रदेश कार्यसमिति सदस्य बनाया गया है। गौरतलब है कि सात साल बाद तीन माह पहले हुए निकाय चुनावों में भाजपा को अपने बेहद मजबूत गढ़ माने जाने वाल प्रदेश के बड़े शहरों में शामिल ग्वालियर, रीवा, जबलपुर, मुरैना, सिंगरौली और कटनी में हार का सामना करना पड़ा था। खास बात यह है कि यह निकाय चुनाव अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सेमीफायनल के रुप में देखे जा रहे थे। दरअसल उन जिलाध्यक्षों को बदला जा रहा है , जो विधायकों, सांसदों समेत जनप्रतिनिधियों से समन्वय नहीं बना पा रहे हैं। जिन जिलाध्यक्षों ने पूर्व विधायकों, पूर्व पदाधिकारियों की राय नहीं लेकर मनमाने फैसले किए, जिससे चुनाव में हार हुई। जिन्होंने हाल में हुए चुनाव में अपनों को लड़ाया, पार्टी में गुटबाजी को बढ़ावा दिया है और जिनका इम्पैक्ट पार्टी के फैसलों के मुताबिक नहीं आ रहा है। इसी तरह से उन जिलाध्यक्षों को भी हटाया जा रहा है जो लगातार तीन बार तक जिलाध्यक्ष रह चुके हैं।
इन जिलों की सबसे अधिक शिकायतें
नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में कई जिलाध्यक्षों की परफॉर्मेंस पर सवाल उठाए गए थे। खासतौर पर मालवा-निमाड़ और विंध्य क्षेत्र के जिले इसमें आगे हैं। डिंडोरी, मंडला, रीवा, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर, नर्मदापुरम, कटनी, दमोह, अशोकनगर, बड़वानी, बालाघाट, राजगढ़ समेत करीब डेढ़ दर्जन जिलों के जिलाध्यक्षों की परफॉर्मेंस ने इन चुनावों पर असर डाला है। कई जिलाध्यक्षों पर पार्टी के कैंडिडेट का विरोध करने के भी आरोप लगे हैं।
इन्हें बनाया गया जिलाध्यक्ष
संतोष परवाल मक्कू अलीराजपुर जिले के बीजेपी अध्यक्ष बनाए गए हैं। सिंगरौली बीजेपी जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी रामसुमिरन गुप्ता को दी गई है। झाबुआ में बीजेपी के जिलाध्यक्ष पद पर भानू भूरिया की तैनाती की गई है। शाजापुर बीजेपी जिलाध्यक्ष की कमान अशोक नायक को सौंपी गई है। जो जिलाध्यक्ष हटाए गए हैं, एन सभी को अब प्रदेश कार्यसमिति में शामिल कर लिया गया है।
इसी माह तक है कार्यकाल
प्रदेश भर में ज्यादातर जिलाध्यक्षों का कार्यकाल इस साल नवंबर में खत्म हो रहा है। 2019 के नवंबर में संगठनात्मक चुनाव के बाद 33 नए जिलाध्यक्षों की पहली सूची 5 दिसम्बर 2019 को जारी हुई थी। इसके बाद 24 जिलाध्यक्षों की सूची अलग-अलग जारी हुई। पार्टी में केंद्र और राज्य स्तर पर संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया एक साथ चलती है। ऐसे में 2022 का साल संगठनात्मक चुनाव का है। वैसे, 2017 में जिलाध्यक्षों का कार्यकाल खत्म होने पर हटाने की बजाय 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कार्यकाल बढ़ा दिया गया था।
कोर ग्रुप की बैठक में हुआ था निर्णय
रातापानी अभयारण्य में एक अक्टूबर को भाजपा कोर ग्रुप द्वारा लिए गए निर्णयों की प्रदेश संगठन द्वारा समीक्षा की गई थी, जिसमें विधानसभा चुनाव के तैयारियों के मद्देनजर संगठन में कसावट, राजनीतिक नियुक्तियों से लेकर 2023 के चुनाव की चुनौतियों पर विचार किया गया। सत्ता-संगठन की मजबूती और कमजोरियों पर सभी नेताओं की राय जानने के बाद पार्टी ने भोपाल सहित कुछ संभागों के प्रभारियों की जिम्मेदारी में बदलाव किया था। इसके साथ ही कुछ जिलों में जिलाध्यक्ष भी बदले जाने पर सहमति बनी थी।