अपनों को नौकरी देना भारी पड़ ही गया बेलवाल को

बेलवाल
  • अब तक मिलता रहा है पूर्व सीएस के करीबी होने का फायदा

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। राज्य आजीवीका मिशन में अपनों को नियमों व कायदों को दरकिनार कर नौकरी देना तत्कालीन सीईओ ललित मोहन बेलवाल और उनके साथियों को भारी पड़ ही गया है। इस मामले में पूर्व में भी शासन द्वारा जांच कराई गई थी, लेकिन एक पूर्व मुख्य सचिव के बेहद करीबी होने की वजह से बेलवाल का तो कुछ नहीं बिगड़ रहा था, बल्कि जांचकर्ता आईएएस अफसर को जरुर लूप लाइन में भेजकर उनकों कलेक्टरी से वंचित रखा जा रहा था। अब इस मामले में न्यायालय के आदेश पर बेलवाल सहित तीन लोगों पर मामला दर्ज कर लिया गया है। उन पर आरोप है कि उनके द्वारा मप्र आजीविका मिशन में नियुक्तियों के लिए शासन से अनुमोदित मानव संसाधनन नीति के बजाय फर्जी एसआर मैन्युल तैयार कर उसके आधार पर संविदा नियुक्तियां दी गई हैं। इस दौरान उनके द्वारा पात्रता नियमों   के साथ ही अनुभव की भी अनदेखी की गई। यही नहीं  जिन अपात्रों की भर्ती की थी, उन्हें मनमाने तरीके से उच्च स्तरीय वेतन भी दिया गया था।
सुषमा रानी शुक्ला के लिए नियमों को ताक पर रख दिया
नियम विरुद्ध नियुक्तियों में विशेष रूप से  सुषमा रानी शुक्ला को उस पद पर नियुक्त किया गया, जिसके लिए न्यूनतम 15 वर्ष का प्रबंधकीय अनुभव अपेक्षित था, जबकि उन्हें यह अनुभव नहीं था। यही नहीं उनकी एमबीए की डिग्री भी फर्जी थी। उन्होंने एनआईआरडी हैदराबाद का फर्जी अनुभव और शैक्षणिक प्रमाण पत्र प्रस्तुत किए। इसके बावजूद उन्हें नियुक्त करने के मात्र चार माह के भीतर अवैध तरीके से 70,000 रुपये प्रतिमाह का मानदेय स्वीकृत किया गया। जांच टीम ने यह भी पाया कि अन्य कर्मचारियों को जिनके पास अपेक्षित अनुभव था ,उन्हें यह लाभ नहीं दिया गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि चयन और मानदेय निर्धारण की प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण और चहेतों को लाभ देने के उद्देश्य से की गई।
बेलवाल ने बेईमानीपूर्वक एसआर मैन्युअल के रूप में प्रस्तुत किया
जांच में ये तथ्य सामने आया कि तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी ललित मोहन बेलवाल द्वारा म.प्र. राज्य आजीविका मिशन की मानव संसाधन नीति  को बेईमानी पूर्वक को एसआर मैनयुअल के रूप में प्रस्तुत किया गया, जबकि ऐसे किसी एसआर मैनयुअल को राज्य आजीविका फोरम द्वारा अनुमोदन प्राप्त नहीं था। दिनांक 27 मार्च 2015 को राज्य आजीविका फोरम की कार्यकारिणी समिति की बैठक में केवल मानव संसाधन नीति को मंजूरी दी गई थी, एसआर मैनयुअल का कोई उल्लेख नहीं था। इसके विपरीत बेलवाल द्वारा तैयार की गई नस्ती में कूटरचित रूप से एसआर मैनयुअल शब्द जोड़ा गया। अभी तक की प्रारंभिक जांच के दौरान एकत्र साक्ष्यों और दस्तावेजों को परीक्षण से यह सिद्ध हुआ है कि ललित मोहन बेलवाल, विकास अवस्थी और श्रीमती सुषमा रानी शुक्ला ने मिलकर भर्ती प्रक्रिया को प्रभावित किया, फर्जी दस्तावेजों का प्रयोग किया और शासन को गुमराह कर व्यक्तिगत लाभ प्राप्त किया। उक्त के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 468, 471, 120-बी एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 (सी) के अंतर्गत अपराध पंजीबद्ध किया गया है। ईओडब्ल्यू में राज्य आजीविका मिशन में की गईं अन्य अवैध गतिविधियों की जांच अभी जारी है। भविष्य में और भी कई गड़बडिय़ों के खुलासे की संभावना है।
फर्जी बीमा, मशीन खरीदी घोटाला भी आएगा
ईओडब्ल्यू ने अभी नियुक्ति मामले में प्रकरण दर्ज किया है। जल्द ही महिला स्व सहायता समूहों की महिलाओं का फर्जी बीमा और अगरबत्ती मशीन खरीदी घोटाले में भी एफआईआर होगी। शिकायतकर्ता भूपेन्द्र प्रजापति के अनुसार बेलवाल के समय समूहों की महिलाओं ने बीमा के नाम पर करीब 70-80 करोड़ रुपए वसूले, इस राशि का कोई हिसाब नहीं है। करीब 367 अगरबत्ती मशीन खरीदी में भी घोटाला किया गया था।
तीन साल से दबा था मामला
 हालांकि यह भर्ती घोटाला तीन  साल पहले उजागर हुआ था, जिसकी जांच आईएएस नेहा मारव्या ढाई साल पहले सरकार को सौंप चुकी थीं। जिसमें उन्होंने बेलवाल पर नियमों को दरकिनार कर भर्ती करने के आरोप लगाए थे। करीब 264 पेज की जांच रिपोर्ट में मिशन के सीईओ बेलवाल समेत अन्य पर आरोप तय किए गए हैं। सुषमा रानी शुक्ला की जांच को नियम विरुद्ध बताया। नेहा ने जून 2022 में जांच रिपोर्ट शासन को सौंप दी। शासन ने रिपोर्ट पर कार्रवाई करने की बजाए नेहा मारव्या को लूप लाइन में भेज दिया। शिकायतकर्ता के अनुसार ललित मोहन बेलवाल पूर्व मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के करीबी हैं। इस वजह से नेहा मारव्या की जांच रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। जब मामला उच्च न्यायालय गया तो विभाग ने सही तथ्य नहीं रखे। इस बीच 2023 में सरकार बदली। जैसे ही नेहा मारव्या की जांच रिपोर्ट पर कार्रवाई करने का मामला पंचायत मंत्री प्रहलाद पटेल के पास पहुंचा तो, उन्होंने संचालक पंचायत मनोज पुष्प की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर दी। करीब 15 महीने तक सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया तो पिछले महीने मामला ईओडब्ल्यू पहुंचा।
इस तरह की फर्जी नियुक्तियां
जांच में कई बातें उजागर हुई  इसमें  मानव संसाधन मार्गदर्शिका को अनुमोदित दर्शाने के बाद, उसी आधार पर राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर के पदों पर संविदा नियुक्तियां की गई। इन नियुक्तियों के लिए  योग्यता, अनुभव, चयन पद्धति आदि के जो मापदंड निर्धारित किए गए वे मिशन कार्यालय स्तर पर ही बनाये गये, जबकि ऐसे मापदंडों को शासन से अनुमोदित कराना आवश्यक होता है। कई नियुक्तियां ऐसे अभ्यर्थियों को दी गईं जिनकी योग्यता या अनुभव न तो निर्धारित मानकों के अनुरूप थी, न ही वे पद के लिए उपयुक्त थे।

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