
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। राज्य विधानसभा की कार्रवाई कई बार हंगामा की भेंट चढ़ जाती है, लेकिन इसका खमियाजा सरकारी खजाने के साथ ही आम आदमी को भी उठाना पड़ता है। इसकी वजह है जहां जनहित के मामले इस शोर शराबे में दब कर रह जाते हैं, तो वहीं सरकारी खजाने को भी इस पर हर मिनिट औसतन खर्च 66 हजार रुपए यानि की हर दिन करीब 40 लाख रुपए खर्च करने होते हैं।
विधानसभा का सालाना बजट 100 करोड़ रुपए है। इनमें से 85 करोड़ रुपए सदन की कार्रवाई के संचालन पर खर्च होते हैं। यह अच्छी बात है कि इस बार विधानसभा का शीतकालीन सत्र निर्र्धारित दिनों तक चला। यह बात अलग है कि इस सत्र में भी आधा दर्जन से अधिक विधेयक हंगामे और शोर-शराबे के बीच पारित हो गए। इन पर कोई चर्चा नहीं की जा सकी। कानून बनाने का अधिकार विधायिका के पास है, लेकिन पहले सदन में सार्थक चर्चा हो, सदस्यों के सुझाव आएं तो ये कानून और बेहतर बन सकते हैं। लेकिन जब ये कानून सदन में बिना बहस के मिनटों में पारित हो जाएं तो चिंतनीय है। बात सिर्फ विधेयकों की नहीं है, प्रश्नकाल, ध्यानाकर्षण में भी सवाल-जवाब कम हो रहे हैं। संविधान विशेषज्ञों की माने तो सत्र चलाने की जिम्मेदारी सत्ता पक्ष की होती है, विपक्ष तो सवाल पूछेगा। कहीं गतिरोध है तो सदन के नेता को प्रतिपक्ष के साथ चर्चा कर समाधान निकालना चाहिए। हंगामे की वजह से सदन स्थगित कर देना उचित नहीं है।
यही नहीं बीते लंबे समय से किसी न किसी कारण से सत्र की अवधि में भी कमी आयी है। इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम का कहना है कि अब दिनों की गिनती के बजाए कितने समय तक कार्रवाई चली और कामकाज कितना हुआ इस बात पर फोकस किया जाएगा।
15वीं विस के इस तरह रहे सत्र
विधानसभा का शीतकालीन सत्र इस बार 20 से 24 दिसंबर तक की अवधि के लिए बुलाया गया था और सभी दिन बैठकें चलीं। 14वीं विस में भी ऐसे दिन आए जब सत्र ने अपनी कार्रवाई पूरी की। 15वीं विधानसभा का पहला सत्र 7 से 11 जनवरी को आहूत हुआ लेकिन एक दिन पहले ही विधानसभा की कार्रवाई खत्म हो गई। इसके बाद 18 से 21 फरवरी तक चार बैठकें बुलाई गई थीं लेकिन तीन ही बैठकें हो पाई। जुलाई में मानसून सत्र भी दो दिन पहले खत्म हो गया। शीतकालीन सत्र 17 दिसंबर से बुलाया गया था, घोषित बैठकें 7 थीं लेकिन एक दिन पहले ही सत्र को अवसान हो गया। 16 मार्च से 13 अप्रैल तक 17 बैठकें बुलाई गई थीं लेकिन सत्र पूरा नहीं हो सका।
एक बैठक का इतिहास
मप्र विधानसभा के इतिहास में मार्च-अप्रेल 2020 में हुआ सत्र सबसे कम अवधि चलने वाला सत्र रहा। 24 मार्च से 27 अप्रैल 2020 तक के लिए सत्र प्रस्तावित था। 3 बैठकें होना थीं, लेकिन एक बैठक ही हुई। सत्र 9 मिनट ही चला। सत्र में सीएम शिवराज सिंह के प्रति विश्वासमत का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ था।
15वीं विधानसभा में…
सत्र निर्धारित बैठकें बैठक हुई
जनवरी 2019 5 4
फरवरी 2019 4 3
जुलाई 2019 17 13
दिसम्बर 2019 4 4
मार्च अप्रेल 2020 17 2
मार्च 2020 3 1
सितंबर 2020 3 1
फरवरी 2021 23 13
अगस्त 202 4 2
दिसम्बर 2021 5 5