
गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में आदिवासियों के नाम पर जमीनों को हड़पने का बड़ा खेल खेला जा रहा है। आदिवासियों की जमीन बेचने में जबलपुर जिले में हुए खेल में चार अफसरों पर लोकायुक्त ने एफआईआर दर्ज की है, लेकिन इससे कहीं बड़ा खेल कटनी जिले में हुआ है। दो दशक में कलेक्टरों की अनुमति से आदिवासियों की 2100 एकड़ से अधिक जमीन अन्य वर्ग को बेच दी गई। हालांकि अभी तक सिर्फ एक आईएएस अफसर अंजू सिंह बघेल पर ही कार्रवाई की गई है। कटनी जिले में जमीन का यह पूरा खेल रसूखदारों के दम पर खेला गया, जिसकी आड़ तत्कालीन कलेक्टर और प्रशासनिक अधिकारी बने। इन्होंने आदिवासियों की जरूरत के हिसाब से कम बल्कि रसूखदारों की पहुंच पर अधिक अनुमतियां जारी कीं। हद तो इस बात की है कि अधिकारियों ने उन जमीनों को भी बचने की अनुमति दे दी, जो शासन ने आदिवासियों को जीवन यापन के लिए पट्टे पर दी थी।
दो दशक के आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि 2006 से 2008 के बीच आदिवासियों की जमीन हड़पने में कोई गिरोह लगा हुआ था, जिसका हथियार प्रशासनिक अमला बना। इस अवधि में सबसे अधिक 123 आदिवासियों की जमीन बिक्री अनुमति जारी की गई। समाज के अंतिम पंक्ति में आने वाले आदिवासियों के हित संरक्षण और उन्हें छल से बचाने के लिए गैर आदिवासी को जमीन बेचने के लिए राजस्व संहिता में प्रावधान किया गया है। इसमें बेटी-बेटे के विवाह होने, बीमारी या अन्य आपात स्थिति पर कलेक्टर कोर्ट में सुनवाई के बाद ही आदिवासी को जमीन बेचने की अनुमति दी जाती है।
पांच कलेक्टरों के कार्यकाल में बड़ा खेला
आदिवासियों की जमीनों की खरीद-फरोख्त का खेल जिले में पदस्थ रहे पांच कलेक्टरों के कार्यकाल में जमकर हुआ। जिन 281 आदिवासियों को जमीन बेचने की अनुमति दी गई, उनमें 204 आदिवासियों को तो सिर्फ 5 कलेक्टरों के कार्यकाल में ही स्वीकृति मिली। बाकी 10 कलेक्टरों ने सिर्फ 77 आदिवासियों को अनुमति दी । जानकारी के अनुसार आदिवासियों की जमीन बेचने के सबसे अधिक मामले 2006 से 2008 तक सामने आए हैं। इस दौरान 123 आदिवासियों ने 619 हेक्टेयर जमीन बेची। इस दौरान तत्कालीन कलेक्टर अनुपम राजन व अंजू सिंह बघेल रहीं। इसके अलावा वर्ष 2011, 2012 व 2013 में भी 81 आदिवासियों को जमीन बेचने की अनुमति दी गई। इस दौरान एम सेल्वेंद्रम व अशोक कुमार सिंह कलेक्टर रहे।
जिंदा आदिवासी को मृत बताकर बेची जमीन
हाल ही में कटनी जिले के विजयराघवगढ़ विधानसभा में जिंदा आदिवासी रतिया कोल को मृत घोषित करते हुए उसकी बेशकीमती जमीन हड़पने का मामला सामने आया है। विधायक संजय पाठक ने मामला संज्ञान में आने के बाद पीड़ित आदिवासी को न्याय दिलाने की बात कही है। जानकारी के अनुसार कलहरा ग्राम निवासी रतिया कोल की बेशकीमती जमीन को हड़पने के लिए अधिकारी और कर्मचारियों ने मिलकर अजब गजब कारनामे को अंजाम दिया। पहले तो बुजुर्ग रतिया कोल को 1998 में मृत रतिया बाई के कागजात लगाकर जिंदा इंसान को मृत घोषित कर दिया, फिर उनकी 0.55 हेक्टेयर जमीन को फौती साबित कर दिया। वहीं, अब जिंदा इंसान खुद को जिंदा साबित करने के लिए दर-दर भटक रहा है। मामला सुनने में भले ही फिल्मी लग रहा हो लेकिन ये पूरी आप बीती विजयराघवगढ़ के रतिया कोल की है। जो अधिकारियों के चक्कर लगाकर जब थक गया तो वो स्थानीय विधायक संजय पाठक के पास जा पहुंचा। पीड़ित रतिया कोल की बात सुनकर तो एक पल के लिए विधायक