
भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में संचालित धान मिलों के मालिकों से सरकार के बाद अब किसान भी परेशान हैं। दरअसल इन मिलों के संचालकों की मोनोपॉली भारी पड़ रही है। इसकी वजह से ही किसानों व सरकार के सामने आर्थिक सकंट के हालात बन रहे हैं। हालात यह हैं कि प्रदेश में वैसे तो एक पखवाड़े से अधिक का समय हो गया है धान की खरीदी शुरू हुए , लेकिन इसके बाद भी किसानों को अपनी उच्च गुणवत्ता वाली धान कम कीमत पर बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है।
हालत यह है कि 29 नवंबर से शुरू हुई धान खरीदी में दाम गिराने के लिए मिलों द्वारा कम खरीदी की जा रही है। इसकी वजह से अभी किसानों को अच्छी ब्रांड के धान कीमत से 300 रुपए प्रति क्विंटल से भी कम दाम में बेचनी पड़ रही है। हालात यह हैं कि विदिशा में जो धान 3300 रुपए में बिक रही थी उसके दाम अब 3000 रुपए प्रति क्विंटल हो गए हैं। इसी तरह से रायसेन की मंडी में भी यह दाम 2500 रुपए पर आ चुके हैं। बात अगर जबलपुर और उसके आसपास के जिलों की करें तो वहां पर मोटे धान (समर्थन मूल्य पर बिकने वाला) की कीमत ही 300 से 400 रुपए कम हो गई है। समर्थन मूल्य 1940 रुपए प्रति क्विंटल है, जबकि व्यापारी मोटा धान 1400 से 1700 रुपए प्रति क्विंटल पर ही खरीद रहे हैं। इसके पीछे की वजह है पैदावार बढ़ना और राइस कंपनियों द्वारा कम खरीदी की जाना। हालात यह हैं कि इस बार रायसेन में ही अभी तक अनुमान के मुताबिक खरीदी शुरू नहीं हो पा रही है, जबकि यहां किसानों ने बीते साल की तुलना में दोगुना पंजीयन कराया है। यही स्थिति विदिशा जिले की है। विदिशा में तो इस बार धान का रकबा बढ़कर 9 लाख हेक्टेयर तक पहुंच चुका है जो बीते साल की तुलना में 3 लाख हेक्टेयर अधिक है। इसकी वजह से इस बार 45 लाख टन धान की खरीदी का अनुमान है। उधर राज्य सरकार भी इस मामले में लापरवाह बनी हुई है जिसकी वजह से उसके द्वारा अभी तक अपने खरीद केंद्रों की संख्या नहीं बढ़ाई गई है और कुल खरीद केंद्रों की तुलना में आधे खरीद केन्द्र अब तक शुरू किए गए हैं।
50 लाख टन धान अधिक होगी
मप्र में 50 लाख टन से अधिक धान भी सरप्लस होने वाली है। गेहूं तो पहले से ही एक करोड़ टन सरप्लस है। खाद्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि पिछले 4 साल का 27 लाख टन धान गोदामों में पड़ा है। इस बार 45 लाख टन की खरीदी होना है। साफ है कि 15 जनवरी तक मप्र में 40 लाख टन धान खरीदा जाता है तो आंकड़ा 67 लाख टन तक पहुंच जाएगा, जबकि पीडीएस में मप्र की जरूरत 14 से 15 लाख टन है। इसके बाद भी अब तक प्रदेश के 22 जिलों में खरीदी शुरू नहीं की गई है। इसमें इंदौर जिला भी शामिल है।