- किसी भी दुकान का नहीं है फूड लाइसेंस …
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में भले ही बीते सालों में जहरीली शराब पीने से कई लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन इसके बाद भी प्रशासन सबक लेने को तैयार नहीं है। इसे विभाग की लापरवाही कहें या फिर ठेकेदारों का डर कि नियमों को ठेंगा दिखाने वाले शराब दुकानों के संचालकों के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत शासन व अफसर नहीं दिख पा रहे हंै। हाल ही में रायसेन जिले में जहरीली शराब पीने से कई लोग बीमार हो चुके हैं, इसके बाद भी जिम्मेदार नियमों को पालन कराने के लिए तैयार नजर नहीं आ रहे हैं। यही वजह है के प्रदेश तो छोड़िए भोपाल तक में किसी भी शराब कारोबारी ने फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से फूड लाइसेंस नहीं लिया है। ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हुआ है बल्कि नियम लागू होने के बाद से ही यही स्थिति बनी हुई है। शराब ठेकेदारों पर कार्रवाई करने के मामले में शुरु से ही शासन व प्रशासन में बैठे लोगों के हाथ कांपने लगते हैं। यही वजह है कि ठेकेदार खुलेआम नियमों की धज्जियां उड़ाते रहते हैं। फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन को शराब में मिलावट रोकने के लिए सैंपलिंग के अधिकार हैं। हालात यह है है कि आबकारी विभाग तो पूरी तरह से ही आंख बंद किए रहता है, लेकिन खाद्य विभाग भी इस मामले में रुचि नहीं दिखता है। खानापूर्ति के लिए कभी कभी एकाध सैंपल लेकर इतिश्री कर ली जाती है। हद तो यह है कि आम सैंपलों की जिस तरह से जांच रिपोर्ट सार्वजनिक की जाती है, ऐसे मामलों में तो उसे बेहद गोपनीय रखा जाता है। अब तक फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) के नियमों के तहत फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से फूड लाइसेंस नहीं लिया है। यही स्थिति प्रदेश में अन्य शराब कारोबारियों की भी है। ये लाइसेंस लेते नहीं और न ही फूड इंस्पेक्टर सैंपल लेते हैं। जबकि नकली एवं मिलावटी शराब की बिक्री न हो, इस पर रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार ने फूड सेफ्टी एक्ट में 2006 में बदलाव किया था। इसे 2011 में लागू किया गया। यह एक्ट लागू होने के बाद खाद्य सुरक्षा प्रशासन को शराब के सैंपल लेने के जहां अधिकार दिए गए, वहीं शराब कारोबारियों को फूड लाइसेंस अनिवार्य कर दिया गया। शराब दुकानों की निगरानी की जिम्मेदारी केवल आबकारी विभाग के पास थी। ऐसे में अवैध शराब पर तो कार्रवाई होती है, लेकिन नकली या मिलावटी शराब पर कार्रवाई कम ही होती थी। खाद्य एवं औषधीय नियंत्रक कार्यालय से फूड लाइसेंस लेने के बाद वह कभी भी संबंधित शराब दुकान पर सैंपलिंग की कार्रवाई कर सकता है। मिलावटी शराब मिलने पर सजा का और लाइसेंस नहीं मिलने पर दस लाख तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
मिलावट की सबसे अधिक शिकायतें
सूत्रों की मानें तो भोपाल में देशी की मसाला और प्लेन में मिलावट की शिकायतें सबसे अधिक पहुंचती हैं। इसके अलावा लोअर रेंज की शराब को लेकर भी शिकायत जिम्मेदारों को मिलती हैं। इन शिकायतों के बाद भी कभी इनके सेंपल नहीं लिए जाते हैं। बीते दो साल पहले इंदौर सहित अन्य जिलों में जहरीली शराब का मामला आने के बाद बड़े पैमाने पर शराब के सैंपल लिए गए थे, लेकिन इसके बाद जिम्मेदार इस मामले में फिर से कुंभकर्णी नींद में सो गए हैं। खाद्य विभाग के अफसरों का कहना है कि शराब का रिटेल कारोबार करने वाले ठेकेदारों के लिए फूड का लाइसेंस अनिवार्य है। इसके लिए कई बार पत्र लिखा गया है। एक बार फिर आयुक्त खाद्य सुरक्षा के द्वारा पत्र लिखा गया है। इस मामले में आबकारी महकमे के अफसर अनिभिज्ञता जताते हुए कहते हैं कि उन्हें लाइसेंस के संबंध में कोई जानकारी नहीं है।
आयुक्त खाद्य सुरक्षा के निर्देश भी पूरी तरह से दरकिनार
सूत्रों की मानें तो आयुक्त खाद्य सुरक्षा प्रशासन ने पिछले दिनों आबकारी कमिश्नर और प्रदेश के सभी कलेक्टर्स को पत्र लिखा है। पत्र में शराब ठेकेदारों को लाइसेंस लेने और शराब की जांच करने के लिए कहा गया है। बावजूद इसके अभी तक इस पर कोई पहल नहीं हो सकी है। राजधानी में ही शराब ठेकेदारों के पास खाद्य सुरक्षा प्रशासन का लाइसेंस नहीं है। ऐसे में दूर दराज के जिलों का अंदाजा लगाया जा सकता है। दरअसल, शराब ठेकेदार जानबूझकर लाइसेंस लेने से बचते हैं। फूड लाइसेंस लेने पर शराब की क्वालिटी के सैंपल लेकर जांच कराई जा सकती है। गड़बड़ी मिलने पर कारोबारी और निर्माता कंपनी के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती। साथ ही दुकान को सील भी किया जा सकता है।