
हर सीट पर नजर, हर समीकरण की खबर
मप्र विधानसभा चुनाव के लिए सभी दल अपनी-अपनी तैयारी में जुटे हैं। खासकर भाजपा और कांग्रेस की चुनावी तैयारियां सबसे आगे हैं। दोनों पार्टियों की कोशिश है की 2023 में उनकी सरकार बने। हालांकि मैदानी और रणनीतिक तैयारियों में भाजपा काफी आगे है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के नेतृत्व में पार्टी हर मोर्चे पर काम कर रही है। इसी कड़ी में गतदिनों पर्यटन नगरी मांडू में पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण वर्ग आयोजित किया गया। इस वर्ग में हर सीट पर नजर और हर समीकरण की खबर जुटाने का निर्देश दिया गया।
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम
भोपाल (डीएनएन)। मप्र में विधानसभा चुनाव में एक साल का समय बचा है। इससे पहले दोनों ही राजनीति पार्टियां मिशन 2023 में जुट गई हैं। इसके तहत भाजपा का तीन दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग 7 अक्टूबर से 9 अक्टूबर तक पर्यटन नगरी मांडू में आयोजित किया गया। दरअसल, निमाड़ और मालवा में चार साल पहले बिखरे चुनावी समीकरणों को दुरुस्त करने की गरज से हिल-स्टेशन मांडू में भाजपा का सियासी नजरिये से यह बड़ा प्रशिक्षण वर्ग आयोजित किया गया था। इसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत भाजपा संगठन के तमाम बड़े चेहरों के साथ प्रमुख नेताओं की मौजूदगी रही। दरअसल मालवा निमाड़ पर सत्ता में वापसी के बाद से भाजपा ने फोकस किया हुआ है लेकिन अब इसे फाइनल टच दिया जा रहा है। खासतौर पर निमाड़ के आदिवासी बाहुल्य जिलों में संगठन और सत्ता सीधे तौर पर ग्राउंड जीरो पर रणनीति बना रही है। यहां कांग्रेस के साथ आदिवासी संगठन भी भाजपा के लिए चुनौती है। कांग्रेस को निमाड मालवा में 2018 के चुनाव में काफी फायदा मिल चुका है। पंचायत चुनाव में भी यह समीकरण देखने को मिले थे। लिहाजा भाजपा अपने असर को बढ़ाने के लिये काम कर रही है। हाल में मनावर धार में पंचायत चुनाव के नतीजों से उसे उम्मीद नजर आई है। इस तीन दिवसीय प्रशिक्षण वर्ग में भाजपा अपनी पकड़ मालवा निमाड़ में मजबूत करने की रणनीति तैयार की। मालवा निमाड़ में कुल 66 सीट है। यह सत्ता में वापसी के गणित से बहुत महत्वपूर्ण है। कांग्रेस का प्रभाव कम करने के लिए भाजपा ने यहां पूरी ताकत झोंकने का फैसला किया है।
प्रशिक्षण वर्ग में पार्टी के प्रदेश पदाधिकारी, मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष, जिलाध्यक्ष, जिला प्रभारी, प्रकोष्ठ प्रदेश संयोजक एवं विभागों के प्रदेश संयोजक उपस्थित रहे। बैठक 3 दिन चली। 3 दिन में 15 सत्र हुए। उदघाटन सत्र को प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने सम्बोधित किया। उन्होंने समाज देश की विभाजनकारी ताकतों पर फोकस किया। गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने मिजाज के अनुकूल वर्ग में नेताओं को चुनाव प्रबंधन की घुटी पिलाई। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मोदी सरकार की विदेश नीति पर बात की। कैलाश विजयवर्गीय ने राष्ट्र के पुनर्निर्माण पर संबोधन दिया। गरीब कल्याण और खेती किसानी पर नरेंद्र सिंह तोमर ने अपनी बात रखी। देश के रक्षा सामथ्र्य पर मुरलीधर राव जोरदार तरीके से मुखर हुए। हिंदूवादी नेता जयभान सिंह पवैया ने अपने प्रिय विषय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर बोला तो राजस्थान से आए डॉ. महेश शर्मा ने दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद पर विचार रखे। क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल, प्रदेश संगठन मंत्री हितानंद, सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश, पंकजा मुंडे, लालसिंह आर्य ने भी सत्रों को सम्बोधित किया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आखरी दिन अपनी सरकार की नीतियों के साथ मैदान में आए।
