
- सवा लाख अधिकारियों-कर्मचारियों के प्रतिनिधित्व का संगठन दो फाड़
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। अनुसूचित जाति-जनजाति के अधिकारियों-कर्मचारियों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाला अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ (अजाक्स) जो कि प्रदेश में शासकीय कर्मचारियों का सबसे बड़ा संगठन है, संगठन का राजनैतिक हल्कों में भी काफी दबदबा था, किसी भी पार्टी की सरकार हो वह संगठन की बात को गंभीरता से लेती थी। वहीं अजाक्स अब दो फांड हो चुका है। एक गुट के अध्यक्ष चौधरी मुकेश आर्य हैं तो दूसरे गुट के आइएएस अधिकारी संतोष वर्मा। आर्य ने रजिस्ट्रार फम्र्स एंड सोसायटी में पदाधिकारियों की बकायदा सूची भी दी है।
गौरतलब है कि प्रदेश के सवा लाख अनुसूचित जाति-जनजाति के अधिकारियों-कर्मचारियों के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाला अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ सरकारों का लाड़ला संगठन रहा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों सरकारों में इस संघ की हर मांग सरकार गंभीरता से लेती रही है। अजाक्स का जब गठन हुआ था तब आईएएस अध्यक्ष नहीं होते थे। बाद में आईएएस अध्यक्ष बनने लगे, लेकिन शासन स्तर से कोई रोक नहीं लगाई गई। अन्य संगठनों में छोटे कर्मचारी अध्यक्ष होते हैं और अजाक्स में आईएएस अधिकारी, जो अपने पद का उपयोग संगठन के एजेंडे के लिए करते हैं, जबकि अन्य कर्मचारी संगठन पीछे रह जाते है। इसकी शिकायत भी की गई पर कार्रवाई नहीं हुई। अजाक्स को मंत्रालय में कक्ष भी आवंटित है। सुधीर नायक ने बताया कि संगठन को कार्यालय के लिए भोपाल में तीन-तीन स्थान आवंटित हैं। टीटी नगर क्षेत्र में तीन मंजिला भवन बना है। इसके बावजूद कार्यालंय के लिए शासकीय आवास दिया गया है। अजाक्स की मंत्रालय शाखा को भी अलग से कार्यालय दे दिया। दूसरी ओर मंत्रालय कर्मचारी संघ को 1989 से कार्यालय मिला हुआ था। एनेक्सी निर्माण के दौरान वह कार्यालय बंद हो गया।
सरकार का लाड़ला संगठन
अजाक्स अब दो फाड़ की स्थिति में है। एक गुट के अध्यक्ष चौधरी मुकेश आर्य हैं तो दूसरे गुट के आईएएस अधिकारी संतोष वर्मा। आर्य ने रजिस्ट्रार फम्र्स एंड सोसायटी में पदाधिकारियों की बकायदा सूची भी दी है। उधर, सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक अधिकारी-कर्मचारी संस्था (सपाक्स) को अभी तक शासन ने मान्यता नहीं दी। मंत्रालय सेवा अधिकारी-कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सुधीर नायक का कहना है कि अजाक्स अन्य कर्मचारी संगठनों की तरह ही एक कर्मचारी संगठन है लेकिन सरकारों ने उसे हमेशा ज्यादा महत्व दिया है। इसका ही परिणाम है कि अजाक्स के प्रांताध्यक्ष निर्वाचित होने के चंद मिनट बाद ही बेटियों को लेकर बयानबाजी करने का दुस्साहस कर सके। सरकार के इस चहेते संगठन के कई उदाहरण हैं। मंत्रालय में आरक्षित वर्ग के रिक्त पदों की पूर्ति के लिए व्यावसायिक परीक्षा मंडल (अब कर्मचारी चयन मंडल) ने 2008-09 में प्रतियोगिता परीक्षा ली थी। 25 प्रतिभागियों को तीनों पेपर में शून्य अंक प्राप्त हुए। भर्ती नियम के अनुसार ये नियुक्ति के पात्र नहीं थे परंतु संगठन से जुड़े होने के कारण सामान्य प्रशासन विभाग ने न सिर्फ उन्हें ज्वाइन कराया, बल्कि पांच साल बाद पदोन्नति भी दी। खूब शिकायतें हुईं, लेकिन उनका कुछ नहीं बिगड़ा। इसी तरह मुख्य सचिव अनुराग जैन की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय बैठक हुई, जिसमें अजाक्स के तत्कालीने अध्यक्ष अपने शासकीय पदीय दायित्व से इतर अजाक्स के नेता के रूप में बोलने लगे। उन्होंने आरक्षण बढ़ाने की मांग की। बैठक के एजेंडे से हटकर वर्ग विशेष की बात करने और सरकारी प्रोटोकाल तोडऩे के बाद भी कोई एक्शन नहीं लिया गया। यदि उस समय एक्शन लिया गया होता तो शायद आज यह स्थिति निर्मित नहीं होती। शासन ने अभी जो पदोन्नति नियम बनाए हैं, उसमें यह प्रविधान रखा कि प्रत्येक पदोन्नति समिति में आरक्षित वर्ग का अधिकारी रखना अनिवार्य है। जब सब अधिकारी समान हैं और सभी को नियमानुसार कार्रवाई करनी है तो फिर सरकार ने अपने ही अधिकारियों क बीच विभेद क्यों पैदा किया। पदोन्नति समिति की बैठकों में जो अधिकारी नामांकित होते हैं वे अजाक्स के सदस्य होते हैं।
