
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य बन चुका है, जिसके बुंदेलखंड अंचल में तमाम प्रयासों के बाद भी पेयजल संकट दूर होने का नाम नहीं ले रहा है। यही वजह ह ै कि अब केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने इस अंचल के लोगों को पेयजल संकट से मुक्ति दिलाने के लिए अटल भू जल योजना को लागू किया है। अगर इसका पूरी तरह से सही क्रियान्वयन हो जाता है तो इस बड़े संकट से लोगों को मुक्ति मिल जाएगी। यह योजना पांच सालों के लिए बनाई गई है। इसके तहत प्रदेश के छह जिलों के 9 विकासखंडों में करीब 1210 ग्रामों में 314 करोड़ से अधिक राशि खर्च की जाएगी।
यह बात अलग है इसके सफल क्रियान्वयन के लिए सरकार को सरकारी अमले की मनमानी और योजनाओं के क्रियान्वयन में की जाने वाली गंभीर लापरवाही पर लगाम लगानी होगी। अन्यथा इसके भी हाल यूपीए सरकार द्वारा दिए गए पैकेज की हजारों करोड़ की राशि खर्च होने के बाद भी समस्या जस की तस बनी रह सकती है। विशेष पैकेज जैसे हालात हालांकि अब भी बनते दिख रहे हैं। अभी भी नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली मोदी सरकार की मंशा पर भी प्रदेश के अफसर पानी फेरने में कोताही बरतने में पीछे नही दिख रहे हैं। यही वजह है कि करीब तीन साल पहले वर्ष 1999 में लागू की गई केंद्र सरकार की अटल भू-जल योजना में बुंदेलखंड के छह जिलों के 667 ग्राम पंचायतों का जल स्तर बढ़ाने तैयार किए गए प्लान को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। दरअसल इस योजना में प्रदेश के जिन छह जिलों को शामिल किया गया है उनके उन ब्लाकों को छोड़ दिया गया है जहां , पर हर साल गंभीर पानी का संकट खड़ा हो जाता है। इसके एवज में उन ब्लाकों को शामिल कर लिया गया है जहां पर पहले से र्प्याप्त पानी की उपलब्धता है। इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए अब वर्ष 2025 तक के लिए वॉटर सिक्युरिटी प्लान बनाया जा रहा है। खास बात यह है कि छतरपुर जिले के बक्स्वाहा, बिजावर और गौरिहार जनपद को इस योजना में शामिल ही नहीं किया गया है, जबकि जिले के तीनों ही जनपद गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। इनकी जगह अफसरों ने छतरपुर, नौगांव और राजनगर ब्लॉक को शामिल कर लिया है। यह तीनों ही जनपद में पानी की स्थिति अच्छी मानी जाती है। इसी तरह से जिन जनपदों को योजना में शामिल किया गया है उनमें बेहद धीमी गति से काम होने से ग्रामीणों को योजना का लाभ मिलने का अभी इंतजार करना पड़ रहा है। गौरतलब है कि इस योजना को वर्ल्ड बैंक मंजूरी दे चुका है। इस पर पांच साल में 6000 करोड़ रु. खर्च होंगे, जिसमें से आधा पैसा वर्ल्ड बैंक द्वारा दिया जा रहा है। मप्र का चयन भू जल की कमी, प्रदूषण और अन्य मानकों को ध्यान में रखते हुए किया गया है।
कम पानी की फसल पर जोर
जरूरत के मुताबिक पानी इकट्ठा करने के अलावा योजना में यह भी शामिल रहेगा कि इन क्षेत्रों में किस तरह की फसलें बोना चाहिए यानी कम पानी वाली फसलों को बढ़ावा दिया जा सके। बताया गया है कि इस पंच वर्षीय कार्ययोजना के अंतर्गत सागर, पथरिया, छतरपुर, नौगांव, राजनगर, बल्देवगढ़, पलेरा, अजयगढ़ एवं निवाड़ी के विकासखंडों के लिए 11 करोड़ 25 लाख की राशि स्वीकृत की गई है। इस योजना का क्रियान्वयन भारत सरकार एवं राज्य सरकार की प्रचलित योजनाओं मनरेगा, पीएमकेएसवाय, बुंदेलखंड पैकेज एवं आईडब्ल्यूएमपी आदि के तहत किया जाना है।
फिर भी नहीं बदले हालात