विस्तारकों को बड़ा रोल देगी भाजपा
2019 के लोकसभा चुनाव और 2022 के यूपी चुनाव की तर्ज पर भाजपा मप्र में 2023 की चुनावी जंग फतह करने के लिए विस्तारकों का सहारा लेगी। सूबे के हर एक विधानसभा सीट पर भाजपा विस्तारकों की नियुक्ति करेगी। यह विस्तारक विधानसभा क्षेत्रों में रहकर न सिर्फ चुनावी थाह लेंगे, बल्कि सियासी जमीन तैयार करने के लिए प्रबंधन में भी अहम भूमिका निभाएंगे। पार्टी सूत्रों के अनुसार संघ की रणनीति पर काम करते हुए भाजपा सूबे की सभी 230 विधानसभा सीटों के लिए एक-एक विस्तारक तैनात करेगी। पार्टी कार्यकर्ताओं में से विस्तारकों का चयन कर लिया जाएगा और अब उन्हें मंडल स्तर पर पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रशिक्षण देने का काम करेंगे। विधानसभा क्षेत्र की संख्या के अतिरिक्त आठ विस्तारक पार्टी के निर्देश के पालन के लिए सुरक्षित रखे जाएंगे। कड़े मुकाबले वाली विधानसभा क्षेत्रों में मौका देखकर एक से अधिक विस्तारकों को भी लगाने की भी पार्टी की योजना है। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद ही विस्तारक विधानसभा क्षेत्रों में जाकर कार्यभार संभालेंगे। विस्तारक को विधानसभा चुनाव होने तक अपने संबंधित विधानसभा क्षेत्र में रहना होगा। पार्टी की कोशिश है कि 2023 के जनवरी महीने से सभी विस्तारक अपनी-अपनी विधानसभा क्षेत्रों में पहुंच जाएं।
विस्तारक भाजपा के लिए पूर्णकालिक काम करने वाले सदस्य हैं जो पार्टी इकाई से अलग हैं। संघ के आनुषांगिक संगठन जैसे एबीवीपी, वीएचपी, बजरंग दल जैसे ही अन्य इकाइयों से जुड़े सदस्य जो पूर्णकालिक काम करने की इच्छा रखते हों, वही विस्तारक बनाए जाते हैं, जो स्थानीय स्तर के बजाय सीधे प्रदेश कार्यालय को रिपोर्ट करते हैं। ज्यादातर विस्तारक युवाओं को बनाया जाएगा। संगठन का मानना है युवा विस्तारक बिना थके और ऊर्जा के साथ चुनाव तक मुस्तैदी से काम करते हैं। पार्टी के सूत्र बताते हैं कि भाजपा के विस्तारक का काम अपनी-अपनी विधानसभा क्षेत्र में सेक्टर, बूथ और मंडल लेवल पर लोगों से संपर्क और संवाद स्थापित करने का होता है। विस्तारकों की मॉनिटरिंंग के लिए विस्तारक प्रमुख और सह विस्तारक प्रमुख नियुक्त किए जाते हैं। ये पदाधिकारी समय-समय पर पार्टी द्वारा मिले निर्देश को विस्तारकों तक पहुंचाने का काम करते हैं। रणनीति के अनुसार भाजपा के विस्तारक शुरुआती दौर में अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र की चुनावी स्थिति, मौजूदा विधायक की छवि और संभावित दावेदार, विपक्षी दलों की स्थिति, कार्यकर्ताओं के संतोष सहित अन्य मुद्दों पर फीडबैक लेकर प्रदेश संगठन को देंगे। विधानसभा क्षेत्र में बूथ प्रबंधन से लेकर चुनाव प्रचार के प्रबंधन तक के कार्य विस्तारक ही करेंगे। विस्तारकों को विधानसभा क्षेत्र में चुनाव सम्पन्न होने तक स्थायी रूप से निवास करेंगे और उनके निवास और खानपान की व्यवस्था की जिम्मेदारी संगठन ने खुद उठाती है। यही नहीं, विस्तारक को क्षेत्र में भागदौड़ के लिए पार्टी दोपहिया वाहन भी उपलब्ध करा रही है। ये विस्तारक पार्टी के उच्च पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के बीच संवाद की कड़ी भी बनेंगे। भाजपा के विस्तारकर जमीनी स्तर पर आने वाले दिक्कतों का समाधान पहले अपने स्तर पर करेंगे। अगर समाधान उनकी क्षमता के बाहर है तो उसके लिए पार्टी पदाधिकारियों की मदद लेंगे। भाजपा की क्षेत्रीय अध्यक्ष और उनकी टीम समय-समय पर विस्तारकों का मार्गदर्शन करती रहेगी। विस्तारक स्थानीय संगठन के अधीन नहीं होकर सीधे प्रदेश मुख्यालय को रिपोर्ट करेंगे।
