कुपोषण मिटाने की योजना बनी बीरबल की खिचड़ी

कुपोषण
  • यदि योजना बनने के बाद ही लागू कर दी जाती तो इससे अब तक बच्चों को कुपोषण से मुक्ति मिल गई होती

    भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम।
    पोषक तत्वों से भरपूर स्थानीय स्तर पर पैदा होने वाले मोटे अनाज का उपयोग कुपोषण मिटाने में करने की योजना को बीते तीन साल से लागू होने का इंतजार है। इसकी वजह से यह योजना बीरबल की खिचड़ी के समान हो चुकी है। दरअसल आला अफसर और सप्लायरों का गठजोड़ इस योजना की राह में रोड़ा बने हुए हैं, जिसकी वजह से बीते तीन सालों से यह योजना फाईलों में कैद है। अगर यह योजना बनने के बाद ही लागू कर दी जाती तो इससे अब तक बच्चों को कुपोषण से न केवल मुक्ति मिल गई होती, बल्कि सरकार को भी पोषण आहार की खरीदी में कम राशि खर्च करनी पड़ती। यही नहीं इस मोटे अनाज की खरीदी सरकार द्वारा किए जाने से उसकी फसल उगाने वाले किसानों को भी उपज का अच्छा दाम मिलता। इस योजना को तत्कालीन महिला बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस के समय तैयार किया गया था, जिसे मिलेट मिशन नाम दिया गया था।  इस मिशन के तहत मोटे अनाज में शामिल कोदो, कुटकी, ज्वार और बाजरा आता है। इस अनाज का उपयोग आदिवासी बाहुल्य डिंडोरी जिले में कुपोषण मुक्ति के लिए उपयोग भी किया जा रहा है , जिसके सकारात्मक परिणाम भी आ रहे हैं। दरअसल इस अनाज का उपयोग कर बच्चों में लोकप्रिय बिस्कुट आदि का निर्माण कर उसका पोषण आहार के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इस सामग्री का वितरण न केवल आंगनवाडिय़ों में बल्कि मध्यान्ह भोजन के रूप में भी किया जा सकता है। खास बात यह है कि विशेषज्ञ भी मानते हैं कि इस अनाज से तैयार खाद्य सामग्री के अब तक कोई साइड इफैक्ट भी सामने नहीं आए हैं। इसमें सामान्य भोजन सामग्री की अपेक्षा अधिक पौष्टिक तत्व होते हैं।
    कुपोषण की यह है स्थिति
    सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में कुपोषण का शिकार लगभग 11 लाख से अधिक बच्चे हैं, जिनमें से करीब सवा लाख बच्चे अति कुपोषित हालात में हैं।  इनके पोषण आहार पर हर साल सरकार द्वारा सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं, लेकिन हालात लगभग जस के तस बने हुए हैं।
    मोटे अनाज की पौष्टिकता की वजह
    दरअसल मोटे अनाज में कैल्शियम, आयरन, फाइबर सहित अन्य पोषक तत्व भरपूर होते हैं। यह तत्व कुपोषण मिटाने में बेहद कारगर रहते हैं। खास बात यह है कि  यह मोटा अनाज कुपोषण वाले जिलों में वृहद पैमाने पर उगाया जाता है। यही वजह है कि जिलों में उत्पादित मोटे अनाज के हिसाब से अलग-अलग जिलों को मिलाकर क्लस्टर बनाए जाने थे। जिस पर तीन साल में कोई काम ही नहीं किया गया है।
    कंपनियां कर  रही हैं शोषण  
    सरकार द्वारा खरीदी नहीं किए जाने की वजह से इस मोटे अनाज की खरीदी निजी कंपनियों द्वारा स्व सहायता समूहों के माध्यम से बेहद कम दामों में की जाती है। इस वजह से किसानों को इस उपज का दाम सही नहीं मिल पाता है और वे शोषण का शिकार हो रहे हैं। फिलहाल प्रदेश में मोटे अनाज का उत्पादन लगभग 10 लाख मीट्रिक टन के आसपास होता है। सही दाम न मिलने की वजह से इसका रकबा चार लाख हेक्टेयर की जगह अब महज सवा लाख ही रह गया है।
    नहीं उठाए यह कदम
    योजना को गति देने के लिए कृषि विभाग द्वारा प्रदेश की बड़ी फूड प्रोसेसिंग कंपनियों से स्व सहायता समूहों का एमओयू करना था। जिसके बाद यह कंपनियां उन्हें उन्नत किसम से खेती करने और ग्रेडिंग आदि का प्रशिक्षण देती। वर्तमान में प्रदेश के दो दर्जन जिले ऐसे हैं जहां पर मोटे अनाज की खेती की जाती है। इस मोटे अनाज का 99 फीसदी उपयोग कारोबारियों द्वार किया जाता है। आदिवासी और यह अनाज उगाने वाले अधिकांश लोगों ने खुद उपयोग करना पीडीएस में मिलने वाले गेहूं और चावल की वजह से बंद कर दिया गया है। 

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