नगरीय निकायों में अधिकारियों की मनमानी

नगरीय निकायों
  • विकास योजनाओं की जानकारी नहीं मिल रही जनता को

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। राजधानी में चल रही विकास योजनाओं की जानकारी निगम प्रशासन जनता को देने को तैयार नहीं है। नगर निगम के अफसर-इंजीनियर्स की मनमानी से शहर में चल रहे करोड़ों रूपए के प्रोजेक्ट्स के बारे में जनता को जानकारी नहीं मिल पा रही है। दरअसल, शहर विकास के बड़े प्रोजेक्ट की जानकारियां अफसर-इंजीनियर छिपाते हैं। जिन आम लोगों को उसका उपयोग करना है, उन्हें उसकी डिटेल ही पता नहीं होती है। हालांकि आयुक्त, शहरी आवास एवं विकास निकुंज श्रीवास्तव ने बताया कि प्रोजेक्ट्स की जानकारी शहरवासियों को मिल सके, इसके लिए हम काम कर रहे हैं। लोगों की भागीदारी बढ़ाई जाएगी और लोगों से ही संवाद कर प्रोजेक्ट का काम किया जाएगा।
आलम यह है कि सूचना के अधिकार के तहत भी जानकारी देने में आनाकानी की जा रही है। बड़े तालाब पर बने आर्चब्रिज की डीपीआर देने के लिए नगर निगम के इंजीनियर्स की छह साल लंबी ना नुकुर इसका ताजा उदाहरण है। इस लंबे प्रकरण को खत्म करने सूचना आयोग को छह साल के दौरान पदस्थ इंजीनियर्स को पेशी के लिए बुलाना पड़ा। इसका असर यह हुआ कि अब डीपीआर देने की  प्रक्रिया शुरू की गई है। जब डीपीआर की मांग की गई थी, तब ब्रिज का निर्माण शुरू ही हुआ था, अब ब्रिज से आवाजाही शुरू हो गई है। यदि इस डीपीआर में अब कुछ गड़बड़ी पकड़ी भी जाती है तो इसमें सुधार संभव नहीं है।
अफसर-इंजीनियर्स बने अडंगा
आवेदक नितिन सक्सेना का कहना है कि लोगों को  जानकारियां प्राप्त करने का अधिकार है, लेकिन निगम के अफसर-इंजीनियर्स ही इसमें अडंगा डाल रहे हैं। बड़े  तालाब पर  आर्चब्रिज का निर्माण करीब 40 करोड़ रुपए की लागत से करवाया  गया है। यह कमला पार्क से गिन्नौरी के रास्ते लोगों को बुधवारा से जोड़ रहा है। ब्रिज शुरू होने के बावजूद यहां दिक्कतें खत्म नहीं हुई। इसकी आवाजाही के लिए अलग-अलग रास्ते तय हैं, लेकिन लोग गलत दिशा में तेजी से आना-जाना करते हैं। इससे दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। पेन सिटी प्रोजेक्ट के तहत इसे स्मार्ट सिटी के सुपुर्द किया गया और तब यह पूरा हो पाया। इससे लागत करीब 13 करोड़ रुपए बढ़ गई।
6 साल बाद दी जानकारी
आवेदक नितिन सक्सेना ने मई-2016 में डीपीआर के लिए आरटीई के तहत आवेदन किया था। 274 पृष्ठ की इस डीपीआर के आधार पर तत्कालीन सिटी इंजीनियर एके नंदा ने अप्रैल-2016 में निर्माण एजेंसी को कार्यादेश जारी किए। सूचना आयोग ने तत्कालीन इंजीनियर जीएस सलूजा, राजीव गोस्वामी, एके नंदा, पीके जैन को नोटिस जारी किए। उसके बाद जानकारी दी गई। कई अन्य प्रोजेक्ट की डीपीआर भी नहीं बताई गई। बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम विकसित करने के दौरान इसकी डीपीआर आमजन तो ठीक तत्कालीन पार्षदों तक को नहीं दी गई। करीब 450 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट में मुख्य के साथ दो सप्लीमेंट डीपीआर भी बनी थी। ये काम तत्कालीन महापौर सुनील सूद के कार्यकाल में शुरू किया गया था, लेकिन उनके पास भी ये उपलब्ध नहीं थी। पारदर्शिता की कमी से मनमर्जी से काम हुआ और अब ये शहरवासियों के लिए दिक्कत की तरह है और लोग  इसकी डेडिकेटेड लेन को खत्म करने की मांग कर रहे हैं। शहर के तालाबों के संरक्षण के लिए 216 करोड़ रुपए खर्च करने की डीपीआर बनवाई गई। कैसे संरक्षण का काम होगा, इसके लिए लगातार जानकारी मांगी गई, लेकिन ये उपलब्ध नहीं कराई गई। मल्टीलेवल पार्किंग के साथ ही स्मार्ट पार्किंग को लेकर तय डीपीआर और संबंधित दस्तावेज भी छिपाकर रखे गए। ये प्रोजेक्ट जनभागीदारी से नहीं होने से फेल हो गए।

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