200 सीटों को जीतने का टारगेट
गौरतलब है कि भाजपा मिशन 2023 में 200 सीटों को जीतने का टारगेट लेकर चल रही है। मिशन 2023 को लेकर इन दिनों भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियां मिशन मोड में काम कर रही हैं। भाजपा की कोर कमेटी और प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के साथ ही आला नेताओं के बीच हुए मंथन के बाद यह साफ हो गया है की अब पार्टी ने उन 114 सीटों पर विशेष फोकस करने का फैसला किया है, जिन पर पार्टी प्रत्याशियों को 2018 में हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा इस बार भी पूरी तरह शिवराज के भरोसे मैदान में उतरेगी। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के शासन का मूल मंत्र है सुशासन, अनुशासन और जनता का सम्मान। इसी मंत्र के आधार पर वे मप्र को आत्मनिर्भर बनाने में जुटे हुए हैं। इसके लिए वे जहां प्रशासन पर नकेल कसे रहते हैं, वहीं मंत्रियों को सक्रिय रखते हैं। वहीं इन सभी से आगे निकलकर वे अपनी जिद्द, जुनून और परिश्रम से औरों के लिए मील का पत्थर बनते हैं। यानी काम और चुनाव छोटा हो या बड़ा शिवराज उसे चुनौती के रूप में लेते हैं। शिवराज की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे हमेशा मिशन मोड में रहते हैं। शिवराज जैसा जुनून और परिश्रम करने की क्षमता प्रदेश में किसी अन्य नेता की नहीं हैं। जनता के बीच रहना और कार्यकर्ताओं से संवाद करना उनका पैशन है। इसलिए उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। शिवराज सिंह चौहान बतौर मुख्यमंत्री चौथी पारी के ढाई साल पूरे कर चुके हैं और अगले साल विधानसभा के चुनाव होना तय है। चौहान इस अवधि का बेहतर उपयोग कर जनता के बीच सकारात्मक संदेश देने की कोशिश में तेजी से जुटे गए हैं। सीएम शिवराज सक्रियता के मामले में अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों के मुकाबले कहीं आगे नजर आते हैं, तो उनके साथ राज्य का भाजपा संगठन भी सातों दिन 24 घंटे काम करता दिखता है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हर वर्ग तक पहुंचने की कोशिश करते रहते हैं। इस कारण उनकी सक्रियता लगातार बढ़ रही है और हर वर्ग तक पहुंचने के साथ उसे खुश करने के लिए भी सीएम शिवराज कदम उठाते रहते हैं। प्रदेश के 46 नगरीय निकाय चुनावों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस जुनून और जज्बे के साथ चुनाव प्रचार किया उसका तोड़ कांग्रेस के पास नहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कमलनाथ की सत्ता में वापसी की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। कांग्रेस के लिए मुख्यमंत्री एक बड़ी चुनौती की तरह हो रहे हैं। खास बात यह है कि शिवराज सिंह चौहान को प्रवास करना, सभाएं कर जनता के बीच जाना और कार्यकर्ताओं से निरंतर संवाद करना खूब रास आता है। जनता के बीच रहकर वे खुद को सहज पाते हैं। यही वजह है कि भाजपा के पास भी मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान का विकल्प नहीं है। कांग्रेस के रणनीतिकार भी मानते हैं कि शिवराज सिंह चौहान में जितनी परिश्रम करने की क्षमता है उतनी किसी और नेता में नहीं है। परिश्रम करने और जनता से संवाद करने के मामले में शिवराज सिंह चौहान के समक्ष मप्र का कोई नेता नहीं टिकता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 46 नगरीय निकाय चुनाव को जितनी गंभीरता से लिया। उतना किसी अन्य मुख्यमंत्री के लिए संभव नहीं है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही नहीं भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने भी नगरीय निकाय चुनाव में खुद को झोंक दिया था। चुनाव