गेंहू उत्पादन के बाद अब निर्यात में भी बाजी मारने को तैयार मप्र

गेंहू उत्पादन
  • प्रदेश के गोदामों में है दो साल से एक करोड़ टन गेहूं का भंडारण

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। देश में सर्वाधिक गेहूं के उत्पादन का रिकार्ड बनाने के बाद मप्र सर्वाधिक निर्यात करने के मामले में भी बाजी मारने को तैयार है। यह मौका मप्र के हाथ आया है रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से। प्रदेश में अभी इस साल फसल आने के पहले ही गोदामों में दो साल से एक करोड़ टन गेहूं रखा हुआ है , जिसमें से 40 से 45 लाख टन गेहूं तुरंत निर्यात किए जाने की स्थिति में है। यही वजह है कि इसके लिए प्रदेश की शिव सरकार पूरे प्रयासों में जुट गई है।
इन प्रयासों की वजह से प्रदेश से निर्यात होने वाले गेहूं का आंकड़ा 70 लाख टन तक पहुंचने की उम्मीद है। इसकी दूसरी वजह है गेंहू व धान की अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर गुणवत्ता का होना।  इसकी वजह से ही यह पहला मौका है जब राज्य सरकार के गोदामों में भरे गेहूं की एक साथ इतनी बड़ी मात्रा में उठाव की स्थिति बनी है। दरअसल, युद्ध की वजह से यूरोपीय देशों में गेहूं की कमी की समस्या खड़ी हो गई है। इन देशों में रुस और सूक्रेन से ही बड़ी मात्रा में गेंहू का निर्यात किया जाता था। इसकी वजह से अब भारतीय गेहूं की डिमांड बढ़ गई है।
इस स्थिति की वजह से प्रदेश सरकार के साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद सक्रिय हो गए हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इसके लिए स्वंय बीते रोज दिल्ली गए और वहां गेहूं निर्यातकों के साथ बैठक कर मध्यप्रदेश के गेहूं के साथ ही धान को विदेशों में भेजने को लेकर मंथन किया। मुख्यमंत्री चौहान ने इस दौरान निर्यातकों को मध्यप्रदेश में गेहूं व धान के उत्पादन और सरकार द्वारा किए जाने वाले उपार्जन के साथ यहां उत्पादित होने वाली आधुनिक किस्मों के बारे में भी जानकारी दी। केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल की मौजूदगी में हुई बैठक में सीएम चौहान ने निर्यातकों को जीआई टैग वाले चावल की किस्म के बारे में भी जानकारी दी।
यह दी जाएंगी सुविधाएं
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गेहूं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए आज कई घोषणाएं की हैं। उन्होंने कहा, गेहूं का भंडार मध्यप्रदेश की ताकत है। इसे दुनियाभर में निर्यात करेंगे। उन्होंने कहा, प्रदेश का जो गेहूं निर्यात किया जाएगा, उस पर मंडी टैक्स अब नहीं लगाया जाएगा। भोपाल में एक्सपोर्ट सेल के जरिए निर्यातकों को हर सुविधा उपलब्ध कराएंगे। निर्यातकों को गेहूं की ग्रेडिंग करना पड़ी, तो उस पर होने वाले खर्च की प्रतिपूर्ति की जाएगी। सीएम ने कहा, निर्यातकों के सामने लिए गए फैसलों से मध्यप्रदेश के कनक  गेहूं का निर्यात बढ़ेगा और इसका सीधा फायदा मध्यप्रदेश के किसानों को मिलेगा। सीएम ने कहा, प्रदेश में एक लाइसेंस पर कोई भी कंपनी अथवा व्यापारी कहीं से गेहूं खरीद सकता है। मंडी में आॅनलाइन नीलामी की प्रक्रिया उपलब्ध है। निर्यातक किसी स्थानीय व्यक्ति से पंजीयन कराकर गेहूं खरीद सकते हैं। गेहूं की  वैल्यू एडिशन और गुणवत्ता प्रमाणीकरण के लिए प्रदेश की प्रमुख मंडियों में अधोसंरचना और लैब की सुविधाएं निर्यातकों को उपलब्ध कराई जाएगी। प्रमुख मंडियों में एक्सपोर्ट हाउस के लिए यदि निर्यातकों को जगह की जरूरत होगी, तो अस्थाई तौर पर रियायती दरों पर मुहैया कराएंगे। निर्यातकों को अस्थाई तौर पर रियायती दरों पर भी पर्याप्त जगह मुहैया कराई जाएगी।
प्रदेश को यह होगा फायदा
गेहूं के निर्यात से मप्र को कई तरह का फायदा होना तय है। इसमें सबसे पहले तो गोदामों में दो साल से भरे हुए गेहूं से सरकार को मुक्ति मिल जाएगी। इस गेहूं की खरीद का सरकार पर 31 मार्च 2022 की स्थिति में 50 हजार करोड़ रुपए का कर्जा हो गया है। जिसका हर रोज का 13 से 14 करोड़ रु. ब्याज बैंकों में भरना पड़ रहा है। गेहूं निर्यात से  सरकार का कर्ज 50 हजार करोड़ से घटकर 35 हजार करोड़ रु. तक आ सकता है और ब्याज भी रोजाना 7 करोड़ रु. तक कम हो जाएगा।
मांग बढ़ने की वजह
रूस इस साल दुनिया में 3.5 करोड़ टन गेहूं का निर्यात करने वाला था, लेकिन प्रतिबंधों के कारण अब कोई भी देश रूस से गेहूं नहीं खरीद रहा है। इसकी वजह से अफ्रीका से लेकर यूरोप तक सभी देश भारत से गेहूं मंगवा रहे हैं।
सरकार के साथ  किसानों को भी फायदा
गेंहू की मांग बढ़ने की वजह से प्रदेश के किसानों को भी फायदा होना शुरू हो गया है। अभी सरकार ने गेंहू की सरकारी खरीदी के लिए एमएसपी 2015 रु. प्रति क्विंटल तय किया गया है, जबकि खुले बाजार में किसानों को एक क्विंटल गेंहू के दमा 2500 रुपए तक मिल रहे हैं। इसकी वजह से किसानों को भी फसल की कीमत अधिक मिल रही है। समर्थन मूल्य से अधिक कीमत पर हो रही गेंहू की खरीदी से सरकार व किसान दोनों ही खुश हैं। इसकी वजह से जहां सरकार को तय लक्ष्य से आधे ही गेंहू की खरीद करनी पड़ेगी , तो किसानों को हर क्विटंल पर दो सौ से लेकर पांच सौ रुपए तक का फाायदा हो रहा है। यदि युद्ध एक महीने और चला तो किसानों को बंपर फायदा होना तय माना जा रहा है। जानकारों की माने तो इस बार एमएसपी पर 65 से 70 लाख मीट्रिक टन गेहूं ही सरकार को खरीदना पड़ेगा, जबकि उसने 130 लाख मीट्रिक टन गेहूं उपार्जन का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए सरकार को करीब 27,000 करोड़ रुपए की जरूरत होगी । इस राशि की व्यवस्था सरकार द्वारा बाजार से 7 फीसदी ब्याज तक पर कर्ज लेना पड़ता है, लेकिन अब उसका करीब 12000 करोड़  रु. बच जाएगा। मप्र सरकार के वेयरहाउस में अभी करीब 1 करोड़ टन गेहूं और 44 लाख टन धान का भंडार है।

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