पाठक भी दंग रह गए की कैसे कोई गरीब की जमीन हड़पने के लिए इस तरह की जालसाजी कर सकता है। रतिया कोल की करीब डेढ़ एकड़ जमीन जो मुख्यमार्ग से लगी होने के कारण उसकी वर्तमान कीमत करोड़ों में है, जिसे किसी तत्कालीन पटवारी रामलाल कोल ने अपने किसी रिश्तेदार के नाम पर चढ़ा दिया था। इसके पहले कि पीड़ित रतिया कोई आपत्ति जताता उससे पहले ही तत्कालीन तहसीलदार नेहा जैन और पटवारी ने मिलकर रतिया कोल को मृत्यु प्रमाणपत्र दिखाते हुए फौती में चढकऱ फर्जी सेझरा बना दिया। रतिया कोल की बात सुनकर विधायक संजय पाठक ने प्रशासन के रूप में शामिल तत्कालीन तहसीलदार और पटवारी की भूमिका को संदिग्ध माना और पीड़ित रतिया के साथ हुए फर्जीवाड़े को खत्म करते हुए उसे न्याय दिलाने का भरोसा दिलाया है। विधायक संजय पाठक का कहना है कि रतिया कोल को मृत घोषित करने और उसकी जमीन को हड़पने वाले अधिकारी कर्मचारियों सहित अन्य लोगों पर एफआईआर दर्ज करवाने से लेकर कड़ी कार्रवाई करने की चर्चा एसपी और कलेक्टर से करेंगे।
एक पर कार्रवाई…
इस खेल में एक दर्जन अफसर शामिल रहे, जो दो दशक से कटनी में कलेक्टर के तौर पर पदस्थ रहे हैं। कार्रवाई महज एक कलेक्टर अंजू सिंह बघेल पर ही हुई। अंजू सिंह पर आरोप है वह 7.6 हेक्टेयर जमीन अपने बेटे अभिवेन्द्र के नाम स्थानांतरित कर दी थी। जिले में अब तक 15 कलेक्टर पदस्थ रहे हैं। इनमें शहजाद खान 1998-2001, आरआर गंगारेकर 2001-2004, आरके माथुर 2004-2004, अनुपम राजन 2004-2007, अंजू सिंह बघेल 2007-2009, एम. सेल्वेंद्रम 2009-2011, केवीएस चौधरी 2018-2019, डॉ. पंकज जैन 2019-2019, अशोक सिंह 2012-2014 विकास सिंह नरवाल 2014-2016, प्रकाश जांगरे 2016-2016, एसबी सिंह 2019-2020, प्रियंक मिश्रा 2020-2022, विशेष गढ़पाले 2016-2018 और अविप्रसाद 2022 से अब तक कलेक्टर हैं।
281 को अनुमति
सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, दो दशक में कटनी जिले में 281 आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासी को बेचने की अनुमति तत्कालीन कलेक्टरों ने दी। इससे 860 हेक्टेयर यानी 2127 एकड़ जमीन दांव पर लग गई। इन जमीनों को बेचने वाले आदिवासी परिवार कहां और किस हाल में हैं, किसी को कुछ नहीं पता। प्रशासन भी इनके बारे में नहीं बता पा रहा है। आदिवासियों को जमीन बेचने की सबसे अधिक अनुमति 2006 से 2008 के बीच जारी की गई। यह वह समय था, जब जमीन के दाम आसमान पर थे और कारोबार अपने चरम पर पहुंच गया था। इन तीन साल में आदिवासियों की जमीन बिक्री का औसत 80 फीसदी रहा।
जरूरत के नाम पर हो रहा था व्यापार
आदिवासी की जमीन सामान्य वर्ग के व्यक्ति बेचने की प्रक्रिया जटिल है। कलेक्टर को जमीन के विक्रय करने वाले का उद्देश्य और खरीददार से संबंधित कारण में संतुष्ट होना आवश्यक है। ये आवश्यक है कि जिस जगह की जमीन है खरीददार भी वहीं का निवासी हो। जबकि इस अनुमति में जबलपुर और कटनी जिले के निवासी है। कलेक्टर की अनुमति में जमीन बेचने और खरीदने का प्रयोजन के साथ उद्देश्य पूर्ण हो रहा है कि नहीं यह भी सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है। ऐसा कुछ भी इस प्रक्रिया में नहीं हुआ। बता दे कि कुल 13 प्रकरणों में से सर्वाधिक 7 मंजूरियां बसंत कुर्रे की तरफ से जारी हुई। इसके बाद 3 मामलों में ओमप्रकाश श्रीवास्तव ने, 2 मामलों में एमपी पटेल और 1 मामले में दीपक सिंह ने जमीन हस्तांतरण की अनुमति दी थी।