परिणामों के पहले से ही यह साफ दिख रहा है कि भाजपा इन चुनावों में अच्छे अंतर से जीत दर्ज करने जा रही है। भाजपा ने नगरीय निकाय चुनाव को अपने 2023 के मिशन के लिए अनुकूल अवसर माना है। इसी कारण पार्टी पूरी ताकत के साथ इन चुनावों में उतरी। भाजपा इसलिए भी इन चुनावों में जोर लगाया क्योंकि इन नगर पालिकाओं में आधी आदिवासी क्षेत्र में आती हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा किसी भी स्थिति में आदिवासी मतदाताओं को लुभाने का मौका नहीं छोडऩा चाहते। प्रदेश सरकार युवाओं को लुभाने के लिए बड़ी तादाद में सरकारी भर्तियां निकाली जा रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पूरी कोशिश होती है की कानून-व्यवस्था में चूक न हो। राज्य में कानून व्यवस्था को और सख्त करने के लिए सरकार ने प्रशासनिक मशीनरी में कसावट लाई है, अब तो दुराचार के आरोपियों पर सख्त कार्रवाई हो रही है। वहीं उनके मकानों तक बुलडोजर चलाया जा रहा है ताकि अपराध की फिराक में रहने वालों तक संदेश पहुंचाया जा सके। भाजपा ने मिशन 2023 के तहत सबसे अधिक फोकस आदिवासियों पर ही किया है। मुख्यमंत्री ने हाल ही में झाबुआ में कड़ी कार्रवाई करते हुए एसपी और कलेक्टर को हटाया। आदिवासी छात्रों से बदतमीजी से बात करने वाले एसपी अरविंद तिवारी को तो निलंबित भी कर दिया गया। जाहिर है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इतनी कड़ी कार्रवाई कर आदिवासी समाज को संदेश दिया है कि सरकार उनके लिए कुछ भी कर सकती है। भाजपा 2018 में मिली पराजय को भूली नहीं है। इस कारण से पार्टी ने आदिवासी समाज के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी आदिवासियों को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मप्र में सत्ता और संगठन के बीच का समन्वय अद्भूत है। इसकी प्रशंसा केंद्रीय नेतृत्व भी कर चुका है। इसी समन्वय के साथ मिशन 2023 के लिए सत्ता और संगठन ने कई मोर्चों पर काम शुरू कर दिया है। प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद जहां बूथ मैनेजमेंट में लगे हुए हैं वही विष्णु दत्त शर्मा नेताओं को एकजुट करने और कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने में अपना ध्यान लगा रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जन कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर नौकरशाही पर नकेल कसना प्रारंभ कर दिया है। मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रियों से भी कहा है कि वे संगठन के कार्यों को गंभीरता से लें। खास तौर पर प्रदेश सरकार ने महिलाओं, युवाओं, दलितों, किसानों और आदिवासियों पर फोकस किया है। मुख्यमंत्री केवल ऐलान ही नहीं कर रहे हैं बल्कि यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि उनकी सभी घोषणाओं को पूरा किया जाए।
सर्वे से तय होगा टिकट
मप्र में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले उन विधायकों का टेंशन बढ़ गया है, जिन्होंने चार साल तक अपने क्षेत्र पर ध्यान नहीं दिया है। दरअसल, भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने विधायकों की परफॉर्मेंस का आकलन करने के लिए सर्वे शुरू कर दिया है। जिनका पार्टी सर्वे रिपोर्ट में परफॉर्मेंस खराब निकलेगा, उनका टिकट संकट में पड़ जाएगा। इसलिए दोनों पार्टियों में सर्वे की खबर से खलबली मची हुई है। गौरतलब है कि मप्र में अगले साल विधानसभा चुनाव होना हैं। विधानसभा चुनाव के एक साल पहले प्रदेश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा और कांग्रेस ने टिकट को लेकर सर्वे का काम शुरू कर दिया है। इन सर्वे ने विधायकों के दिलों की धडक़नों को बढ़ा दिया है। भाजपा सर्वे के अलावा बूथस्तर तक रायशुमारी