परामर्श के भरोसे चल रहा प्रशासनिक कामकाज

प्रशासनिक कामकाज

-परामर्शी सेवा वाले 100 से ज्यादा अफसर…

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में सरकार नई भर्तियां करने की बजाय रिटायर्ड अफसरों को संविदा नियुक्ति देकर और परामर्श सेवाओं के तहत काम ले रही है। आलम यह है कि मध्य प्रदेश में कई विभागों में प्रशासनिक कामकाज रिटायर्ड अफसरों की परामर्शी सेवाओं पर निर्भर हो गया है, क्योंकि नियमित नियुक्तियों की कमी और पदोन्नति में रुकावट के कारण खाली पदों को भरा नहीं जा रहा है। रिटायर्ड अफसर संविदा नियुक्ति और परामर्श सेवाओं के तहत काम कर रहे हैं, यहां तक कि वे नोटशीट भी लिख रहे हैं, जबकि अंतिम हस्ताक्षर नियमित अफसर करते हैं। इससे प्रशासनिक व्यवस्था प्रभावित हो रही है और खाली पदों के कारण एक ही अधिकारी कई जिम्मेदारियां संभाल रहा है।
गौरतलब है कि रिटायर्ड अफसरों का अनुभव और ज्ञान प्रशासनिक कार्यों के लिए उपयोगी है। पिछले कई सालों से नियमित नियुक्तियां नहीं होने और पदोन्नति रुकने से पद खाली रह गए हैं। खाली पदों को भरने के लिए सरकार रिटायर्ड अफसरों को परामर्शदाता या सलाहकार के रूप में नियुक्त कर रही है। ये रिटायर्ड अफसर नोटशीट तैयार करते हैं, लेकिन अंतिम निर्णय लेने और हस्ताक्षर करने का अधिकार नियमित अफसरों के पास रहता है। इस व्यवस्था से प्रशासनिक व्यवस्था चरमरा गई है और एक व्यक्ति पर कई जिम्मेदारियों का बोझ आ गया है। यह स्थिति विभागों में भारी कर्मचारियों की कमी को उजागर करती है और खाली पदों को भरने के लिए नियमित नियुक्तियों की आवश्यकता पर जोर देती है।
परामर्शी सेवा वाले 100 से ज्यादा अफसर
दरअसल, मंत्रालय से लेकर तमाम विभागों में कई पद खाली हैं। नई भर्तियां हो नहीं रही। ऐसे में रिटायर्ड अफसरों की परामर्शी सेवाएं लेने का रास्ता निकाल लिया गया है। इसका नतीजा यह है कि कई अफसर रिटायरमेंट के बाद भी रिटायर नहीं हो रहे। उम्र 70 हो चुकी है, लेकिन उसी विभाग में जमे हैं। मानदेय भी 50 हजार से लेकर एक लाख रुपए तक है। बस पदनाम बदल गया है। अब ये नियमित के बजाय परामर्शी सेवा दे रहे हैं। सभी विभागों को देखें तो परामर्शी सेवा वाले 100 से ज्यादा अफसर हैं। हालात ऐसे हैं कि 62 की उम्र में रिटायरमेंट के बाद पहले संविदा नियुक्ति दी जा रही है और फिर परामर्शी सेवा ली जा रही है।
बस आदेश पर नियमित अफसर करते हैं हस्ताक्षर
मंत्रालय में ही डिप्टी सेक्रेटरी और अंडर सेक्रेटरी स्तर के पद खाली पड़े हैं। पदोन्नति नहीं हो रही हैं। ऐसे में परामर्शी सेवाओं के नाम पर रिटायर्ड अफसर ही फाइलें देख रहे हैं। नोटशीट भी यही लिखते हैं। बस आदेश पर हस्ताक्षर नियमित अफसर करते हैं। फजल मोहम्मद सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) में अंडर सेक्रेटरी पद से रिटायर हुए। संविदा कार्यकाल भी पूरा किया। अब परामर्शी सेवाएं दे रहे हैं। मंत्रालय में कक्ष भी है। राधेश्याम दुबे जीएडी में सेक्शन ऑफिसर के पद से रिटायर हुए हैं। अब उनकी परामर्शी सेवाएं जारी हैं। मुख्य सचिव कार्यालय में अनिल नेमा सहायक ग्रेड-2 के पद से रिटायर होने के बाद परामर्शी सेवाएं दे रहे हैं। संजय सिंह चौहान जीएडी में प्रोटोकॉल ऑफिसर के पद हुए से रिटायर हुए, उनकी सेवाएं भी चल रही हैं। वित्त विभाग में अजय चौबे डिप्टी सेक्रेटरी के पद से रिटायर हुए। संविदा कार्यकाल पूरा किया। अब परामर्शी सेवाएं दे रहे हैं।
गौरतलब है कि मुख्य सचिव अनुराग जैन ने जीएडी में परामर्शी सेवाओं पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा था, क्या हम नए विकल्प नहीं तलाशेंगे। उन्होंने सेवावृद्धि, संविदा नियुक्ति और परामर्शी सेवाओं पर रोक लगाने को कहा था। बावजूद जीएडी ने ऐसे अफसरों को हटाना तो दूर, परामर्शी और विशेषज्ञ सेवाएं लेने के लिए सालाना 20 लाख रुपए के बजट की मंजूरी ले ली, जिससे संविदा नियुक्ति के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव न भेजना पड़े। एसीएस जीएडी, संजय कुमार शुक्ला का कहना है, हर विभाग अपनी जरूरत से सेवाएं लेता है। उसी के अनुसार व्यवस्था चल रही है।

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