
- आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ की सख्ती से भ्रष्टाचारियों की बढ़ी धडक़न
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सुशासन की दिशा में जो कदम उठाया है उसको देखते हुए जांच एजेंसियां भी सक्रिय हो गई हैं। जहां एक तरफ लोकायुक्त भ्रष्टों को ट्रेप करने में लगा हुआ है, वहीं आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) भी सख्ती पर उतर आया है। भ्रष्टाचार एवं आर्थिक अनियमितता संबंधी प्रकरणों की जांच के लिए गठित एजेंसी ईओडब्ल्यू में इन दिनों फटाफट अपराधिक प्रकरण (एफआईआर) दर्ज हो रहे हैं। जिससे भ्रष्टाचारियों में हडक़ंप मचा है। पिछले तीन महीने के भीतर ही ईओडब्ल्यू में 78 आपराधिक प्रकरण दर्ज किए हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसने के लिए मुख्यमंत्री ने वरिष्ठ अफसरों के साथ ही विभागों को भी निर्देश दे रखा है। इसी कड़ी में ईओडब्ल्यू ने शिकायतों की जांच के बाद आपराधिक प्रकरण दर्ज करना शुरू कर दिया है। खास बात यह है कि एफआईआर का यह आंकड़ा पिछले साल से डेढ़ गुना से भी ज्यादा है। जांच एजेंसी के इतिहास में किसी भी साल में इतने मामलों में एफआईआर दर्ज नहीं हुई है। ईओडब्ल्यू के महानिदेशक उपेन्द्र जैन का कहना है कि ईओडब्ल्यू स्वतंत्र एजेंसी है। शिकायतों की जांच के बाद कार्रवाई होती है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है।
सबसे अधिक जबलपुर जोन में प्रकरण दर्ज
ईओडब्ल्यू के रिकॉर्ड के अनुसार चालू साल में 9 जनवरी से लेकर 1 अप्रैल तक 78 प्रकरण दर्ज किए गए हैं। इनमें से ज्यादा 34 मामले जबलपुर जोन के दर्ज किए गए हैं। भोपाल, इंदौर और उज्जैन में महज 4-4 प्रकरण दर्ज किए गए हैं। इसके अलावा रीवा में 20 मामले दर्ज किए गए हैं। पिछले साल 2024 में 49 प्रकरण और 2023 में 63 प्रकरण दर्ज किए गए थे। खास बात यह है कि ईओडब्ल्यू में किसी भी शिकायत पर एफआईआर दर्ज भोपाल स्थित मुख्यालय में होती है। पिछले तीन महीने के भीतर जांच एजेंसी में ताबड़तोड़ प्रकरण दर्ज होने से भ्रष्टाचारियों में हडक़ंप मचा है। हाल ही में आजीविका मिशन, अनाज के उपार्जन कार्य से जुड़ी सहकारी संस्थाओं के खिलाफ एफआईआर होने से गड़बड़ी करने वालों में डर का माहौल है। अभी तक एजेंसी में मामले सालों लंबित होने की वजह से आरोपी बेपरवाह होते थे। एजेंसी के रिकॉर्ड के अनुसार ईओडब्ल्यू महानिदेशक उपेन्द्र जैन के आने के बाद प्राथमिकी की संख्या बढ़ी है। बता दें कि राज्य शासन ने पिछले साल दिसंबर में जैन को ईओडब्ल्यू महानिदेशक की कमान सौंपी थी। ईओडब्ल्यू में भ्रष्टाचार एवं आर्थिक अनियमिताओं से जुड़ी शिकायतों पर सीधे एफआईआर दर्ज न होकर, तथ्यों जांच के बाद प्रकरण दर्ज किया जाता है। इसके लिए ईओडब्ल्यू के 7 संभागीय मुख्यालय भोपाल, इंदौर, उज्जैन, ग्वालियर, रीवा, जबलपुर और सागर में पुलिस अधीक्षक कार्यालय हैं। ईओडब्ल्यू में किसी भी शिकयत पर सीधे आपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं होता है। शिकायत की गंभीरता को देखते हुए पहले तथ्यों का परीक्षण होता है। इसके बाद भोपाल में प्रकरण दर्ज होता है।
पूर्व जेल डीआईजी के परिजनों पर मनी लॉन्ड्रिंग का प्रकरण
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भोपाल ने दिवंगत जेल डीआईजी उमेश कुमार गांधी की पत्नी अर्चना गांधी और उनके भाई अजय कुमार गांधी के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग (अवैध कमाई को वैध बनाना) का प्रकरण पंजीबद्ध किया है। यह मामला 29 मार्च 2025 को भोपाल की विशेष अदालत में दर्ज किया गया। प्रवर्तन निदेशालय ने 3 जनवरी 2025 को इनकी संपत्तियों को जब्त किया था। इनमें सागर, कटनी, सीहोर, भोपाल और इंदौर में स्थित 20 अचल संपत्तियां और सावधि जमा राशि शामिल हैं। भोपाल में न्यायालय द्वारा इस मामले में संज्ञान लिए जाने पर प्रवर्तन निदेशालय ने लोकायुक्त पुलिस भोपाल द्वारा की गई कार्रवाई के आधार पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में जांच की थी। लोकायुक्त पुलिस ने उमेश कुमार गांधी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया था। जांच में पता चला कि उनकी संपत्ति उनकी आय से कहीं अधिक थी। गांधी और उनके परिजनों के नाम पर कुल 5.13 करोड़ की अनुपातहीन संपत्ति मिली, जिसमें दो लोकायुक्त ने इस मामले में दो आरोप पत्र दायर किए थे। इनमें एक इनमें एक विशेष न्यायालय पीसी अधिनियम के समक्ष और दूसरा प्रथम अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, भोपाल के न्यायालय में दायर किया गया। ईडी ने अनुसूचित अपराध से संबंधित अपराध की आय (पीओसी) की पहचान/पता लगाने के लिए पीएमएलए के तहत जांच की। प्रवर्तन निदेशालय की जांच में सामने आया कि पूर्व जेल डीआईजी उमेश कुमार गांधी ने अपनी काली कमाई से परिजनों और रिश्तेदारों के नाम पर बड़ी संख्या में चल-अचल संपत्तियां खरीदी थीं। प्रवर्तन निदेशालय के अनुसार गांधी ने कुल 4.68 करोड़ रुपए की संपत्तियां अवैध रूप से अर्जित की थीं। इनमें जमीन, बैंक में जमा राशि, आभूषण, बीमा पॉलिसी, म्यूचुअल फंड और किसान विकास पत्र शामिल हैं। प्रवर्तन निदेशालय ने विगत 3 जनवरी को इन संपत्तियों को अस्थायी रूप से जब्त कर लिया था और अब इस मामले में वैधानिक कार्रवाई कर रही है।