
- राजनीतिक नियुक्ति के लिए नेताओं को करना होगा अभी और इंतजार
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में भाजपा के नेता निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्ति के लिए पिछले 14-15 महीने से इंतजार कर रहे हैं। हर दूसरे-तीसरे महीने निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्ति की हवा उड़ती है और नेता सक्रिय हो जाते हैं, लेकिन कुछ दिन बाद ही मामला थम जाता है। एक बार भी निगम-मंडलों में होने वाली नियुक्तियों का मामला आगे बढ़ता दिख रहा है। भाजपा नेताओं का कहना है कि निगम-मंडलों की कुर्सी बीरबल की खिचड़ी बन गई है। यह खिचड़ी कब पकेगी और बंटेगी इस संदर्भ में कुछ नहीं कहा जा सकता। जानकारी के अनुसार महीनों से मंत्री दर्जे की चाह में नेताओं की आस पर एक बार फिर से ग्रहण लगता दिख रहा है। भाजपा सूत्रों की मानें तो सत्ता और संगठन में फिलहाल निगम मंडलों में नियुक्तियां नहीं होने जा रही है। अलबत्ता सरकार उन आयोगों में जरूर जल्द राजनीतिक नियुक्तियों पर विचार कर रही है, जो सीधे जनता से जुड़े हैं और जिनमें अध्यक्ष न होने पर उनका काम प्रभावित हो रहा है। आयोगों में अध्यक्षों की नियुक्ति के लिए सत्ता और संगठन के आला नेताओं में चर्चा हो चुकी है। माना जा रहा है कि अब जल्द आयोगों में खाली पड़े पदों पर नियुक्तियां कर दी जाएंगी।
पहले आयोगों में होंगी नियुक्तियां
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मुख्यमंत्री बनने के बाद निगम-मंडलों में काबिज नेताओं को पदमुक्त कर दिया गया था। उसके बाद से इनमें नई नियुक्तियों को लेकर पार्टी के कई नेता इंतजार कर रहे हैं। इसके अलावा आयोगों में भी पद खाली पड़े हैं। इनमें महिला आयोग, मप्र राज्य अनुसूचित जाति आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, सामान्य निर्धन वर्ग आयोग, मप्र राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग प्रमुख हैं। इनमें महिला आयोग में लंबे समय से अध्यक्ष नहीं है। कांग्रेस सरकार में महिला आयोग के अध्यक्ष पद पर शोभा ओझा की नियुक्ति हुई थी। भाजपा सरकार आने के बाद उन्हें हटा दिया गया था। इसके बाद से ही इस महिला आयोग में अध्यक्ष का पद खाली है। महिला आयोग में अध्यक्ष नहीं होने से यहां आयोग में प्रताप करोसिया और बाल मामलों की सुनवाई नहीं हो पा रही है। यही हाल अधिकार संरक्षण आयोग का है। इसके अलावा सफाई कर्मचारी संगठन नेताओं से भी सीएम की चर्चा हो चुकी है। इसके अलावा अन्य आयोगों में भी अध्यक्ष पद के लिए संगठन स्तर पर विचार-विमर्श चल रहा है। गौरतलब है कि सरकार बनने के बाद मप्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग में पूर्व मंत्री रामकृष्ण कुसमरिया को अध्यक्ष बनाया गया था।
इन तर्कों और इरादों पर अटकीं नियुक्तियां
लोकसभा चुनाव खत्म हुआ तो मोहन सरकार पहली बारिश में जान-माल की चिंता में जुट गई। इसके बाद भाजपा का सदस्यता अभियान शुरू हो गया। तब सभा और संगठन को यह अंदेशा था कि संगठन चुनाव के बीच राजनीतिक नियुक्तियां की तो वंचित रहने वाले नेता नाराज हो जाएंगे। बारिश का मौसम खत्म हुआ तो दिसंबर 2024 में सरकार एक साल के कार्यकाल का लेखा-जोखा जनता तक पहुंचाने के मकसद में जुटी। तब यह मंशा थी कि नियुक्तियां खोली गईं तो कई नेता पद पाने के चक्कर में उलझ जाएंगे। इससे नए-नए गुट बन सकते हैं। इसके बाद बुदनी और विजयपुर सीट पर उप चुनाव से टल गई। फिर संगठन चुनाव के बाद नियुक्ति की बात कही गई। संगठन सूत्रों की माने तो लोकसभा चुनाव के बाद निगम मंडलों में अध्यक्षों और उपाध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर संगठन के कोर ग्रुप की बैठक में चर्चा हुई थी। इस बैठक बैठक में में जिलों के वरिष्ठ नेताओं से नाम भी मांगे गए थे और कई नाम संगठन ने अपने स्तर पर भी सुझाए थे। इनमें उन नेताओं के नाम भी शामिल थे, जिन्हें तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में विधानसभा चुनाव से कुछ माह पहले ही मौका मिला था। इनमें से कुछ नेताओं को फिर से मौका देने पर सहमति भी बन गई थी। इसी दौरान पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व से सदस्यता अभियान की तारीख आ गई। उसके बाद संगठन चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई। इसके चलते निगम मंडलों का मामला अटक गया। प्रदेश के दो दर्जन से अधिक निगम-मंडल और बोर्ड में राजनीतिक नियुक्तियों के लिए दावेदारों का इंतजार लंबा होता जा रहा है। इसके अलावा बड़े शहरों के प्राधिकरणों में भी नियुक्तियां होनी है। संगठन के एक नेता की माने तो अभी केवल आयोगों में नियुक्तियों पर विचार किया जा रहा है। निगम-मंडल और प्राधिकरणों में नियुक्तियों पर बाद में में विचार किया जाएगा। गौरतलब है कि भाजपा में इन दिनों प्रदेश अध्यक्ष को लेकर दिल्ली में मंथन चल रहा है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का भी चुनाव होना है। संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया से निपटने के बाद ही पार्टी अब राजनीतिक नियुक्तियों पर विचार करेगी।