
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। एमपी अजब है और यहां की पुलिस गजब है। पुलिस द्वारा की गई गलत कार्रवाई की वजह से कई बेगुनाह लोगों को बरसों तक पीड़ा झेलनी पड़ी है। दरअसल प्रदेश में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिसमें पुलिस ने शिकायत करने वाले पर ही प्रकरण दर्ज कर दिया।
यही नहीं ऐसे कई प्रकरण सामने आए हैं जिनमें बिना किसी गलती के पुलिस की जिद और लापरवाही की वजह से प्रकरण दर्ज किए गए। कई मामले ऐसे हैं जिनमें पुलिस की लापरवाही की वजह से लोगों ने वर्षों तक दर्द सहे और परेशानी झेली है। उल्लेखनीय है कि विगत दिनों सुप्रीम कोर्ट ने सागर की पुलिस कार्रवाई को गलत ठहराया है। यहां पुलिस ने वर्ष 2008 में हत्या का मामला दर्ज किया था। पुलिस ने मामले में शिकायत करने वाले को हत्या का आरोपी बना दिया। वहीं दूसरी ओर आरोपितों को गवाह बना दिया था। सालों की कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिला और पुलिस द्वारा बनाए गए आरोपियों को बरी किया गया। बहरहाल ऐसे प्रकरणों में लोगों के जीवन का बड़ा हिस्सा कानूनी संघर्ष में ही बीत गया। ऐसा ही एक वाकया बनारस निवासी संजय गुप्ता का भी है। संजय गुप्ता पिछले 25 सालों से पुलिस हिरासत में अपने पिता की मौत के लिए दोषियों को सजा दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। बता दें कि संजय के पिता ओमप्रकाश गुप्ता को शहडोल पुलिस एक जैसे नाम के धोखे में चोरी के आरोप में पकड़ कर लाई थी। ओम प्रकाश की पुलिस हिरासत में ही मौत हो गई। 27 फरवरी 1997 को हुई घटना के बाद लंबी प्रक्रिया के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी पुलिस कर्मियों को गिरफ्तार करने के आदेश दिए।
इसी तरह का एक मामला भोपाल का है जब पद के दुरुपयोग के कारण कोर्ट ने भोपाल के पुलिस कर्मियों को जेल भेजा है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012 में दर्ज मामले में पुलिस पूना निवासी एक मां और उसकी बेटी को धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार कर जेल भेजा था। बता दें कि मां और बेटी ने हार नहीं मानी और लंबे समय तक कानूनी संघर्ष किया। यह भी जानकर आश्चर्य होगा कि उनकी इस परेशानी के पीछे पुलिसकर्मियों की मंशा रिश्वत की थी। पुलिसकर्मियों पर आरोप है कि पांच लाख रुपए नहीं देने पर मां-बेटी पर प्रकरण दर्ज किया गया था।
बहरहाल पुलिस के ही एक रिटायर्ड वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक पुलिस में सुपर विजन की पुख्ता व्यवस्था नहीं होने की वजह से ऐसी स्थिति निर्मित होती हैं। कहीं ना कहीं इसमें कमी है। गलत प्रकरण दर्ज करने वाले मामलों में निचले स्तर पर अधिकारियों और कर्मचारियों को तो सजा हो जाती है, लेकिन सुपर विजन करने वाले अधिकारियों की जवाबदेही तय नहीं होती है।
विभाग द्वारा की जाती है कार्रवाई
हालांकि वर्तमान में पुलिस महानिदेशक विवेक जौहरी का कहना है कि जिन मामलों में कोर्ट से पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए गए हैं उनमें अधिकांश मामलों में कोर्ट ने ही सजा के निर्देश दिए हैं। इस तरह के जो भी मामले सामने आते है उनका अध्ययन कर कार्यवाही की जाती है। कोर्ट द्वारा जिन बिंदुओं पर सवाल उठाए जाते हैं, उनकी पहले विभाग की तरफ से समीक्षा की जाती है और समीक्षा उपरांत विभाग स्तर पर कार्यवाही भी की जाती है।