महापौर के बाद पार्षद के टिकटों पर भी भारी पड़े राजधानी में माननीय

महापौर
  • इंदौर में विजवर्गीय तो…ग्वालियर में नरेंद्र सिंह को मिली तवज्जो

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। राजधानी में एक बार फिर से भाजपा विधायक संगठन पर भारी पड़े हैं। महापौर के बाद पार्षद पद के प्रत्याशियों के चयन में भाजपा विधायकों ने ऐसा दबाब बनाया कि संगठन उनके समाने पूरी तरह से असहाय नजर आ रहा है। हालात यह है कि इसमें पार्टी की गाइड लाइन को भी दरकिनार कर मनमाने  तरीके से प्रत्याशी घोषित कर दिए गए। उधर इंदौर में जरुर संगठन व कैलाश विजयर्गीय ने मिलकर पार्टी कार्यकर्ताओं का ध्यान रखा है , लेकिन वहां पर भी एक दो नाम ऐसे हैं जिनके मामलों में भाजपा की रीति प नीति पर गंभीर सवाल खड़े होने लगे हैं। इधर, महापौर के बाद एक बार फिर से श्रीमंत को पार्षद उम्मीदवारों के चयन में लगभग खाली हाथ रहना पड़ा है।
श्रीमंत अपने ही गढ़ के अलावा प्रभाव वाले इलाकों में भी अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में अप्रभावी साबित हुए हैं। हद तो यह हो गई की मजबूत संगठन व कैडरबेस पार्टी का दम भरने वाली भाजपा में ऐसी रस्साकसी चली की बीती देर रात बामुश्किल से भोपाल शहर की आधी अधूरी सूची जारी हो सकी, जबकि अब नामाकंन पत्र जमा करने में महज चंद घंटे ही शेष रह गए हैं। इस सूची में कई वार्डों से ऐसे प्रत्याशी उतार दिए गए हैं जो कहीं और के रहने वाले हैं, जिसकी वजह से उनका मतदाताओं तक में पहचान का संकट खड़ा हो गया है।  इसकी वजह से कई वार्डों के दावेदारों के साथ ही कार्यकर्ताओं में भी अंसतोष की स्थिति बन गई है। इस तरह की सबसे खराब स्थित हुजूर विधानसभा क्षेत्र के कोलार के वार्डों में बनी है। यहां पर पार्टी कई वरिष्ठ कार्यकर्ता आज बगाबत कर सकते हैं। इसकी वजह से भाजपा के इस गढ़ को  इस बार निकाय चुनाव में ढहने की संभावना अभी से बनने लगी है। राजधानी  में भाजपा के हाल इससे ही समझे जा सकते हैं कि वह बीती देर रात तक  85 में से सिर्फ 56 वार्डों के प्रत्याशी ही घोषित कर पाई है। इस सूची में विवादित 29 वार्ड होल्ड करना बताया गया है। कोलार में एक पूर्व पार्षद को छोड़कर अन्य किसी पूर्व पार्षद को टिकट नहीं दिया गया है। रविंद्र यती को वार्ड-83 से मैदान में उतारा गया है। वहीं पूर्व पार्षद मनफूल मीना, भूपेंद्र माली, पवन बोरोना, कामता पाटीदार का टिकट काट दिया गया है। इनमें भी यति पहले वार्ड 80 से पार्षद रहे हैं। सबसे चौकाने वाला मामला वार्ड 84 का है। यहां नीलबड़ में रहने वाले वीरेंद्र मारण की पत्नी को शोभना को प्रत्याशी बनाया गया है। इसी तरह से नरेला विस क्षेत्र में अधिकतर पूर्व पार्षदों के टिकट काट दिए गए। पूर्व पार्षद प्रक्रांत तिवारी, मनोज चौबे, सुषमा चौहान और कल्पना राय को टिकट से वंचित किया गया है। यहां पर अशोक वाणी, सूर्यकांत गुप्ता को मौका दिया गया है । उधर, सबसे ज्यादा घमासान उत्तर विधानसभा में दिखाई दिया। यहां से पूर्व पार्षद पंकज चौकसे को फिर से टिकट दिया गया है। लेकिन पूरन चौरसिया, विनोद चौरसिया समेत अन्य लोग टिकट से वंचित रह गए। इसी तरह से गोविंदपुरा विस क्षेत्र से पूर्व पार्षद केवल मिश्रा, बारेलाल अहिरवार, रश्मि द्विवेदी समेत अन्य नेताओं को टिकट नहीं दिया गया। पूर्व पार्षद गिरीश शर्मा का वार्ड होल्ड कर दिया गया है। खास बात यह है कि इस बार पूर्व में महापौर परिषद के सदस्य रहे एक भी पार्षद को टिकट नहीं दिया गया है। इनमें इनमें भूपेंद्र माली, दिनेश यादव, केवल मिश्रा, मंजूश्री बारकिया, कृष्ण मोहन सोनी और  मनोज चौबे के नाम शामिल हैं। खास बात यह है कि पार्षदों के टिकट में सांसद की भी पूरी तरह से अनदेखी की गई है। सांसद प्रज्ञा ठाकुर अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए देर रात तक भाजपा कार्यालय में डटी रहीं , लेकिन फिर भी वे सफल नहीं हो सकीं।
