मिलावटी माफिया पर प्रशासन की मेहरबानियां

मिलावटी माफिया
  • न अर्थदंड  वसूला और न ही निलंबित किए लाइसेंस

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भी प्रदेश की अफसरशाही की मिलावटी माफिया पर पूरी मेहरबानियां बनी हुई हैं। प्रशासन की मेहरबानी इससे ही समझी जा सकती है कि जिन मामलों में न्यायालय द्वारा आरोपियों पर जुर्माना लगाया गया, उनसे जुर्माना की राशि वसूलने तक में सरकारी अमले ने रुचि नहीं ली। यही नहीं इस तरह के मामलों में मिलावटी कारोबारियों के लाइसेंस तक निरस्त नहीं किए गए है। इस तरह का खेल प्रदेश के दूरदराज के जिलों में ही नहीं बल्कि भोपाल के अलावा अन्य महानगरों में भी जमकर खेला जा रहा है। इस मामले का खुलासा बीते दिनों सीएजी की रिपोर्ट से हुआ है। खास बात यह है कि इस मामले में सीएजी ने बेहद कड़ी टिप्पणियां भी की हैं। इस रिपोर्ट से खुलासा होता है कि प्रदेश में महज मावा, दूध, खाद्य पदार्थ में ही मिलावट नहीं की जा रही है बल्कि दवा के मामले में भी मिलावट करने वाला माफिया सक्रिय है। जिन जिलों में वस्तुओं का मिलावटी कारोबार करने वालों के खिलाफ न्यायालय द्वारा अर्थदंड लगाने के बाद भी उनसे वसूली नहीं की गई है, उनमें भोपाल, ग्वालियर, इंदौर, होशंगाबाद, खरगोन,मुरैना, सतना और उज्जैन जैसे जिले शामिल हैं। सीएजी ने इस मामले में आपत्ति उठाते हुए 648 प्रकरणों में 3.64 करोड़ रुपए के अर्थदंड की वसूली नहीं करने पर गंभीर आपत्ति जाताई है।  सीएजी की रिपोर्ट में कहा है कि खाद्य सुरक्षा और मानक नियम-2011 कहता है कि न्यायालय निर्णय द्वारा अधिरोपित अर्थदंड राशि न्यायिक अधिकारी के पक्ष में आहरित डिमांड ड्राफ्ट द्वारा जमा की जाएगी। ग्वालियर, खरगोन तथा इंदौर में अपर जिला न्यायाधीश ने विभिन्न प्रकरणों में वर्ष 2014 से 2020 के दौरान मिलावटी कारोबारियों के खिलाफ अर्थदंड की राशि 30 दिन के भीतर जमा करने के आदेश दिए थे, लेकिन 5 जिलों में इसकी समय सीमा तय नहीं की गई थी, जिसकी वजह से आरोपियों द्वारा अर्थदंड की राशि जमा नहीं की। अपर जिला न्यायाधीश सहित अन्य सत्र न्यायाधीशों ने 2014 से 2020की अवधि में अधिरोपित किए गए अर्थदंड की राशि 5.53 करोड़ में से 3.64 करोड़ रुपए दवा कारोबारियों ने जमा ही नहीं की।
इस तरह से की गई लापरवाहियां
हद तो यह हो गई की प्रदेश में 1,334 प्रकरणों में से 648 में अर्थदंड का भुगतान नहीं करने की स्थिति में भू-राजस्व बकाया के रूप में वसूली करने अधिकारियों ने खाद्य पदार्थ और दवा कारोबार करने वालों के लाइसेंस तक को भी निलंबित नहीं किया, जबकि अधिनियम की धारा-96 में उक्त कार्रवाई करने का प्रावधान है। यही नहीं भोपाल में 42.78 लाख, ग्वालियर में 37.63 लाख तथा इंदौर में 84.21 लाख रुपए की अर्थदंड की राशि बैंक खातों में जमा करके रखा गया। यह हाल तब रहा जब इस स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव ने दो साल पहले जुलाई 2020 में कलेक्टरों को त्वरित कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे।
इस तरह से भी किया गया उपकृत
आम आदमी के दस्तावेजों में मामूली से भी कमी होने पर उसके कागजात फेंकने वाले अफसर व्यापारियों पर किस तरह से मेहरबान रहे इसका खुलासा भी किया गया है। इसमें बताया गया है कि खाद्य विभाग के अफसरों ने खाद्य लाइसेंस जारी करने के लिए आवेदकों ने 2 से 11 माह बाद जरूरी दस्तावेज प्रस्तुत किए। इसके बाद भी उन्हें दुकान संचालन का लाइसेंस जारी कर दिया गया। इस तरह के भोपाल में 30, ग्वालियर में 28, इंदौर में 13, खरगोन में  55, मुरैना में 12 और सतना जिले में 5
लाइसेंस जारी किए गए। इस तरह की मेहरबानी जब दिखाई गई, जब भोपाल में तरुण पिथोड़े, होशंगाबाद में शीलेंद्र सिंह, आशीष सक्सेना, उज्जैन में कवींद्र कियावत, ग्वालियर में अनुराग चौधरी, भरत यादव, इंदौर में लोकेश कुमार जाटव, खरगोन में अशोक कुमार वर्मा, गोपाल चंद्र डॉड,सतना में राहुल जैन, डॉ. सत्येंद्र सिंह, मुरैना में भरत यादव, अनुराग वर्मा आदि के पास जिलों की कमान थी। यह वे अफसर हैं जो सरकार की पसंद माने जाते हैं।

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