दलित बहुल इलाकों में होंगे… भाजपा के सम्मेलन

भाजपा

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में कांग्रेस जुटी हुई है। सत्ता में वापसी के लिए प्रदेश में अभी भी विधानसभा के आम चुनाव होने में छह माह का समय बचा हुआ है , लेकिन भाजपा व कांग्रेस पूरी तरह से चुनावी मोड में आकर मतदाताओं को लुभाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। कांग्रेस जहां आरक्षित वर्ग को पार्टी से जोडऩे के लिए महासम्मेलनों का आयोजन करने जा रही है तो वहीं भाजपा ने इसके जवाब में सम्मेलन करने का फैसला किया है। भाजपा ने इन सम्मेलनों के लिए अनुसूचित जाति वर्ग बाहुल्य विधानसभा सीटों का चयन किया है। यह सम्मेलन उनके लिए आरक्षित सभी 35 विधानसभा सीटों पर अलग-अलग किए जाएंगे। इसकी वजह है बीते विस चुनाव के समय यह वर्ग भाजपा से दूर होकर कांग्रेस के पाले में चला गया था।
इसकी वजह थी एट्रोसिटी एक्ट के दौरान मुख्यमंत्री का वह माई के लाल वाला बयान । यही वजह है कि इस बार भाजपा इस वर्ग पर भी विशेष रुप से फोकस कर रही है। इन सम्मेलनों के आयोजन का जिम्मा पार्टी ने अनुसूचित जाति मोर्चा को सौंपा है। इसकी शुरुआत 15 मई से की जा रही है। इसमें केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अनुसूचित जाति वर्ग के लिए चलाई जा रही योजनाओं का मंडल और बूथ स्तर तक प्रचार प्रसार किया जाएगा। बता दें कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिए भाजपा लंबे समय से अलग-अलग अभियान चला रही है।
संत रविदास जयंती से लेकर आंबेडकर जयंती तक पार्टी ने कई विशेष कार्यक्रम किए हैं। दरअसल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब सोशल इंजीनियरिंग के बजाय जनकल्याणकारी राज्य की अवधारणा पर काम करते दिख रहे हैं। उन्होंने लाड़ली बहना के साथ मुफ्त राशन, सभी को पक्के मकान, स्वरोजगार के लिए ऋण और महिलाओं के स्वसहायता समूहों के माध्यम से अजा वर्ग के प्रभाव वाले क्षेत्रों में पैठ बढ़ाने पर जोर दिया है। वहीं, सीएम राइज स्कूल, लाड़ली लक्ष्मी योजना 2.0 और गांवों तक परिवहन व्यवस्था के माध्यम से भी इन वर्गों को आश्वस्त करने की कोशिश कर रहे हैं। ग्वालियर में आयोजित आंबेडकर महाकुंभ की सफलता भी भाजपा सरकार के प्रयासों की सफलता के रूप में देखी जा रही है।
ग्वालियर में लगा था बड़ा झटका
 बीते आम विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए नुकसान का सबसे बड़ा कारण एट्रोसिटी एक्ट के विरोध में देशभर के विरोध-प्रदर्शन की लहर का मध्य प्रदेश तक पहुंचना था। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हंगामा हुआ था। इस पर काबू पाने के लिए बड़े पैमाने पर थानों में मामले दर्ज किए गए। जिनके खिलाफ केस दर्ज हुए, उनमें बड़ी संख्या अनुसूचित जाति वर्ग से जुड़े नेताओं की थी। 2018 के विधानसभा चुनाव को सामने देखते हुए कांग्रेस ने इसका जमकर फायदा उठाया और वादा किया कि सत्ता में आने पर वह इन सभी मामलों को समाप्त कर राहत देगी।इसका फायदा कांग्रेस को मिला था। यही नहीं आरक्षण के पक्ष में दिए गए बयान की वजह से भाजपा से स्वर्ण वर्ग भी नाराज हो गया था।
इस तरह के रहे थे परिणाम
अगर दलित वर्ग के लिए आरक्षित वर्ग की सीटों को देखें तो प्रदेश की 34 सीटों में से कांग्रेस ने बीते चुनाव में 26 सीटें जीत ली थीं, जबकि भाजपा को महज 7 सीटें ही मिल सकी थीं। इनमें से एक सीट  बसपा के खाते में भी आयी थी।
यह है स्थिति
अनुसूचित जाति बहुल क्षेत्रों में भिंड, मुरैना, टीकमगढ़, रीवा और रायसेन शामिल हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य की 7.26 करोड़ जनसंख्या में अनुसूचित जाति 15.6 प्रतिशत है । इनका सर्वाधिक प्रभाव ग्वालियर-चंबल अंचल में है। इस अंचल में  34 सीटें आती हैं, जिनमें से 7 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 34 में से 26 सीटें जीत ली थीं। खास बात यह है कि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 7 सीटों में 6 सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया था, जबकि बीजेपी को केवल 1 ही सीट मिली थी। हालांकि उस वक्त कांग्रेस के स्टार प्रचारक श्रीमंत का इसमें बड़ा योगदान था जो अब बीजेपी में हैं। श्रीमंत के भाजपाई बनने के बाद यहां के समीकरण बदलने से उपचुनाव के बाद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 7 सीटों में 5 सीटों पर बीजेपी और 3 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है।  लेकिन फिर भी ग्वालियर चंबल की 34 सीटों में से कई सीटों पर दलित वोटबैंक सबसे अहम माना जाता है। ऐसे में इस इलाके के जातीय समीकरण अभी से बीजेपी को बेचैन किए हुए हैं, जिसके चलते पार्टी यहां कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं है।

Related Articles