भी कराएगी तो कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वे टिकट के लिए विशुद्ध रूप से सर्वे को ही आधार बनाएगी। तीन चरणों में होने वाले सर्वे के बाद टिकट किसे मिलेगा यह तय कर दिया जाएगा। गौरतलब है कि दोनों पार्टियों पूर्व में आंतरिक सर्वे करा चुकी हैं। कांग्रेस पार्टी के आंतरिक सर्वे में मौजूदा 27 विधायकों की स्थिति खराब बताई गई है. कांग्रेस के आंतरिक सर्वे के बाद अब कांग्रेस के कई मौजूदा विधायक सीट बदलने के मूड में आ गए हैं. सिर्फ कांग्रेस के अंदर ही विधायक सीट बदलने की तैयारी में नहीं हैं बल्कि भाजपा के अंदर भी आंतरिक सर्वे रिपोर्ट में कई विधायकों को डेंजर जोन में बताया गया है। हाल ही में हुए नगरीय निकाय चुनाव में आधा दर्जन मंत्री ऐसे निकल कर आए हैं जिनके प्रभाव वाले जिले में भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा है। पार्टी की सर्वे रिपोर्ट में भी कई विधायकों की स्थिति ठीक नहीं बताई गई है। यही वजह है कि भाजपा के अंदर भी कई विधायकों ने दूसरी सीट तलाशना शुरू कर दिया है।
सर्वे की परम्परा राजनीतिक दलों में नई नहीं है पर इस बार लड़ाई बेहद कांटे की है। लिहाजा राजनीतिक दल तीन-तीन एजेन्सियों से अलग अलग सर्वे करा रहे हैं। इन सर्वे की रिपोर्ट के बाद ही टिकट के बारे में फैसला लिया जाएगा। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के आंतरिक सर्वे में कई मंत्रियों के विधानसभा में चुनाव हारने की रिपोर्ट आई थी। कई मंत्रियों की सीट बदल दी गई थी। लेकिन अपनी परंपरागत सीट पर चुनाव लडऩे वाले कई मंत्री विधायकी से हाथ धो बैठे थे। अब यही वजह है कि पार्टी सर्वे के आधार पर विधानसभा में अपनी स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश में विधायक हैं। जहां स्थिति नहीं सुधरेगी वहां विधायक दूसरी विधानसभा सीट पर अपनी दावेदारी ठोक सकते हैं। भाजपा और कांग्रेस के अंदर मौजूदा विधायकों के साथ और भी कई दावेदार सक्रिय हैं। इनमें तो कई नये चेहरे भी हैं। मतलब साफ है कि नए चेहरों की दावेदारी और पुराने चेहरों की स्थिति को लेकर भाजपा के अंदर भी अब विधायक दूसरी सीट की तलाश में जुटे हुए हैं। जैसे ही चुनाव नजदीक आएंगे वैसे ही विधायक अपनी विधानसभा सीट पर अपनी स्थिति को भांपते हुए व पाला बदल दूसरी सीट पर किस्मत आजमाने की कोशिश कर सकते हैं।
मंत्रियों से ली जाएगी विकास की रिपोर्ट
बीते चुनाव से मिले सबक से सीख लेते हुए इस बार भाजपा हर हाल में पुरानी गल्तियों को दोहराना नहीं चाहती है, यही वजह है कि अभी प्रदेश में विधानसभा चुनावों में एक साल का समय है, लेकिन अभी पार्टी पूरी तरह से बेहद चौकन्नी नजर आने लगी है। वह चुनावी तैयारियों के साथ ही हर उस रास्ते पर कदम बड़ा रही है जो उसे सीधे -सीधे आमजन से जोड़ती है। इसके लिए पार्टी से लेकर सरकार तक में चिंतन मनन का दौर जारी है। सत्ता व संगठन हर उस पहलू पर फोकस का काम कर रहा है, जो उसे अगले चुनाव में जीत का रास्ता पार करा सकता है। सत्ता और संगठन में मैराथन बैठकों का दौर रुक-रुक कर जारी है। इन बैठकों में हर उस विषय पर गौर किया जा रहा है , जो उसके लिए जनता से जोडऩे में मदद कर सकता है। संगठन द्वारा जहां बूथ स्तर तक काम किया जा रहा है तो , सरकार जनता से जुड़ी हर योजना का लाभ वास्तविक रूप से जरूरतमंद को पहुंचाने की चिंता में लगी हुई है। हाल ही में रातापानी सेंचुरी में हुई भाजपा की बड़ी बैठक में आए सुझावों के बाद अब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह मंत्रियों के साथ दो दिनी चिंतन शिविर लगाने जा रहे हैं।
