चुनावी माहौल में ‘बिजली’ दिखा रही कमाल

बिजली
  • न बिजली कम पड़ रही…न कंपनियों को घाटा लगा

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। महंगाई और कटौती का पर्याय बनी बिजली मप्र में चुनावी माहौल में कमाल दिखा रही है। यानी प्रदेश में न तो बिजली की कमी पड़ रही है और न ही कंपनियों को घाटा लग रहा है। इससे किसानों के साथ ही सभी उपभोक्ताओं को  इसका लाभ मिल रहा है। खेती-किसानी के इस दौर में किसानों को सिंचाई के लिए भरपूर बिजली मिल रही है। जबकि, पिछले 4 साल किसान बिजली के लिए परेशान होते रहे। गौरतलब है कि मप्र के ग्रामीण इलाके ही विधानसभा चुनाव की तस्वीर को तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इस चुनाव में भी किसानों की समस्याएं मुख्य चुनावी मुद्दा हैं। किसानों ने बिजली, पानी की किल्लत और छुट्टा पशुओं से फसल को हो रहे नुकसान की समस्या को प्रमुखता से उठाया है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि चुनावी बिगुल बजने के बाद से ही बिजली की समस्या छूमंतर हो गई है। प्रदेश की बिजली कंपनियां फ्यूल एंड पावर पर्चेस एडजेस्टमेंट सरचार्ज (एफपीपीएएस) के नाम पर हर महीने बिजली का टैरिफ बढ़ा रही हैं। प्रदेश में एफपीपीएएस अप्रैल से लागू हुआ है। पहली बार बिजली कंपनियों ने 8.41 फीसदी सरचार्ज वसूला था। पिछले पांच महीने से हर महीने सरचार्ज वसूला जा रहा है। मप्र में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 17 नवंबर को होना है। ऐसे में इस बार बिजली कंपनियों को कोई घाटा नहीं लगा। बिजली कंपनियों ने इस बार 1 पैसे का भी सरचार्ज नहीं लगाया है। केंद्र सरकार ने घाटे के आधार पर फ्यूल एंड पावर पर्चेस एडजेस्टमेंट सरचार्ज (एफपीपीएएस) वसूलने के अधिकार बिजली कंपनियों को दिए हैं। इसके चलते बिजली कंपनियों ने मई से सरचार्ज लगाना शुरू कर दिया था। इस सरचार्ज की गणना प्रत्येक महीने की 24 तारीख होती है। बिजली कंपनियों द्वारा मई से हर महीने सरचार्ज वसूला जा रहा है, लेकिन इस बार बिजली कंपनियों ने कोई नया सरचार्ज नहीं वसूला है। इसे चुनाव की महिमा ही कहेंगे कि चुनावी सीजन होने के चलते पिछले पांच महीने से फ्यूल कास्ट में घाटा उठा रही बिजली कंपनियों को नवंबर में कोई घाटा नहीं हुआ है।
 बिजली खपत 15 हजार मेगावाट
रबी सीजन में बिजली की खपत सर्वाधिक रहती है। अक्टूबर की शुरुआत में प्रदेश की  बिजली खपत 9000 मेगावाट के करीब बामुश्किल पहुंच रही थी। वहीं महीना खत्म होने में करीब 6500 मेगावाट बिजली खपत की बढ़ोतरी दर्ज हो रही है। वर्तमान में मध्यप्रदेश की बिजली खपत 15000 मेगावाट के करीब पहुंच गई है। इसमें भी बिजली की सबसे ज्यादा डिमांड दिन के समय में बनी हुई है। रबी सीजन में गेहूं, आलू, प्याज, लहसुन, मटर एवं अन्य सब्जियों में पानी देने के लिए मोटर पंप का सहारा लिया जाता है और यह बिजली से संचालित होते हैं, जिसके कारण अक्टूबर से जनवरी तक रबी सीजन में बिजली की सर्वाधिक मांग बनी रहती है। पिछले वर्ष भी 16000 मेगावाट के करीब सर्वाधिक बिजली खपत दर्ज की गई थी। इस बार अक्टूबर खत्म हो रहा है और बिजली की खपत 15000 मेगावाट को पार कर रही है। इंदौर बिजली कंपनी में अक्टूबर के शुरुआती दिनों में बिजली की खपत 4000 मेगावाट के करीब चल रही थी, जो अब 2150 मेगावाट बढक़र 6150 मेगावाट के करीब चल रही है। जानकारों की मानें तो इस बार बिजली की खपत नए रिकॉर्ड दर्ज करेगी। तकरीबन 17000 मेगावाट प्रदेश में बिजली खपत का आंकड़ा आगामी एक से डेढ़ महीने में दर्ज होने की पूरी संभावना है। रबी सीजन में बिजली की मांग 15 अक्टूबर के बाद शुरू होती है, लेकिन इस बार अक्टूबर की शुरुआत में ही बिजली की डिमांड सिंचाई के लिए शुरू हो गई थी, जिसका आकलन अधिकारी नहीं कर पाए थे और सिंचाई के लिए 10 घंटे बिजली देने में मशक्कत करना पड़ी थी।
अब अगले साल बढ़ेगा टैरिफ
अगले महीने प्रदेश में नई सरकार बन जाएगी। ऐसे में बिजली कंपनियों पर किसी प्रकार का कोई दबाव नहीं रहेगा। तय है कि अगले महीने बिजली उत्पादन का महंगा हो जाएगा और हो सकता है कि बिजली कंपनियां इस महीने का सरचार्ज भी अगले महीने वसूल कर लें। चुनावी साल होने के कारण इस साल बिजली के टैरिफ में मामूली इजाफा हुआ था। बिजली कंपनियों ने 1537 करोड़ का घाटा बताते हुए बिजली की दरों में 3.20 फीसदी का इजाफा करने की मांग की थी। इसका प्रस्ताव विद्युत विनियामक आयोग को भेजा था, लेकिन आयोग ने सिर्फ 1.65 फीसदी टैरिफ बढ़ाया था। बिजली का यह टैरिफ इस साल मार्च में बढ़ गया था। अब बिजली कंपनियां अगले साल जनवरी-फरवरी में बिजली का टैरिफ बढ़ाए जाने का प्रस्ताव आयोग की देंगे। सूत्रों के मुताबिक चुनाव के चलते इस बार सरकार ने प्रदेश के करीब 70 लाख बिजली उपभोक्ताओं के बिजली बिल स्थगित कर दिए हैं। इससे बिजली कंपनियां एक बार फिर बड़े घाटे में आ गई हैं। इस घाटे की भरपाई के लिए अगले साल बिजली कंपनियां बिजली के टैरिफ में 9 से 10 फीसदी तक का इजाफा करने की मांग आयोग कर सकती है। इससे तय है कि अगले साल बिजली उपभोक्ताओं के बढ़े हुए बिजली बिल चुकाने होंगे। इससे पहले चुनाव के बाद बिजली के टैरिफ में साल में दो बार इजाफा किया गया है।

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