सात माह बाद भी घोषणा पर अमल नहीं

यूसीसी

– यूसीसी पर समिति गठन का मामला

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। बीते कुछ समय से देश के साथ ही प्रदेश में भी यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) का मामला बेहद चर्चा में बना हुआ है। भाजपा के लिए बीते कई दशकों से यह मामला चुनावी घोषणा पत्र का बेहद अहम हिस्सा बना हुआ है। अब देश के पांच राज्यों में इसी साल और अगले साल लोकसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में एक बार फिर से यह मामला जोर पकड़ने लगा है।
बीते कुछ दिनों से भाजपा के नेता से लेकर केन्द्र के मंत्री तक इस मामले को सार्वजनिक रूप से उठा रहे हैं।  इस मामले को लेकर कमेटी के गठन की घोषणा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा बीते साल दिसंबर में की गई थी, लेकिन उस पर अब तक अमल ही नहीं सका है। इसके इतर उत्तराखंड, गोवा व महाराष्ट्र जैसे राज्यों की सरकारों द्वारा इस मामले को लेकर कमेटी का गठन किया जा चुका है। बताया जा रहा है कि मप्र सरकार इस मामले में अब पूरी तरह से असमंजस में दिख रही है। अब बीते हफ्ते जब केंद्र सरकार के अलावा पार्टी के कई केन्द्रीय नेताओं ने यूनिफॉर्म सिविल कोड के मामले को उठाना शुरू किया तो , प्रदेश सरकार में भी इस मामले में हलचल होना शुरु हुई। इस मामले में प्रदेश सरकार के एक मंत्री का कहना है कि राज्य सरकार समान नागरिक कानून के लिए संकल्पित है। मप्र में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किया जाएगा। इसके कानून के ड्राफ्ट के लिए जल्द ही विशेषज्ञों की कमेटी बनेगी। इसके बाद गत 27 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा उठाया, तो फिर ऐसी खबरें सामने आई कि प्रदेश सरकार जल्द एक्सपर्ट कमेटी बना सकती है। इसके बाद भी अब तक समिति नहीं बन सकी है। सूत्रों का कहना है कि गठित की जाने वाली समिति में रिटायर्ड न्यायाधीश, कानूनविद, रिटायर्ड प्रशासनिक अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता आदि को शामिल किया जाएगा। यह बात अलग है कि अब तक प्रदेश में कमेटी गठन की प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है।
समान नागरिक संहिता ?: समान नागरिक संहिता एक सामाजिक मामलों से संबंधित कानून होता है, जो सभी पंथ के लोगों के लिये विवाह, तलाक, भरण-पोषण, विरासत व बच्चा गोद लेने आदि में समान रूप से लागू होता है। यानी की समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिए एक कानून सुनिश्चित करेगी, जो सभी धार्मिक और आदिवासी समुदायों पर उनके व्यक्तिगत मामलों से ऊपर होगा। इसके लागू होने से हिंदू विवाह अधिनियम (1955), हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) और मुस्लिम व्यक्तिगत कानून आवेदन अधिनियम (1937) जैसे धर्म पर आधारित मौजूदा व्यक्तिगत कानून तकनीकी रूप से भंग हो जाएंगे।

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