
इंदौर-उज्जैन-देवास-धार को मिला कर बनेगा मालवा विकास प्राधिकरण…
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। सूबे में करीब एक दशक पहले गठित किए तीन अंचलों के विकास प्राधिकरण बदहाली का शिकार बने हुए हैं, इस बीच सरकार द्वारा चौथे प्राधिकरण के गठन की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। यह चौथा विकास प्राधिकरण मालवा के विकास के नाम पर गठित किया जा रहा है। इस प्राधिकरण के गठन के लिए अंचल के भाजपा नेताओं द्वारा लगातार सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है। उनका तर्क है कि इस प्राधिकरण के गठन से इंदौर के आसपास विकसित हो रहे उज्जैन, देवास और धार का भी समग्र विकास हो सकेगा। इसके गठन को लेकर हाल ही में नगरीय विकास मंत्री भूपेन्द्र सिंह के समक्ष इंदौर के जनप्रतिनिधियों ने मांग की है। उनका कहना था कि विशेष प्राधिकरण बनाने से इन सभी जिलों का एकरूपता के साथ विकास हो सकेगा और यहां महानगरीय कल्चर विकसित होगा। मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने भी इसका समर्थन करते हुए इस पर विस्तार से चर्चा करने की बात कही।
उन्होंने कहा, इंदौर के मास्टर प्लान एरिया के निवेश क्षेत्रों को आसपास के तीनों जिलों देवास, उज्जैन व धार के निवेश क्षेत्रों की सीमाओं से जोड़ा जा रहा है। इससे इनके बीच होने वाला बेतरतीब विकास रुकेगा। इन क्षेत्रों का विकास भी मास्टर प्लान के नियमों के आधार पर ही होगा। क्योंकि भविष्य में ये तीनों जिले भी विकास के केंद्र में रहेंगे। इन्हें इंदौर के साथ जोड़ने से ही फायदा होगा। देवास के चापड़ा में अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बन रहा है। वहीं उज्जैन और देवास के बीच निवेश क्षेत्र विकसित हो रहे हैं। वहां मौजूद जनप्रतिनिधियों ने मंत्री की बात का समर्थन करते हुए उन्हें महानगरीय विकास के लिए प्राधिकरण बनाने का सुझाव दिया। इस दौरान मंत्री को बताया गया कि नगरीय विकास मंत्रालय ने देश के विभिन्न महानगरों के विकास मॉडल का अध्ययन कर प्रारूप तैयार किया है। इंदौर महानगर के विकास के लिए इस पर अमल किया जाना चाहिए। एक विकास जोन बनने के कई फायदे होंगे। वर्तमान में जिस तरह के विकास की रूपरेखा बन रही है, उसे लागू करने में भी मुश्किल नहीं आएगी।
गुमनामी का शिकार हो गए है पूर्व में गठित प्राधिकरण
प्रदेश की शिव सरकार द्वारा वर्ष 2008 में प्रदेश के तीन अंचलों के समग्र विकास के लिए तीन प्राधिकरणों का गठन किया गया था, जिसमें विंध्य , महाकौशल एवं बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण शामिल थे। जिन्हें कमलनाथ सरकार में बंद करने की तैयारी कर ली गई थी। उस समय कहा गया था कि जिन उद्देश्यों को लेकर इन प्राधिकरणों का गठन हुआ था, उसके अनुसार मैदानी स्तर पर कार्य नहीं हुआ। अन्य प्राधिकरणों की तुलना में इन्हें बजट भी कम आवंटित हो रहा था और जो राशि मिली भी, उससे कराए गए कार्यों का बेहतर फीडबैक नहीं रहा है। इसलिए इसे फिजूलखर्ची बताते हुए विभाग ने प्रस्ताव तैयार किया था। दरअसल पूर्व की सरकार ने तीनों प्राधिकरणों का गठन कर नेताओं को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देते हुए अध्यक्ष बनाया था। साथ ही उपाध्यक्षों को राज्यमंत्री का दर्जा दिया था।
गठन के पीछे यह था उद्देश्य
इनके गठन के पीछे सरकार का उद्देश्य क्षेत्र के संबंधित जिलों से आर्थिक एवं सामाजिक पिछड़ापन दूर करने एवं विकास की गति को बढ़ाना था। जिन उद्देश्यों को लेकर इसका गठन हुआ, उसके अनुसार प्राधिकरण कार्य नहीं कर पाया। पहले कार्यकाल में कुछ प्रयास भी हुए लेकिन दूसरे में यह उद्देश्य से भटक गया। जो राशि शासन से मिली, उसमें मनमानी रूप से खर्च किया गया। लोगों के बीच जाकर संवाद करना था, उनसे जरूरतें पूछकर शासन तक पहुंचानी थी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं किया गया। इन तीनों में शामिल विंध्य और महाकौशल में आठ -आठ तो बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण में नव गठित निवाड़ी शामिल होने के बाद अब सात जिले आते हैं। यही नहीं महाकौशल और विंध्य के तहत आने वाले कई जिले आदिवासी बाहुल्य भी हैं। बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के तहत सागर, दमोह, टीकमगढ़, निवाड़ी छतरपुर, पन्ना, दतिया, विंध्य विकास प्राधिकरण के तहत रीवा, शहडोल , सतना, सीधी, सिंगरौली, अनूपपुर और उमरिया आदि जिले जबकि महाकौशल विकास प्राधिकरण के तहत जबलपुर, मंडला, डिंडौरी , बालाघाट, सिवनी, कटनी और छिंदवाड़ा जैसे जिले आते हैं।