बुंदेलखंड को जलसंकट से मुक्ति दिलाने और भू जल स्तर को बढ़ाने के लिए पहली दफा योजना नहीं बनी है, इससे पहले इस इलाके में हजारों करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। बुंदेलखंड पैकेज की राशि 32 सौ करोड़ में से ज्यादातर राशि पानी के लिए ही आई, इतना ही नहीं दीगर योजनाएं बनीं, सरकारी और गैर सरकारी लोगों ने पानी के संरक्षण की मुहिम चलाई। सरकार और अन्य माध्यमों से राशि आई, मगर हालात नहीं बदले। इस क्षेत्र का दुर्भाग्य है कि पानी का संकट हल नहीं हो पा रहा है, बल्कि यहां की जल संरचनाएं लगातार कम होती जा रही हैं। सवाल उठ रहा है कि आखिर जो धनराशि आती है वह जाती कहां है।
315 करोड़ रुपए से होना हैं काम
प्रदेश के छह जिलों के करीब 1,210 ग्रामों में 314.55 करोड़ रुपये की लागत से छोटे-छोटे स्टॉप डेम बनाकर भू-जल स्तर सुधारना है। वहीं पुराने जलस्रोतों को उपयोग लायक बनाकर गांवों को पानी उपलब्ध कराया जाएगा। इन गांवों की जल सुरक्षा योजना तैयार करने की जिम्मेदारी जन अभियान परिषद को सौंपी गई है। परिषद ने राज्य सरकार से अनुबंध कर काम शुरू कर दिया है। जल संसाधन विभाग के अधिकारियों का दावा है कि इससे बुंदेलखंड की तस्वीर बदलेगी। इस योजना के तहत प्रदेश के जिन छह जिलों का चयन किया गया था उनमें बुंदेलखंड अंचल के भू-जल संकट से प्रभावित सागर, दमोह, पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़ और निवाड़ी जिले हैं। इन जिलों के 9 विकासखंड सागर, पथरिया, छतरपुर, नौगांव, राजनगर, बल्देवगढ़, पलेरा, अजयगढ़ एवं निवाड़ी के 667 ग्राम पंचायतों में जल स्तर बढ़ाना है। इसके लिए उपलब्ध जल स्रोतों तथा उनसे लगे हुए क्षेत्रों में उपलब्ध जलीय संरचनाओं, चेक डेम, तालाब, बंधान, ट्यूबवेल, कुएं निर्माण एवं अन्य जल स्त्रोतों का जियो रेफरेसिंग, जियो- टैगिंग कार्य सामाजिक सहभागिता से किया जा रहा है। इन सभी ग्राम पंचायतों के लिए पिछले साल वॉटर सिक्युरिटी प्लान तैयार किया गया था। लेकिन अब प्लान को एक बार फिर तैयार करने की कवायद शुरू कर दी गई है।
सेमी क्रिटिकल श्रेणी में शामिल हैं विकासखंड
केन-बेतवा लिंक परियोजना को पूरा होने में एक दशक से ज्यादा समय लगेगा। ऐसे में मध्य प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के छह जिलों की प्यास बुझाने के लिए अलग से योजना लाई गई है। यह योजना जनसहयोग से पूरी की जाएगी। योजना में चिह्नित छह जिलों के नौ विकासखंड सेमी क्रिटिकल श्रेणी में हैं। इन जिलों में पानी का अतिदोहन हो चुका है। यानी क्षेत्रों के जल भंडार से 70 से 80 फीसद से ज्यादा पानी निकाला जा चुका है। इस वजह से गर्मियों में पानी का संकट खड़ा हो जाता है। इन जिलों में बारिश का पानी रोका नहीं जा रहा है। इसलिए योजना के तहत पुराने जलस्रोतों को चिह्नित कर दुरुस्त किया जाएगा और नए स्रोत बनाकर उन्हें रिचार्ज किया जाना हैं।
इस तरह का तैयार किया जा रहा ब्लूप्रिंट
जन अभियान परिषद को इन ग्रामों का ब्लूप्रिंट तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस काम में जिले के जल संसाधन, कृषि, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, लोक निर्माण विभाग आदि का तकनीकी अमला परिषद की मदद करेगा। परिषद हर गांव में पानी की उपलब्धता, जरूरत और उसके अंतर का आंकड़ा निकालेगी। इसमें पुराने जल स्रोतों की स्थिति और उनसे भविष्य में पानी मिलने की उम्मीद पर काम करेगी। इसके अलावा यह भी देखा जाएगा कि नए सोखता गड्ढे कहां खोदे जाएं और स्टाप डेम कहां बनाए जाएं, ताकि उनसे पुराने जलस्रोतों को भी फायदा पहुंचे।