
- उच्च शिक्षा विभाग के अफसरों की भरार्शाही …
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए सरकार तरह-तरह के जतन कर रही है। लेकिन अफसरों की भर्राशाही से सरकार के कदम सफल नहीं हो पा रहे हैं। इसकी वजह है अफसरों ने उच्च शिक्षा विभाग को प्रयोगशाला बना दिया है।
उच्च शिक्षा विभाग के अफसरों ने प्रदेश के कॉलेजों में यूजीसी के जिस आधुनिक लाइब्रेरी मैनजेमेंट सॉफ्टवेयर (सोल) पर करोड़ों रूपए खर्च कर ई-लाइब्रेरी से क्रांति लाने का दावा किया था अब उससे उनका मोहभंग हो गया है और उसकी जगह ई-ग्रंथालय सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल पर फोकस किया जा रहा है। जानकारी के अनुसार उच्च शिक्षा विभाग के आला अफसर सोल को धराशायी करने में जुट गए हैं। जिम्मेदारों ने 13 अप्रैल को सरकारी 529 कॉलेजों के प्राचार्यों के नाम पत्र जारी किया कि अब लाइब्रेरी आॅटोमेशन के लिए एनआइसी के ई-ग्रंथालय सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाएगा। कॉलेजों को औसतन 25 हजार रुपए खर्च कर पांच साल के लिए सॉफ्टवेयर मिलेगा। 2003 से अब तक 350 कॉलेजों की लाइब्रेरी का आॅटामेशन और रिसर्च डाटाबेस तैयार करने के काम पर करोड़ों (प्रति संस्थान करीब एक लाख रुपए के हिसाब से) खर्च किए जा चुके हैं। यूजीसी के इन्फॉर्मेशन एंड लाइब्रेरी नेटवर्क सेंटर (इनफ्लिबनेट) के सोल सॉफ्टवेयर से राज्य के कॉलेजों को ई-बुक्स व ई-जर्नल्स की सुविधा भी मिल रही है, जो अब छिनती दिखाई दे रही है।
2003 में शुरू हुई थी लाइब्रेरी ऑटोमेशन की प्रक्रिया
उल्लेखनीय है कि उच्च शिक्षा विभाग ने 2003 में कॉलेजों में लाइब्रेरी ऑटोमेशन की प्रक्रिया शुरू की थी। यूजीसी के इनफ्लिबनेट जिसके जिम्मे देशभर के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों की लाइब्रेरी के कम्प्यूटरीकरण और रिसर्च डाटाबेस तैयार करने यानी ई- लाइब्रेरी बनाने का काम था, उसे शुरू किया गया। पहले चरण में 80 सरकारी कॉलेजों के लिए विभाग और यूजीसी के इनफ्लिबनेट के बीच एमओयू हुआ। विभाग ने अनुदान दिया ताकि कॉलेज सॉफ्टवेयर खरीदी और ऑटोमेशन कर सकें। इस बीच अभी तक 350 कॉलेजों के परंपरागत ग्रंथालय ई-लाइब्रेरी के रूप में परिवर्तित हो चुके हैं।