
- फरर का साढ़े तीन करोड़ वोटों के लिए दलित मंत्र
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। अगले आम विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए जीत की राह आसान करने के लिए अब प्रदेश में पूरी तरह से संघ सक्रिय हो चुका है। यही वजह है कि उसने भाजपा को प्रदेश में साढ़े तीन करोड़ मतों को साधने का मंत्र दिया है। यह मंत्र ऐसे समय दिया गया है जब भाजपा व उसकी सरकार पिछड़े वर्ग के बाद आदिवासियों को साधने के प्रयासों में पूरी ताकत के साथ लगी हुई है। भाजपा की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भाजपा व उसकी सरकार को अगले दो साल तक दलित मंत्र पर काम करने को कहा है। दरअसल संघ ने ही आदिवासियों के साथ दलितों पर फोकस करने की सलाह प्रदेश भाजपा के साथ ही सरकार को दिया था। इसके बाद ही प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा द्वारा आदिवासी गौरव सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन की सफलता से पार्टी भी बेहद उत्साहित है। इसके बाद अब भाजपा इस तरह के आयोजन सभी प्रांतों में करने की योजना पर काम कर रही है। अगर मध्य प्रदेश की दृष्टि से देखें तो यह दोनों ही वर्ग जातीय समीकरण के हिसाब से बेहद अहम हैं। इसकी वजह है इनके मतों की संख्या। इन दोनों ही वर्गों की प्रदेश के मतों में करीब 36 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। इनमें आदिवासी समुदाय की भागीदारी 21 प्रतिशत तो दलितों की भागीदारी 15 प्रतिशत से अधिक हैं। जनगणना के एक दशक पुराने आंकड़ों के हिसाब से मप्र में आदिवासी सुमदाय की संख्या करीब दो करोड़ से अधिक है जबकि दलितों की संख्या डेढ़ करोड़ से अधिक है। यही नहीं इन दोनों वर्गों की आबादी की वजह से प्रदेश में 230 सदस्यीय विधानसभा में 77 सीटें आरक्षित हैं। इसके अलावा यह दोनों वर्ग करीब सवा सौ सीटों पर हार जीत के लिए प्रभावी माने जाते हैं। मप्र में बीते आम चुनाव में भाजपा को सर्वाधिक नुकसान इन दोनों ही वर्ग के प्रभाव वाली सीटों पर हुआ था, जिसकी वजह से उसे लगातार चौथी बार सरकार बनाने से भी वंचित होना पड़ा था। यही वजह है किसंघ ने मंथन करने के बाद भाजपा को इन दोनों ही वर्गों पर विशेष फोकस करने को कहा है। मप्र में भाजपा द्वारा आदिवासी समुदाय के साथ ही अनुसूचित जाति वर्ग को साधने के लिए अभियान चलाने की भी तैयारी की जा रही है। इसकी वजह से ही प्रदेश में भाजपा द्वारा करीब दो करोड़ आदिवासी वोटों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए बीते छह माह से कवायद की जा रही है। इसके तहत ही बिरसा मुंडा की जयंती पर हुए जनजातीय गौरव सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस आयोजन में मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक शामिल हुए और लाखों की संख्या में आए आदिवासी लोगों को दोनों ही सरकारों द्वारा शुरू की गई योजनाओं की जानकारी देने के साथ ही उनके लिए कई नई योजनाओं की घोषणा कर उन्हें जोड़ने का प्रयास किया गया है। दरअसल इससे न केवल विधानसभा बल्कि उसके बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में भी पार्टी के लिए यह वोट बैंक निर्णायक साबित रहने वाला है। माना जा रहा है कि इस सम्मेलन के बहाने भाजपा ने अभी से अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस सम्मेलन की खास बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा जिस तरह से इस वर्ग की उपेक्षा को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधा, वह यह बताने के लिए पर्याप्त है कि भाजपा इस वर्ग को पूरी तरह अपने साथ जोड़ना चाहती है।
यह है राज्यों में दलितों की भागीदारी
मध्य प्रदेश में दलितों से ज्यादा आदिवासियों की आबादी है। दलित समुदाय की आबादी करीब 15 फीसदी है जबकि यहां आदिवासियों की आबादी करीब 21 फीसदी है उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के चुनाव में दलित मतदाताओं की काफी अहम भूमिका रहती है। दलितों की सियासी ताकत देखते हुए देश की सियासी पार्टियां उन्हें अपने पाले में लाने की कवायद में लगी रहती हैं। दलित आबादी वाला सबसे बड़ा राज्य पंजाब है। यहां की 31.9 फीसदी आबादी दालित है और 34 सीटें आरक्षित हैं। उत्तर प्रदेश में करीब 20.7 फीसदी दलित आबादी है और 14 लोकसभा 86 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। हिमाचल में 25.2 फीसदी, हरियाणा में 20.2 दलित आबादी है। पश्चिम बंगाल में 10.7, बिहार में 8.2, तमिलनाडु में 7.2, आंध्र प्रदेश में 6.7, महाराष्ट्र में 6.6, कर्नाटक में 5.6, राजस्थान में 6.1 आबादी दलित समुदाय की है।
एससी वर्ग के लिए लगातार किए जाएंगे कार्यक्रम
सूत्रों की मानें तो भाजपा के लिए समर्थन जुटाने के लिए आरएसएस लगातार मंथन कर रहा है। इसके तहत ही यह कार्ययोजना तैयार की गई है। संघ के केंद्रीय कार्यकारिणी में हुए मंथन में माना गया था कि देश में फिर से भाजपा की सत्ता के लिए इन दोनों ही वर्गों का साथ जरूरी है। यही वजह है कि इसके लिए न केवल कार्ययोजना बनाई गई, बल्कि उसे अभियान के रुप में चलाने का भी तय किया गया था। उल्लेखनीय है कि भाजपा की अल्पसंख्यक वर्ग में भी पैठ बढ़ाने के लिए रणनीति बनाकर काम किया था। यही वजह है कि केन्द्र सरकार ने ट्रिपल तलाक जैसे मामले में कदम बढ़ाया था।