- वीरेंद्र नानावटी

लोकतंत्र:सवाल-दर-सवाल/भाग 4
कोरोना की विपदा से लेकर तो कोलकाता (बंगाल) की ताजा आपदा ने हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के परखच्चे उड़ा दिये! पहली बार केन्द्र की सत्ता और सत्तारूढ़ पार्टी बंगाल की हिंसा और वीभत्स हत्याओं के विरुद्ध लाचार और बेबस नजर आ रहे हैं! लगता है कि ऐसी लोकतांत्रिक दुरावस्था के चलते सारा देश घुटनों पर है और सत्ता-सम्राट याचना की मुद्रा में! असहाय ! धरना और प्रदर्शन से… हाय ये क्या हो रहा है? दरअसल ये सारी लड़ाई सत्ता हथियाने की हवस और बढ़ती भूख के घिनौने पाप से पैदा हुई है! सियासी अवतारों के इस भीषण संग्राम में कहीं भी, लोक हितों का पुण्य नहीं है! देश के सुलगते-खौलते सवालों का जवाब नहीं है! जिस लोकतंत्र में लोक हथियार बन जाएं, तंत्र पर कब्जा करने का /संवाद की जगह संहार हो देश की धड़कनों और सुरों के आलाप के बजाय लम्पट प्रलाप हो /मुद्दों के बनिस्बत मारकाट हो, उस लोकतंत्र को सौ प्रणाम! दरअसल हम कभी लोकतंत्र के लायक थे ही नहीं! भला हो (??) गोरी चमड़ी वालों का, ब्रितानी हुक्मरानों का जिन्होंने हम पर राज किया और लोकतंत्र का लॉलीपाप दिया! इसे चूसते रहिये और तालियां बजाते रहिए कि आप दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नमूने हैं?
लेकिन बावजूद इसके बंगाल की हिंसा को जायज नहीं ठहराया जा सकता! ये वो मवाद है जो नासूर बनकर लोकतंत्र के जिस्म से बह रहा है! पुनश्च:!… फिर कभी!! (सवाल -दर-सवाल लोकतंत्र भाग 1,2 और 3 पुन: आपके अवलोकनार्थ पहले से ही मौजूद है ! कोशिश होगी आपके सम्मुख प्रस्तुत करने की ) इस पर विचार जरूर कीजिएगा! क्योंकि बगैर उसके बहस अधूरी है!