
- लगता जा रहा है फाइलों का अंबार, कभी भी नहीं हुई तय पदों पर पूरी नियुक्तियां
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। जिस आयोग के जिम्मे लोगों को जनहित की सूचनाएं दिलाना है, वह सूचना आयोग इस समय दम तोड़ता हुआ नजर आने लगा है। इसकी वजह है आयोग में 11 आयुक्तों में से महज अब दो आयुक्तों का ही रह जाना। आश्चर्यजनक तो यह है कि जब से आयोग गठित हुआ है, तब से लेकर आज तक आयोग के लिए तय सभी पद पूरी तरह से नहीं भरे गए हैं। इससे समझा जा सकता है कि सूचना आयोग को लेकर सरकारें कितनी गंभीर रही हैं। अब प्रदेश में नई सरकार बन चुकी है, लिहाजा माना जा रहा है कि मोहन सरकार जल्द ही रिक्त पदों में से कुछ पदों पर आयुक्तों की नियुक्ति कर सकती है। आयोग में आयुक्तों की नियुक्ति नहीं होने से सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आने वाले आवेदनों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। इस आयोग के हाल अभी यह हैं कि मुख्य सूचना आयुक्त के अलावा सिर्फ आयुक्त का एक ही पद भरा हुआ है, जबकि शेष 9 आयुक्त के पद रिक्त चल रहे हैं। रिक्त पदों पर अगर जल्द ही नियुक्ति नहीं की जाती है तो 20 मार्च के बाद सूचना आयोग के सभी प्रमुख पद रिक्त हो जाएंगे। दरअसल, मप्र राज्य सूचना आयोग में मुख्य सचिव आयुक्त समेत आयुक्त के कुल 11 पद हैं। आयोग के गठन से लेकर अभी तक 7 से अधिक पद कभी भी नहीं भरे गए हैं। गौरतलब है कि पूर्व की शिवराज सरकार में रिक्त पदों को भरने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने ऑनलाइन आवेदन बुलाए थे। जिसमें 135 से ज्यादा आवेदन आए थे। आवेदन करने वालों में सेवानिवृत अधिकारी, पत्रकार एवं अन्य लोग भी शामिल हंै। इन आवेदनों को बुलाने के बाद सरकार ने इन पर गौर ही नहीं किया, जिसकी वजह से कार्यरत आयुक्तों का कार्यकाल समाप्त होता गया और पद रिक्त होते चले गए। मौजूदा कार्यरत आयुक्तों में शामिल मुख्य सूचना आयुक्त अरविंद शुक्ला और आयुक्त राहुल सिंह का भी कार्यकाल 20 मार्च को पूरा हो जाएगा। यदि इससे पहले सरकार ने नियुक्ति नहीं की तो फिर सूचना आयोग में कोई भी आयुक्त नहीं बचेगा।
बैठक बुलाकर कर दी थी निरस्त
पूर्व की शिवराज सरकार ने ढाई महीने पहले चुनावी आचार संहिता लागू होने से पहले 9 अक्टूबर 2023 को सुबह 9 बजे सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए बैठक बुलाई थी। इसको लेकर पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने सवाल उठाते हुए मनमानी बताया था और न्यायालय की शरण में जाने की बात भी कह दी थी। उन्होंने बैठक में आने से भी इंकार कर दिया था। इसके कारण यह बैठक निरस्त कर दी गई थी। इसी दिन चुनाव आयोग ने मप्र में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया था।
आयोग नहीं है सरकार की प्राथमिकता
मप्र राज्य सूचना आयोग को प्रभावी बनाने में मप्र सरकार की कतई रुचि नहीं है। देश की सूचना आयोग की सबसे खराब स्थिति मप्र की है। आयुक्तों के अलावा कार्यालयीन अमला भी पर्याप्त नहीं है। आयोग के गठन के बाद 2005 में राज्य तिलहन संघ के कर्मचारियों को मर्ज किया गया था। उनमें से ज्यादातर सेवानिवृत्त हो चुके हैं। अब आउटसॉर्स से काम चलाया जा रहा है। खास बात यह है कि आयोग में विधि विशेषज्ञ भी नहीं है। एक साथ 5 से ज्यादा आयुक्तों की नियुक्ति कभी भी नहीं की गई। आयोग में अन्य सुविधाओं भी सरकार का ज्यादा ध्यान नहीं है। यदि सरकार ने सूचना आयोग में जल्द नियुक्ति नहीं की तो फिर आयोग के जरिए सूचनाएं ही मिलना बंद हो जाएंगी। फिलहाल सरकार का रवैया ढुलमुल बना हुआ है।
आवेदन बुलाने से लेकर चयन तक में लगेगा समय
प्रदेश में नई सरकार का गठन होने की वजह से अब सूचना आयुक्तों की नियुक्ति लिए सरकार को नए सिरे से विज्ञापन जारी कर आवेदन बुलाने होंगे। इसके बाद ही नियुक्ति की प्रक्रिया शुरु हो सकेगी। सामान्य प्रशासन विभाग के अनुसार पूर्व सरकार के समय ऑनलाइन बुलाए गए आवेदनों के आधार पर नई सरकार में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं की जाएगी। फिलहाल सरकार का सूचना आयोग आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कोई हलचल नहीं दिख रही है।