 अनुशासन की उड़ी धज्जियां
निकाय चुनाव के टिकट वितरण में इस बार प्रदेश के कई जिलों में भाजपा संगठन के अनुशासन की धज्जियां उड़ गईं। इनमें इंदौर, भोपाल, ग्वालियर सहित छतरपुर, खंडवा, देवास और विदिशा जैसे तुलनात्मक रूप से छोटे शहर भी शामिल हैं। छतरपुर में तो हालात यह बने की उम्मीदवारों की जारी की गई सूची को ही निरस्त करना पड़ गया। समय से प्रत्याशी तय नही हो पाने की वजह से कई जिलों में एक से अधिक दावेदारों ने इस उम्मीद में नामांकन पत्र जमा कर दिए कि उन्हें अधिकृत प्रत्याशी घोषित कर दिया जाएगा। अब जिनको टिकट नहीं मिलेगा वे सभी असंतुष्टों की कतार में रहेंगे। इंदौर में सांसद के खिलाफ नारेबाजी हो गई और देवास में तो असंतुष्टों ने जिलाध्यक्ष का पुतला ही फूंक दिया। इंदौर में भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय को भी कई घंटे तक कार्यालय में बैठना पड़ा। इंदौर में भी बीती देर रात तक 65 वार्डों की सूची बन सकी। लगभग यही स्थिति जबलपुर और कमोबेश ग्वालियर नगर निगम के भी कई वार्डों में बनी हुई है।
इनको  मिला मौका
2009 में टिकट से वंचित रहे मोहम्मद सरवर ,स्वाति अतुल कौशल , अजीजउद्दीन , शबिस्ता जकी , सुधीर गुप्ता ,संतोष कंसाना, अमित शर्मा, गुड्डू चौहान के अलावा वहीद लश्करी को नकी पत्नी की जगह , बीनू सक्सेना को उनके पति मोनू सक्सेना और प्रवीण सक्सेना को उनकी पत्नी सीमा सक्सेना की जगह प्रत्याशी बनाया गया है।
कांग्रेस भी उलझी पार्षदों की सूची में
कांग्रेस में भी देर रात तक तमाम शहरों की सूचियां जारी करने की कवायद की जाती रही। काफी मशक्कत के चलते पार्टी ने पहली सूची कटनी नगर निगम की और उसके बाद सिंगरौली की जारी की। सूचीयां जारी करने का दौर देर रात तक जारी रहा। वहीं टिकट नहीं मिलने पर कार्यकर्ताओं में कई जगहों पर इस्तीफों का दौर भी शुरू हो गया। जबलपुर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में युवक कांग्रेस अध्यक्ष सचिन बाजपेई ने पार्षद का टिकट नहीं मिलने पर अपने 50 पदाधिकारियों के साथ पद से इस्तीफा दे दिया है। खंडवा जिले में कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर कई कार्यकतार्ओं ने पार्टी छोड़ने की चेतावनी दे दी। सतना में पुराने कांग्रेसी और पूर्व मंत्री सईद अहमद ने बसपा का दामन और भोपाल में भी एक कांग्रेस की पूर्व पार्षद आप का दामन थाम चुकी हैं। इसी तरह से कांग्रेस में भी दिग्गजों के टिकट पर कैंची चली है। इसके बाद बगावत का सिलसिला शुरू हो गया है। सोशल मीडिया पर नेताओं के इस्तीफे वायरल होने लगे। इस सबके बीच कांग्रेस जिलाध्यक्ष कैलाश मिश्रा अपनी बहू प्रियंका को प्रत्याशी बनाने में सफल रहे हैं। भोपाल में कई पुराने चेहरों को भी फिर मौका दिया गया है। इस बीच पिछली नगर निगम परिषद में नेता प्रतिपक्ष रहे मोहम्मद सगीर का टिकट कट गया है। इसी तरह से शाहिद अली और उनकी पत्नी का टिकट भी काट दिया गया है। वे दो बार खुद पार्षद और एक दफा महापौर परिषद के सदस्य रह चुके हैं। पिछली परिषद में उनकी पत्नी भी पार्षद थी। इसी तरह से दो बार के पार्षद अब्दुल शफीक और नाजमा अंसारी को भी निराशा हाथ लगी है।

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