यह शिविर अगले माह के पहले सप्ताह में प्रस्तावित है। प्रशासन अकादमी में चार और पांच नवंबर को होने वाले इस चिंतन शिविर के लिए मंत्रियों से अभी से अपने दो दिन पूरी तरह आरक्षित रखने के निर्देश दे दिए गए हैं। सूत्रों के मुताबिक हाल ही में रातापानी में हुई भाजपा के शीर्ष नेताओं की बैठक राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष की मौजूदगी में हुई थी। इस बैठक में संगठन के कुछ नेताओं ने मंत्रियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए थे। इसी तरह से यह बात भी सामने आयी थी कि केन्द्र और राज्य सरकार की योजनाओं का जिस तरीके से निचले स्तर तक प्रचार प्रसार होना चाहिए था, उस तरह से नहीं हो रहा है। इसके बाद ही इस तरह का चिंतन शिविर लगाने का फैसला किया गया है। गौरतलब है कि इसके पहले मुख्यमंत्री द्वारा बीते साल जनवरी और दिसंबर में भी दो बार क्लास लगाई जा चुकी है।
उप्र के फार्मूला पर काम करेगा प्रदेश भाजपा संगठन
बीते चुनाव की ही तरह इस बार भी प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा के आम चुनाव को भाजपा कठिन मानकर चल रही है। यही वजह है कि पार्टी के आला नेताओं में मिशन 2023 के फतह के लिए लगातार संगठन के आला पदाधिकारियों के बीच चिंतन मनन का दौर तो चल ही रहा है साथ ही मैदानी दौरे कर वास्तविक जमीनी हकीकत जानने का प्रयास भी किया जा रहा है।यही वजह है कि अब पार्टी के केंद्रीय संगठन ने मप्र में भी उप्र के फार्मूला पर चलने का तय कर लिया है। दरअसल यह फार्मूला उप्र में बेहद कारगर साबित हुआ है जिसकी वजह से ही वहां पर लगातार दूसरी बार पार्टी की सरकार पूर्ण बहुमत से बनी है। दरअसल मप्र भाजपा के लिए बेहद अहम राज्य माना जाता है। इसकी वजह है इसका भाजपा के गढ़ के रुप में पहचान होना और इस राज्य के चुनाव परिणामों का असर देश के उत्तरी राज्यों पर होना है। इस फार्मूला पर चलने के निर्देश हाल ही में राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष ने सीधे दिए हैं। गौरतलब है कि हाल ही में करीब ढाई माह पहले हुए नगरीय निकाय चुनावों में कई महानगरों में भाजपा को महापौर पद पर हार का सामना करना पड़ा है। इनमें वे शहर प्रमुख रुप से शामिल हैं, जो भाजपा के बेहद मजबूत गढ़ माने जाते हैं। यही वजह है कि अब भाजपा का सारा जोर बूथ मैनेजमेंट पर रहने वाला है। यह बात अलग है कि प्रदेश में बीते एक साल से भाजपा संगठन बूथ मैनेजमेंट पर फोकस किए हुए है और इसके लिए कई तरह के कदम भी उठाए गए हैं।
उप्र संगठन द्वारा प्रयोग किए गए फार्मूला के तहत अब प्रदेश में भाजपा संगठन द्वारा पहली बार बूथवार मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च से लेकर धर्म, जाति और समाज के वोटर्स की जानकारी जुटाई जा रही है। चुनाव में इसी रणनीति के तहत की वोटर्स पर फोकस की तैयारी की जा रही है। इसी के तहत अभी से ही कमजोर बूथों पर सरकार और संगठन के बड़े नेताओं को तैनात किया जाने की योजना बना ली गई है। मिशन 2023 के लिए प्रत्येक लोकसभा और विधानसभा के हिसाब से सांसद और विधायकों को इन की वोटर्स की जिम्मेदारी दी जा रही है। पार्टी ने कुछ दिन पहले सरल एप लॉन्च किया था, जिसका डेटा बैंक बनाया गया है। इस एप के जरिए पार्टी प्रदेश के 85 हजार बूथ की पूरी जानकारी है। इसी से जानकारी निकालकर उसका विश्लेषण किया जा रहा है। यह बात अलग है कि इस पूरे फार्मूला को लागू करने में बेहद गोपनीयता बरती जा रही है, जिसकी वजह से कोई भी नेता इसे स्वीकार नहीं कर रहा है। यही नहीं अब यह भी जानकारी जुटाई जा रही है कि किस धार्मिक आयोजन में कहां कितनी भीड़ जुटती है। दरअसल रातापानी की बैठक में बीएल संतोष ने सीख दी है कि नगरीय निकाय चुनाव में जो भी प्लस और माइनस है। उसके माइनस पर अब ध्यान दो। इसके पहले एक बार फिर से बूथ स्तर तक जाने की जरूरत है। मैदानी कामकाज पर ज्यादा ध्यान देना होगा।