
- शिकायतों का अफसर नहीं कर रहे निराकरण
विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में सहकारी समितियों की मनमानी किसी से छिपी नहीं हैं। लेकिन विडंबना यह है कि समितियों की मनमानी के शिकार लोग जब अधिकारियों के पास शिकायत लेकर पहुंचते हैं तो उस पर सुनवाई नहीं होती है। इसका परिणाम यह हुआ है कि सहकारिता अधिकारियों के न्यायालय में लगभग 73 हजार प्रकरण पेंडिंग हैं।
गौरतलब है कि सहकारिता विभाग में पंजीयक सहकारी संस्थाएं से लेकर संयुक्त पंजीयक, उप पंजीयक, सहायक पंजीयक आदि के न्यायालय सहकारी समितियों से संबंधित प्रकरणों को दर्ज कर उनकी सुनवाई करते हैं। सभी जिलों में सौ से ज्यादा सहकारिता न्यायालय काम कर रहे हैं। अब ऑनलाइन प्रकरण दर्ज कराने की सुविधा भी दी गई है। इससे भी प्रकरणों की संख्या बढ़ी है। प्रदेश में सहकारी समितियों के पीड़ित लोग विभागीय अधिकारियों की उपेक्षा से जूझ रहे हैं। समितियों में गड़बडिय़ों के चलते शिकायतें तो अधिकारियों के पास पहुंच रही हैं, लेकिन निराकरण नहीं हो रहा। अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सहकारिता अधिकारियों के न्यायालय में लगभग 73 हजार प्रकरण पेंडिंग हैं। पंजीकृत प्रकरणों में से केवल 14 फीसदी का निराकरण हो पाया है। पेंडिंग प्रकरणों में ज्यादातर हाउसिंग सोसायटीज संबंधी हैं। पीडि़त हर बार पेशियों पर जाते हैं , लेकिन उन्हें नई तारीख ही मिलती है। पूरे पैसे सहकारी समिति के पास जमा करने के बाद भी सालों बाद भी न तो प्लॉट मिला और न ही रकम वापस मिल रही है।
केस मैनेजमेंट सिस्टम फेल
विभाग ने 2020 में कोऑपरेटिव न्यायालय केस मैनेजमेंट सिस्टम शुरू किया था। इसमें सभी सहकारी न्यायालयों को जोड़ा गया है। इसके माध्यम से प्रचलित प्रकरणों की स्थिति पोर्टल के माध्यम से देखी जा सकती है। आदेश की प्रति भी डाउनलोड की जा सकती है। सॉफ्टवेयर के माध्यम से उच्च अधिकारियों के लिए प्रकरणों की मॉनिटरिंग आसान हो गई है। वे आसानी से प्रकरणों की स्थिति देख समीक्षा कर सकते हैं, लेकिन मॉनिटरिंग नहीं हो रही है। इससे पेंडेंसी बढ़ती जा रही है।
अधिकारी प्रकरणों की पेंडेंसी के लिए सोसायटीज की गड़बडिय़ों को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका कहना है कि कई समितियों के पते बदल गए होते हैं। वे विभाग को सूचना नहीं देते। नोटिस तामील नहीं हो पाते। कई हाउसिंग सोसायटी के पास रिकॉर्ड नहीं है। इससे कार्रवाई आगे नहीं बढ़ पाती। सोसायटियों के पास न तो जमीन बची है और न उनके खाते में पैसा है, इसलिए पीडि़तों को राहत दिलाना मुश्किल होता है। पंजीयक सहकारी संस्थाएं मप्र के मनोज सरियाम का कहना है कि कोऑपरेटिव न्यायालय केस मैनेजमेंट सिस्टम के माध्यम से कॉज लिस्ट जारी होने से लेकर आदेश तक जारी हो रहे हैं। इससे निराकरण में तेजी आई है। कुछ सोसायटियों के प्रकरणों में जटिलता रहती हैं और रिकॉर्ड भी उपलब्ध नहीं होते, इसलिए कुछ विलंब हो जाता है।
मूल सदस्य प्लॉट के इंतजार में
प्रदेश में सहकारी समितियों की गड़बड़ी का खामियाजा मूल सदस्य भुगत रहे हैं। आलम यह है कि शिकायत के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हो रही है। राजधानी की गौरव गृह निर्माण सहकारी समिति के पीडि़तों ने 2016 में उप पंजीयक सहकारी समिति में केस दर्ज कराया। सोसायटी को 44 सदस्यों ने 1982 में बनाया था। पांच एकड़ जमीन बावडिय़ा कलां में निजी व्यक्ति से खरीदी। तत्कालीन अध्यक्ष ने सहकारिता विभाग के अधिकारियों से मिलीभगत कर अपने हिसाब से नए सदस्य बनाए और प्लॉट बेच दिए। न्यू मित्र मंडल गृह निर्माण सहकारी समिति में अनियमितताओं का केस उप पंजीयक सहकारी संस्थाएं भोपाल में 2018 में पंजीकृत कराया गया था। आरोप है कि सोसायटी के पदाधिकारियों ने करोड़ों की जमीन पर नए सदस्य बनाकर प्लॉट आवंटित कर दिए। कुछ प्लॉट की दो रजिस्ट्रियां करा दीं। ज्यादातर मूल सदस्य अभी भी प्लॉट के इंतजार में बैठे हैं।