
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। कोयला संकट के बीच बिजली उत्पादन प्रभावित होने के बीच एक नया संकट भी तेजी से बढ़ा है। प्रदेश के ताप बिजली घरों से बड़ी मात्रा में निकलने वाली फ्लाई ऐश (राख) के निपटान में गम्भीर कोताही बरती जा रही है। यहां से निकली खतरनाक राख हवा-पानी और मिट्टी को प्रदूषित करने के अलावा प्लांट के आसपास के क्षेत्र में तबाही का कारण भी बनती है।
सरकारी आंकड़ों पर गौर करें, तो फ्लाई ऐश के इस्तेमाल के मामले में प्रदेश औसत रूप से काफी पीछे है। प्रदेश के कोयला आधारित 50 प्रतिशत सरकारी पावर प्लांट फ्लाई ऐश का भंडार खत्म नहीं कर पा रहे हैं। यही फ्लाई ऐश बारिश के दिनों में बहकर नदी, नालों, तालाबों, खेतों तक पहुंच रही है, जो उन्हें उथला कर रही है। यह हाल तब है (पीसीची) के वैज्ञानिक और पर्यावरण मामलों के जानकार लगातार चिंता जता रहे हैं कि फ्लाई ऐश के स्टॉक को खत्म नहीं किया तो पर्यावरण पर खतरा और बढ़ेगा। बांधों, नदियों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा। उल्लेखनीय है कि वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पूर्व में गाइडलाइन जारी कर कह चुका है जितनी फ्लाई ऐश उत्पन्न हो रही है, उसका शत-प्रतिशत उपयोग करें। उसे पर्यावरण में बिल्कुल भी न मिलने दें।
प्लांटों में फ्लाई ऐश की स्थिति
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक कुछ सरकारी, निजी पावर प्लांट ने शत- प्रतिशत फ्लाई ऐश का उपयोग कर लिया है। इसका उपयोग ईंट, पेवर ब्लॉक, टाइल्स निर्माण समेत सीमेंट कारखानों में किया जाता है। एनटीपीसी सिंगरौली ताप विद्युत गृह की बिजली उत्पादन क्षमता 4760 मेगावाट है और यहां फ्लाई ऐश 7663620 मीट्रिक टन उत्पन्न होगी है, लेकिन उसका केवल 37 फीसदी ही उपयोग हो पा रहा है।
जानमाल का नुकसान
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में मिलने वाले कोयले में राख की मात्रा 30 से 40 प्रतिशत तक होती है। ताप बिजलीघरों में कोयले के जलने से निकलने वाली राख में ब्लैक कार्बन, आर्सेनिक, पीएम 2.5, बोरान, क्रोमियम और सीसा होता। इसके अलावा सिलिकॉन डाइऑक्साइड, एल्यूमीनियम ऑक्साइड, फेरिक ऑक्साइड और कैल्शियम ऑक्साइड की मात्रा भी होती है। यदि यह राख उड़ती है तो इसके कण पानी और दूसरी सतहों पर जम जाते हैं। इसी के जल, वायु और मृदा प्रदूषण बढ़ता है। सिंगरौली क्षेत्र फ्लाई ऐश का दुष्प्रभाव झेलता रहा है। यहां थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाली राख को डम्प करने के लिए बनाए बांधों के टूटने की घटनाओं से जानमाल सहित कई तरह के नुकसान हो चुके हैं। अप्रेल 2020 में निजी थर्मल पावर प्लांट का राखड़ डैम टूटने से पांच ग्रामीणों की मौत हो गई थी। कई मकान ढह गए थे। कई एकड़ में फसलों को नुकसान पहुंचा था। इसके बावजूद प्रशासन राख के सुरक्षित निपटान के लिए समुचित व्यवस्था करने में नाकाम है। इससे पहले सिंगरौली में ही एनटीपीसी और एस्सार पावर प्लांट के राख के डैम ढह चुके हैं। रिहंद नदी के बांध में राख की बड़ी मात्रा मिलने से संकट गहरा गया है। इसके बावजूद जिम्मेदार इस गम्भीर संकट से आंखें फेरे हुए हैं।