
- शिक्षा माफिया पर विभाग नहीं कस पा रहा शिकंजा
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश में स्कूल शिक्षा विभाग शिक्षा माफिया (स्कूल एवं कॉलेज संचालक) के सामने पूरी तरह से नकारा साबित हो रहा है। यही वजह है कि निजी स्कूलों में पढ़ने वाले आभिभावकों की फीस के नाम पर तो जेब काटी ही जाती है इसके बाद अन्य तमाम तरह की गतिविधियों के नाम पर भी वूसली का कोई मौका नहीं छोड़ा जाता है। हद तो यह है कि संचालकों द्वारा अब तो अभिभावकों से टीसी देने के नाम पर भी जमकर वसूली की जा रही है।
बच्चे की भविष्य के देखते हुए जहां अभिभावक मौन रहकर स्कूलों के इस तानाशाह रवैये को बरदास्त कर रहे हैं तो वहीं प्रशासन व आला अधिकारी शिकायत न मिलने का कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। नियम अनुसार स्कूल की पूरी फीस जमा होने के बाद अभिभावक या छात्र को टीसी देने चाहिए। साथ ही अभिभावकों से जिस मद का पैसे लिया जाता है उसकी स्लिप देना अनिवार्य है। जिला शिक्षा कार्यालय में हर साल ऐसे दर्जनों मामले आते हैं, जहां अभिभावक से पूरी फीस लेने के बाद भी टीसी नहीं दी जा रही है, वहीं टीसी के लिए अलग से मनमाने पैसे वसूल किए जाते हैं। स्कूल इसके लिए अभिभावकों को कोई स्लिप भी नहीं देते। जानकारी के अनुसार स्कूलों में टीसी के नाम पर अभिभावकों से 200 से 500 रुपए प्रति छात्र के हिसाब से पैसे लिए जाते हैं। जबकि नियमानुसार स्कूल की सारी फीस चुकाने के बाद स्कूल प्रबंधन को सारे दस्तावेज बिना किसी शुल्क के देने का प्रावधान है। यह स्थिति केवल स्कूलों में नहीं बल्कि कॉलेजों में भी है। स्कूल जहां टीसी के लिए 200 से 500 रुपए लेते हैं तो वहीं कॉलेजों में 1000 रुपए तक वसूले जाते हैं।
क्या कहते हैं अभिभावक
इस मामले में मंडीदीप में अभी अभी शिफ्ट हुए एक अभिभावक कहना है कि जब वह पिपलानी में रहते थे तो उनका बेटा सेंटमॉट फोर्ड स्कूल में पढ़ता था, लेकिन अब उन्होंने मंडीदीप में घर ले लिया है। इस कारण बच्चे का दाखिला भी वहीं के स्कूल में करा दिया गया, लेकिन स्कूल से जब टीसी(शाला त्याग प्रमाण पत्र) मांगी तो पहले प्राचार्य ने टीटी देने से मना कर दिया और काफी जतन के बाद 500 रुपए टीसी के अलग से देना पड़े और इसकी स्लिप भी स्कूल से नहीं दी गई। इसी तरह से आयरन हायर सेकेंडरी पब्लिक स्कूल में 11वीं कक्षा के एक छात्र ने बताया कि कोरोना के कारण घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब है। इस कारण इस साल उसने दूसरे स्कूल में दाखिला ले लिया है।
लेकिन कई चक्कर काटने के बाद भी स्कूल प्राचार्य ने उसे टीसी देने से मना कर दिया। टीसी के लिए उसे न सिर्फ अलग से पैसे देना पड़े बल्कि सिफारिश भी करानी पड़ी। उधर, नालंदा कोएड हायर सेकंडी स्कूल कोलार रोड से एक अभिभावक ने बताया कि कोरोना के कारण उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह स्कूल की फीस जमा कर सकें। इसलिए उन्होंने अपनी बेटी सिमरण अहिरवार को नाम शासकीय सरोजनी नायडू स्कूल में करा दिया है। जब स्कूल से टीसी मांगी तो पहले तो उन्होंने पूरी फीस के साथ टीसी के 500 रुपए अलग से जमा कराने को कहा। जिसपर हमने फीस और टीसी के पैसे जमा कर दिए, लेकिन अब स्कूल वाले बोल रहे हैं कि उनके भाई-बहन जो इस स्कूल में पढ़ते हैं उनकी भी पूरी फीस जमा करना होगा। तभी टीसी दी जाएगी।
इन कक्षाओं में करते हैं परेशान
हाईस्कूल एवं हायरसेकंडरी स्कूल में 10वीं एवं बारहवीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ने पर टीसी आसानी से दे दी जाती है, लेकिन यदि कोई बीच में स्कूल छोड़ना चाहता है या पढ़ाई ठीक न होने पर स्कूल बदलना चाहते हैं तो आपको टीसी लेने अलग से पैसे देना होंगे। इसके बाद भी कई चक्कर भी काटने पड़ेगे। इस कार्य में दो से तीन महिने भी लग जाते हैं। वहीं कई बार बच्चे को दोनों स्कूलों से हाथ धोना पड़ता है।
इनका कहना है..
निजी स्कूलों की मनमानी जारी है। सरकार ने अब तक इन पर कंट्रोल के लिए कोई कानून नहीं बनाया है। स्कूल में एडमिशन लेना हो गया टीसी लेकर स्कूल छोड़ना हो हर चीज के लिए कीमत चुकाना पड़ती है।
– कमला विश्वकर्मा, अध्यक्ष, पालक महासंघ