
- दिग्विजय सिंह के प्रत्याशी बनने से
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। तीन दशक बाद अपने गृह संसदीय सीट राजगढ़ से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के चुनाव लडऩे के ऐलान के बाद से यह सीट भी छिंदवाड़ा, गुना के बाद तीसरी हॉट सीट बन गई है। इसे राघोगढ़ राजघराने की परंपरागत सीट माना जाता है। इसकी वजह है इस सीट से दो बार खुद दिग्विजय सिंह तो उसके बाद उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह संासद निर्वाचित होते रहे हैं। वे इस सीट से पांच बार सांसद चुने गए हैं। यह बात अलग है कि पार्टी ने अब तक दिग्विजय सिंह के नाम की औपचारिक रूप से घोषणा नहीं की है, लेकिन उनका चुनाव लड़ना तय है। यही वजह है कि वे बीत रोज राजगढ़ पहुंचे तो वहां उन्होंने कार्यकर्ताओं के साथ चुनावी तैयारियों को लेकर बैठक की। करीब 33 साल बाद राजगढ़ की धरा से चुनावी मैदान में है और यह भी कयास लगाए जा रहे हैं की यह उनका अंतिम चुनाव हो सकता है,जिसमे उन्हें उन्हें यकीन है की राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र की जनता उन पर फिर से विश्वास जताएगी। चंबल और मध्य भारत अंचल में आने वाले राजगढ़ लोकसभा संसदीय क्षेत्र का इतिहास बेहद दिलचस्प है, जहां बीजेपी और कांग्रेस से ज्यादा राजपरिवारों का दबदबा दिखता है। कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह और उनके परिवार का इस क्षेत्र में सीधा दखल माना जाता है, लेकिन बीते दो चुनाव से भाजपा ने उनके दखल को कम कर दिया है। इन चुनावों में भाजपा को जीत मिली है।
यह है सीट का सियासी इतिहास: राजगढ़ संसदीय सीट का इतिहास 1952 से शुरू होता है, कांग्रेस के लीलाधर जोशी 1952 और 1957 का चुनाव जीतकर लगातार दो चुनाव जीतकर राजगढ़ के पहले सांसद बने थे। 1952 और 1957 तक राजगढ़-शाजापुर संसदीय क्षेत्र था, जो उस समय अनारिक्षत व आरिक्षत वर्ग से एक-एक सांसद चुने जाते थे। ऐसे में लीलालधर जोशी आरक्षित वर्ग से भागू नंदू मालवीय भी सांसद सांसद चुने गए थे, 1957 में आरक्षित वर्ग से कन्हैयालाल सांसद चुने गए थे। 1962, 1967 और 1971 के चुनावों तक राजगढ़ जिला तीन लोकसभा क्षेत्रों शाजापुर, भोपाल व गुना में बंटा रहा। इस दौरान 1962 में निर्दलीय भानुप्रकाश सिंह, 1967 में बाबूराव पटेल और जगन्नाथ राव जोशी जनसंघ से सांसद चुने गए थे। 1977 के चुनावों से राजगढ़ संसदीय सीट अस्तित्व में आ गई। 1977 और 1980 के चुनावो में जनता पार्टी के बसंत कुमार पंडित यहां से सांसद चुने गए थे।
राघोगढ़ राजपरिवार ने 7 बार जीती सीट
1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह पहली बार इस सीट से सांसद चुने गए थे। हालांकि 1989 के चुनाव में उन्हें बीजेपी के प्यारेलाल खंडेलवाल से हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन 1991 में ही दिग्विजय सिंह ने फिर वापसी करते हुए प्यारेलाल खंडेलवाल को हराया था। 1994 में इस सीट पर उपचुनाव हुए और यहां से दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह पहली बार सांसद चुने गए, जिसके बाद लक्ष्मण सिंह ने 1996, 1998, 1999 और 2004 के चुनाव तक यहां से लगातार जीत हासिल की थी। हालांकि 2004 का चुनाव उन्होंने बीजेपी के टिकट पर जीता था। ऐसे में इस सीट पर राघौगढ़ परिवार का दबदबा देखा जाता रहा है। दिग्विजय सिंह और लक्ष्मण सिंह इस सीट से सात चुनाव जीत चुके हैं, 2009 में कांग्रेस के आमलाबे नारायण सिंह चुनाव जीते थे, जबकि 2014 और 2019 से बीजेपी के रोडमल नागर चुनाव जीत रहे हैं। राजगढ़ लोकसभा सीट पर अब तक कुल 16 आम चुनाव हो चुके हैं, जिनमें से 7 बार कांग्रेस, चार बार बीजेपी, दो बार जनसंघ, दो बार जनता पार्टी और एक बार निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की है।
राजपरिवारों का रहा दबदबा
राजगढ़ लोकसभा सीट की खास बात यह रही है कि यहां राजपरिवारों का दबदबा रहा है। सात चुनावों में राघौगढ़ राजपरिवार के सदस्य सांसद बनने में कामयाब रहे हैं, जबकि एक बार नरसिंहगढ़ रियासत के पूर्व महाराजा भानु प्रकाश सिंह भी निर्दलीय चुनाव जीते थे। हालांकि यहां राजपरिवारों को केवल जीत नहीं मिली है, बल्कि यहां की जनता ने उन्हें कई बार चुनाव भी हराया है। दिग्विजय सिंह और लक्ष्मण सिंह को इस सीट पर हार का सामना भी करना पड़ा है।
कृष्ण को लक्ष्मण ने हराया था चुनाव
राजगढ़ लोकसभा सीट पर एक चुनाव में महाभारत के कृष्ण को लक्ष्मण से चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। दरअसल, 1999 के लोकसभा चुनाव में प्रसिद्ध सीरियल महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण का किरदार निभाने वाले नितीश भरद्वाज को बीजेपी ने चुनाव लड़वाया था, जबकि कांग्रेस ने उनके सामने दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह को ही उतारा था। तब यह चुनाव खूब सुर्खियों में रहा था, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण का किरदार निभाने की वजह से नितीश भारद्वाज की उन दिनों लोकप्रियता चरम पर थी, ऐसे में वह प्रचार के दौरान आकर्षण का केंद्र बन गए थे।